अपराध कथा वाले टीवी सीरियल और फिल्म ‘‘गैंग्स आफ वासेपुर’’ दोनों के मिश्रण का अति घटिया संस्करण है कुशान नंदी की फिल्म ‘‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’’. यथार्थ सिनेमा और एक कांट्रैक्ट किलर की कहानी के नाम पर यह फिल्म महज प्यार, धोखा, राजनीति के कलुषित चेहरे और बदले की एक ऐसी कहानी है जो किसी को भी रास नहीं आ सकती.
फिल्म ‘‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’’ की कहानी उत्तर भारत के एक छोटे कस्बे की है. पैसे के एवज में किसी का कत्ल करना बाबू का पेशा है. बाबू (नवाजुद्दीन सिद्दिकी) एक राजनेता सुमित्रा (दिव्या दत्ता) के लिए काम करता है. सुमित्रा की जबान पर सदैव गंदी गंदी गालियां रहती हैं. तो दूसरी तरफ उसे फुलवा (बिदिता बाग) से प्यार भी हो गया है. सुमित्रा से पैसे लेकर बाबू एक इंसान की हत्या कर देता है. पर फुलवा के कहने पर बाबू बिना पैसे लिए अन्य दो की हत्या कर देता है. इसके एवज में फुलवा हमेशा के लिए बाबू की हो जाती है, मगर सुमित्रा अपने खास आदमी त्रिलोकी (मुरली शर्मा) के बहकावे में आकर बाबू से संबंध खत्म कर एक दूसरे राजनेता दुबे (अनिल जार्ज) से हाथ मिला लेती है. जबकि दुबे ने बाबू से हाथ मिलाया है.
दुबे, सुमित्रा के तीन खास आदमियों, (जिसमें त्रिलोकी भी शामिल है) को मारने का कांट्रैक्ट बाबू को देता है. बाबू, सुमित्रा को दीदी कहता है,इसलिए वह सुमित्रा को बताने जाता है कि उसे त्रिलोकी की हत्या का कांट्रैक्ट मिला है. यह बात दुबे को पता चल जाती है और दुबे उसी वक्त यास्मीन (श्रृद्धा दास) से बात कर उन तीन के साथ ही बाबू की हत्या का कांट्रैक्ट दे देता है. यास्मीन यह काम अपने प्रेमी बांके बिहारी (जतिन गोस्वामी) से कराती है, जो कि बाबू को अपना गुरू कहता है. अब बाबू और जतिन आमने सामने आ जाते हैं. दोनों के बीच शर्त लगती है कि दोनों में से जो पहले इन तीन को मारेगा, वह इस पेशे में रहेगा, दूसरा इस पेशे से चला जाएगा. हारने पर बांके बिहारी, बाबू को गोली मारकर कहता है कि उसे तो चार की हत्या का कांट्रैक्ट मिला था.