70 और 80 के दशक की मशहूर भारतीय पौप, जैज और प्लेबैक सिंगर उषा उत्थुप आज भी अपनी गायकी की वजह से उतनी ही लोकप्रिय हैं. उन्होंने 13 भारतीय भाषाओं और 8 विदेशी भाषाओं में गाने गाए हैं. कोलकाता की सिंगर दीदी के नाम से जानी जाने वाली 66 वर्षीय उषा उत्थुप ने संगीत की विधिवत ट्रेनिंग नहीं ली है. पर उन का परिवार हमेशा वैस्टर्न और भारतीय शास्त्रीय संगीत सुनता था. यहीं से उषा के मन में संगीत के प्रति रुचि पैदा होने लगी तो उन्होंने संगीत को ही अपना पैशन बना लिया और इस क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाई.

एक बार स्कूल में उषा उत्थुप को संगीत की कक्षा से इसलिए निकाल दिया गया कि उन की आवाज संगीत के लिए फिट नहीं है. तब उन्होंने निश्चय किया कि वे इसी क्षेत्र में आगे बढ़ेंगी. 9 साल की उम्र में उन्होंने पहला गाना गाया, जिसे श्रोताओं ने काफी पसंद किया.

20 साल की उम्र में उन्होंने चेन्नई के एक नाइट क्लब में गाने गाए. किसी भी शो में वे हमेशा साड़ी में दिखती थीं. वे साड़ी गहनों और गोल बड़ी बिंदी के लिए जानी जाती हैं.

उन के इस शौक के बारे में पूछे जाने पर वे कहती हैं, ‘‘जब से मैं बड़ी हुई हूं, मां को हमेशा साड़ी में देखा और उन्हीं को अपना आदर्श माना. मैं अपनी सारी डै्रसेज खुद डिजाइन करती हूं.’’

मेहनत, ईमानदारी व लगन

उषा उत्थुप को जीवन में अधिक संघर्ष नहीं करना पड़ा, क्योंकि उन्हें शुरू से पता था कि उन्हें क्या करना है यानी वे अपने कैरियर के प्रति फोकस्ड थीं. वे कहती हैं, ‘‘सभी को अपने क्षेत्र में अच्छा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. जीवन में कभी अच्छा तो कभी बुरा दौर भी आता है. अगर बुरा दौर न आए तो व्यक्ति आगे नहीं बढ़ सकता, पर देखना यह पड़ता है कि आप अपने संघर्ष को कैसे लेते हैं. मैं 45 सालों से गा रही हूं और अभी भी श्रोता मेरा गायन पसंद करते हैं. एक समय ऐसा भी था जब श्रोता लताजी और आशाजी के गाने ही सुनते थे. ऐसे में मैं ने अपनी अलग पहचान बनाई. श्रोताओं ने मेरी आवाज को पसंद किया और मुझे बहुत प्यार दिया.’’

उषा उत्थुप नए गायकों की तारीफ करती हैं. वे कहती हैं, ‘‘मुझे खुशी है कि करीब सवा अरब की जनसंख्या वाले हमारे देश में आज कितने ही सिंगरों को मौका मिल रहा है. पर मौका मिलने पर टिके रहना बहुत मुश्किल है. इस के लिए मेहनत, ईमानदारी और लगन बहुत आवश्यक है. अच्छी आवाज हमेशा रहती हैं. खराब आवाज गायब हो जाती है. मैं स्वयं को बहुत खुशहाल मानती हूं. मेरा गाना ‘डार्लिंग…’ बहुत मशहूर हुआ. इस के अलावा फिल्म ‘कहानी’ और ‘रिवौल्वर रानी’ में भी मैं ने गाने गाए हैं.’’

पाड़ा कल्चर

संगीत की दुनिया में पिछले कुछ सालों से काफी बदलाव आया है. आज सुर से अधिक ताल हावी हो रहा है. पर उषा उत्थुप इस बदलाव का स्वागत करते हुए कहती हैं, पहले सब को एकसाथ वाद्यसंगीत के साथ गाना पड़ता था. कोरस सिंगिंग में अगर एक ने गलती की तो फिर से पूरा गाना गवाया जाता था. आज तकनीकी सुविधा की वजह से गायन बहुत आसान हो गया है. आज गा तो कोई भी सकता है, पर आवाज में कोई विशेषता नहीं होगी तो गाना अच्छा नहीं लगेगा. स्टूडियो में तो आप कुछ भी कर सकते हैं. पर जब आप शो में स्टेज पर गाते हैं तो आप को रीटेक का अवसर नहीं मिलता. मुझे हरिहरन, शंकर महादेवन, रूपकुमार राठौड़, शान, श्रेया घोषाल आदि के गाने पसंद हैं.

मुंबई की उषा उत्थुप पिछले कुछ सालों से अपने परिवार के साथ कोलकाता में रह रही हैं. शादी के बाद वे अपने पति के साथ यहां आई थीं. कोलकाता के बारे में वे कहती हैं, ‘‘यहां का पाड़ा कल्चर यानी पड़ोसी संस्कृति मुझे बहुत पसंद है. यहां के लोग बहुत ही केयरिंग और शेयरिंग प्रवृत्ति के हैं. मुझे ऐसी संस्कृति कहीं और देखने को नहीं मिली.’’ 

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