फिल्म ‘दिल चाहता है’ से निर्देशक के रूप में अपने करियर की शुरुआत करने वाले फरहान अख्तर ने पहले तो कई फिल्मों का निर्देशन किया और उसमें अपनी पैठ जमाने के बाद एक्टिंग की ओर रुख किया और फिल्म ‘रौकऔन’ में अभिनय के अलावा गायन को भी अंजाम दिया. फिल्म ‘रौकऔन’ के लिए उन्हें नेशनल अवार्ड भी मिला. वे निर्देशक के अलावा निर्माता, अभिनेता, गायक, और पटकथा लेखक भी हैं. फिल्मी परिवार में पले बड़े होने के बावजूद उन्होंने कभी अपने आप को बौलीवुड में स्थापित करने के लिए माता-पिता का सहारा नहीं लिया. बहुत कम समय में उन्होंने अपने मेहनत के बल पर अपने आप को एक मुकाम तक पहुचाया है.

उनका फिल्मी करियर सफल होने के वावजूद भी उनका पारिवारिक जीवन सफल नहीं रहा. साल 2000 में उन्होंने हेयर ड्रेसर अधुना भबानी से 3 साल तक रिलेशनशिप में रहने के बाद शादी की, जिनसे उनकी दो बेटियां शाक्य और अकिरा हुई. साल 2017 में उन्होंने अपने 16 साल की शादी-शुदा जिंदगी को खत्म कर दिया और अपनी पत्नि से डिवोर्स ले लिया.

अभी उनकी फिल्म ‘लखनऊ सेंट्रल’ रिलीज पर है, जिसमें उन्होंने एक कैदी की भूमिका निभाई है. पेश है बातचीत के कुछ अंश.

किसी फिल्म को चुनते समय किस बात का खास ध्यान रखते हैं?

मैंने जब भी कोई चरित्र चुना कोशिश किया कि वे एक दूसरे से अलग हों, अलग तरह की भूमिका से मुझे उसे करने की प्रेरणा मिलती है. ‘भाग मिल्खा भाग’ भी मेरी अलग तरह की फिल्म थी, जिसमें मैंने सरदार की भूमिका निभाई थी, मुश्किल थी, पर वही मेरे लिए चुनौती थी. मैं कुछ सोचता नहीं हूं, जो भी कहानी मेरे पास आती है, उसे पढने के बाद निर्णय लेता हूं.

एक कैदी की भूमिका करना कितना मुश्किल था?

ये कोई अधिक मुश्किल नहीं था. मैंने थोड़ी तैयारियां की थी, अधिक जानकारियां हासिल नहीं करना चाहता था. असल में जब कैदी जेल की सलाखों के पीछे जाता है, तो उसे पता नहीं होता है कि वहां उसके साथ क्या होने वाला है. धीरे-धीरे उसे सब पता चलता है. ऐसे ही मैंने अपने दृश्य में परफार्म करने की कोशिश की. लेखक असीम अरोड़ा ने काफी रिसर्च किया हुआ था. थोड़ा बहुत मुझे अंदाजा था कि मैं किस तरह के वर्ल्ड में जाने वाला हूं.

आपने अपने रिसर्च में कैदियों की लाइफ को कैसा पाया? क्या अनुभव रहा?

मुझे ये पता चला कि जो दायित्व जेलर का है, कैदियों के रिफार्म में उनका बहुत बड़ा सहयोग होता है. ये मुझे बहुत अच्छी लगी. हम इस बारे में बहुत कम सोचते हैं, क्योंकि वहां बहुत ऐसे कैदी हैं, जिन्होंने एक पल मैं एक अपराध कर लिया है, जबकि वे पहले से कोई अपराधी नहीं होते हैं. ऐसे लोगों की सुधार के लिए वहां बहुत आप्शन हैं. कुछ सालों बाद उन्हें समाज में वापस भेजा जाता है. ऐसे में जरूरी ये होता है कि समाज और परिवार उनकी पिछली गलतियों की उलाहना न देकर उन्हें एक नए माहौल में जीने और सपनों को पूरा करने का मौका दें.

आपकी पिछली फिल्म सफल नहीं रही और कई ऐसी बड़ी फिल्में आई हैं जो बौक्स आफिस पर कुछ अच्छी नहीं थी, ऐसे में इस तरह की फिल्म से आप क्या उम्मीद रखते हैं?

