इस फिल्म के प्रमोशन के समय कटरीना कैफ और सिद्धार्थ मल्होत्रा दोनों ने दावा किया था कि यह फिल्म आज की युवा पीढ़ी के लिए है. आज की युवा पीढ़ी इस फिल्म के साथ रिलेट करेगी. मगर फिल्म खत्म होने पर जब एक युवा जोड़ा सिनेमा घर से बारह निकल रहा था, तो इस जोड़े में नाराजगी व गुस्से का भाव था. युवा लड़की अपने साथ वाले युवक से कह रही थी-‘‘आप हर बार मुझे इतनी घटिया फिल्में दिखाने क्यों लाते हैं. पिछली बार ‘मोहनजो दाड़ो’ में फंसाया था. इस बार ‘बार बार देखो’ में फंसा दिया.’’
एक अच्छे विषय का किस तरह एक पटकथा लेखक व निर्देशक कबाड़ा कर सकता है, इसका सबसे सटीक उदाहरण है नित्य मेहरा निर्देशित फिल्म ‘‘बार बार देखो”. फिल्म ‘‘बार बार देखो’’ एक अच्छे विषय पर बनी तर्कहीन व अति घटिया फिल्म है. या यूं कहें कि बंदर (फिल्म की निर्देशक नित्या मेहरा) के हाथ में उस्तरा (अच्छा विषय).
फिल्म की कहानी के केंद्र में दिया कपूर (कटरीना कैफ) और जय (सिद्धार्थ मल्होत्रा) हैं. दोनों का जन्म लगभग एक ही दिन हुआ. दोनों बचपन से दोस्त हैं. दिया मशहूर उद्योगपति कपूर (राम कपूर) की बेटी हैं, तो वहीं जय, मिसेस शर्मा (सारिका) का बेटा है. जय विश्वविद्यालय में गणित विषय का प्रोफेसर है, उसकी तमन्ना लंदन की कैंब्रिज यूनिवर्सिटी जाकर गणित पढ़ाने के अलावा गणित विषय में कुछ बड़ा काम करने की है. जय तो शादी के नाम से ही डरता है. जबकि दिया एक अच्छी पेंटर है. उसे परिवार में यकीन है.
दिया एक प्रेमिका के साथ साथ अच्छी पत्नी, अच्छी गृहिणी व अच्छी मां भी बनना चाहती है. दिया के पिता कपूर एक दिन जय को समझाते हैं कि उसे क्या करना चाहिए. वह उसे समझाते हैं कि वह कैंब्रिज जाने का विचार छोड़ दे. जय को अपनी मां और दिया के पिता के दबाव में शादी के लिए हां कह देता है. शादी की तैयारी शुरू हो जाती है. मेहमान आ जाते हैं. शादी से दो दिन पहले जय, दिया से कैंब्रिज जाने के लिए झगड़ता है और फिर शराब पीकर सो जाता है.