हौलीवुड की तरह बौलीवुड में भी कारपोरेट स्टूडियेा आए, मगर कई कारपोरेट स्टूडियो अपनी दुकान बंद कर चुके हैं. जबकि कुछ कारपोरेट स्टूडियो अभी भी फिल्म निर्माण से जुड़े हुए हैं. यूं तो इनमें से कई नुकसान में चल रहे हैं.

उधर तमाम बड़े कलाकार दावा कर रहे हैं कि सिनेमा को कारपोरेट स्टूडियो के चलते फायदा हो रहा है. मगर बहुत जल्द प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘मि. कबाड़ी’ की लेखक व निर्देशक सीमा कपूर का मानना है कि इनसे सिनेमा का नुकसान हो रहा है.

हमसे खास बात करते हुए सीमा कपूर ने कहा, ‘‘कला को आप बांध कर नहीं रख सकते. कला को कोई भी कारपोरेट गाइड नहीं कर सकता. कला निजी काम है. कारपोरेट की कार्यशैली ऐसी है, जैसे कि बिरजू महाराज की बजाय दस लोग मिलकर नृत्य के भाव को पेश कर रहे हों. मैं इसमें यकीन नहीं करती. कारपोरेट के आने के बाद एक खास संस्था के विचार के अनुरूप सिनेमा बनने लगता है. जिससे इंडीविज्युअल लेखक, निर्देशक, निर्माता, वितरक आदि मारे जाते हैं. सिनेमा में विविधता खत्म हो रही है. यह शहरी पृष्ठभूमि के लोग कस्बाई पात्रों के बारे में जानते ही नहीं हैं. इसी वजह से कारपोरेट कंपनियों की फिल्मों के पात्र बनावटी लगते हैं. मेरी समझ में आज तक नहीं आया कि कौन से कस्बे की लड़की सिगरेट पीती है या मोटरसायकल पर घूमती है. कस्बे में लाख में से किसी एक लड़की ने सिगरेट पी ली तो आप उस एक लड़की की कहानी सुनाएंगे या निन्यानबे हजार लोगों की. आप ध्यान देंगे तो पता चलेगा कि हर बड़ा लेखक कस्बा से ही निकला है.’’

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