बंगला फिल्मकार श्रीजित मुखर्जी की बंगला फिल्म ‘‘राजकाहिनी’’ की हिंदी रीमेक फिल्म ‘‘बेगम जान’’ की बॉक्स ऑफिस पर जो दुर्गति हो रही है, उसकी कल्पना फिल्म की मुख्य हीरोईन विद्या बालन, श्रीजित मुखर्जी और महेश भट्ट ने भी नहीं की होगी. यॅूं तो ‘बेगम जान’ देखने के बाद ऐसा होना स्वाभाविक लगा था, क्योंकि महेश भट्ट कैंप ने ‘बेगम जान’ को अपने एजेंडे के तहत बनाया है. सबसे बड़ा सवाल यह है कि फिल्मकार श्रीजित मुखर्जी महज हिंदी फिल्मों में अपना करियर शुरू करने के लिए महेश भट्ट की हां में हां मिलाने को तैयार कैसे हो गए?

श्रीजित मुखर्जी ने अपनी फिल्म ‘राजकाहिनी’ हर रिफ्यूजी को समर्पित की थी. फिल्म की शुरूआत रिफ्यूजी कैंप में लोगों की त्रासदी के चित्रण के साथ ही होती है, जिसका दायरा वैश्विक था, मगर हिंदी फिल्म ‘‘बेगम जान’’ में उन्होने इसे बदल दिया. ‘बेगम जान’ की शुरूआत लड़की से बलात्कार की कोशिश के साथ होती है, जिसके चलते ‘बेगम जान’ का सुर ही बदल गया. बाद में श्रीजित मुखर्जी ने ‘राजकाहिनी’ के ही ढर्रे पर फिल्म को बढ़ाया. मगर फिल्म के निर्माता महेश भट्ट के इशारे पर स्त्री पुरूष और हिंदू मुस्लिम का दर्शन शास्त्र परोसते हुए हिंदुओं को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया, जिसके चलते फिल्म दर्शकों को आकर्षित नहीं कर पा रही है. फिल्म समीक्षक पहले ही फिल्म की सफलता की कम उम्मीद जता चुके हैं.

फिल्म ‘बेगम जान’ ने असफलता में नए रिकार्ड बना दिए हैं

विद्या बालन अभिनीत यह पहली फिल्म होगी, जिसने पहले दिन बॉक्स ऑफिस पर इतनी कम कमाई की है. फिल्म ‘‘बेगम जान’’ ने शुक्रवार को बाबा साहेब अंबेडकर जयंती के उपलक्ष्य में छुट्टी होने के बावजूद महज तीन करोड़ 94 करोड़ ही कमाए. मजेदार बात यह है कि विद्या बालन ने इस फिल्म को नारी प्रधान बताने के लिए फिल्म का नाम ‘राजकाहिनी’ से ‘बेगम जान’ कराया. हकीकत में देखा जाए तो यह कदम गलत रहा, क्योंकि फिल्म के कथानक के साथ ‘राजकाहिनी’ या ‘राजकहानी’ ज्यादा उपयुक्त होता. मगर विद्या बालन तो खुद को महान साबित करना चाहती हैं. इसी के चलते फिल्म में ईला अरूण के मुंह से झांसी की रानी लक्ष्मी बाई और रजिया सुल्तान की वीरता की कहानी भी सुनवायी गयी. यह कहानियां ‘राजकाहिनी’ में नहीं है, यानि कि विद्या बालन ने अपरोक्ष रूप से यह जाहिर करने का प्रयास किया कि वे रजिया सुल्तान व झांसी की रानी की भांति काम कर रही हैं.

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