रौकऔन अधिक सफल नहीं होने की एक वजह यह भी थी कि उसे रिलीज के दो दिन पहले नोटबंदी का ऐलान हुआ, ऐसे में लोगों को अपने पेट भरने के लिए पैसों की व्यवस्था करने में ही मुश्किल आ रही थी. फिल्म देखना तो बहुत बड़ी बात थी. उस समय सारे थिएटर खाली पड़े थे. फिर मैं फिल्म को दोषी नहीं मान सकता. मेरी कोशिश रहती है कि हर फिल्म चले, लेकिन कई बार कुछ कारणों से फिल्म चल नहीं पाती. फिर आगे अच्छा करने के लिए मेहनत करता हूं. मेरे हिसाब से ‘सेल्फ डाउट’ अच्छी बात नहीं, इससे आप प्रोग्रेस नहीं कर सकते. फिल्म के निर्माण में बहुत सारे लोग होते हैं, सभी मेहनत करते हैं. सब कुछ करने के बावजूद दर्शक कई बार फिल्म को नकार देते हैं. इससे डरने की बात नहीं होती. दर्शकों के मूड में बदलाव कुछ सालों बाद आता रहता है.

इश्यू बेस्ड फिल्में आजकल अधिक आ रही है, क्या आप कुछ ऐसी फिल्म बनाना चाहते हैं?

मैं एक फिल्म ‘गोल्ड’ बना रहा हूं, जो हमारे इंडियन हौकी टीम से प्रेरित होकर बनायी जा रही है. इसमें हौकी के द्वारा कैसे लोग मिलते हैं, कैसे टीम बनती है, उसी को दिखाने की कोशिश की गयी है. इसके अलावा पैराओलिंपियन दीपा मलिक को लेकर भी एक फिल्म बना रहा हूं. ऐसी फिल्में बहुत कम बनी है, जहां एक लड़की शारीरिक रूप से अपंग होने के बाद भी कितनी उपलब्धियां हासिल की है. ये फिल्में दर्शकों को भी प्रेरित करेगी.

आप बहुत सारे सामाजिक कार्य करते हैं, ऐसे में जेल में रह रहीं महिला कैदी जिनकी सजा पूरी हो चुकी हो और समाज और परिवार उन्हें अपनाना नहीं चाहती, उनके लिए कुछ करने की इच्छा रखते हैं?

जो भी अपराध करते हैं, अगर उन्होंने अपनी सजा पूरी कर चुकी हो, तो समाज और परिवार को उस महिला को अपनाए जाने की जरुरत है, ये समस्या हमारे देश में है और ये सौ प्रतिशत सोचने वाली बात है कि उन्हें फिर से समाज और परिवार में रहने का हक कैसे मिले. मैंने अभी तो कुछ सोचा नहीं है, लेकिन इस विषय पर अपने साथियों के साथ मिलकर विचार करना चाहूंगा और कोशिश करूंगा कि ऐसी महिलाओं को प्रशिक्षित कर इंडस्ट्री में जौब क्रिएट कर सकूं.

एक क्रिएटर के रूप में किस क्षेत्र में आप अपनी क्रिएटिविटी को अधिक दिखा सकते हैं, फिल्मों में या डिजिटल प्लेटफार्म में?

डिजिटल में अधिक संभव होता है. फिल्मों में एक दायरा होता है, जिसके अनुसार उसे बनानी पड़ती है, लेकिन यहां यह भी जरुरी है कि फिल्मों के सर्टिफिकेशन में आप एक प्रभावशाली रेटिंग सिस्टम लागू करें और बतायें कि कौन सी फिल्म किस उम्र की व्यक्ति के लिए देखने लायक है.

आपने कई तरह के काम किये हैं, क्या कुछ और बाकी रह गया है?

मेरा पियानो सीखना बाकी है, बचपन में मैं हारमोनियम सीखता था, जो मैंने थोड़े दिनों बाद बंद कर दिया था. अभी कुछ गाने जिसे मैंने लिखा है, गिटार पर बजाता हूं, लेकिन पियानो पर वह अधिक अच्छी लगेगी. मैं और मेरी छोटी बेटी दोनों को पियानो सीखना है.

ट्रिपल तलाक के बारें में आपकी राय क्या है?

ये निर्णय एकदम सही है. ये जरुरी भी था कि महिलाओं को कुछ हक मिले. 6 महीने बाद जो इसे कानून में परिवर्तित करने की बात कही गयी है, वह भी होना आवशयक है. उसे पारित करने में समस्या तो आयेगी, पर उम्मीद करता हूं कि सकारात्मक माहौल में इसे महिलाओं तक लाया जाय.

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