‘अकीरा’ खत्म होते होते दिमाग में पहला सवाल उठता है कि क्या इस फिल्म के निर्देशक ए मुरूगादास ही हैं, जो हिंदी में ‘गजनी’ और ‘होलीडे: ए सोल्जर नेवर आफ ड्यूटी’ जैसी फिल्में निर्देशित कर चुके हैं? कहानी, निर्देशन, अभिनय व संगीत को लेकर भी यह फिल्म निराश ही करती है.

फिल्म पूरी तरह से मुंबईया मसालों से भरपूर है. नयापन कुछ भी नहीं है. फिल्म की हीरो सोनाक्षी सिन्हा हैं, मगर उनमें हीरो जैसा अदम्य जोश या साहस कहीं नजर नही आता है.

फिल्म की कहानी के केंद्र जोधपुर में बसे अपने पूरे परिवार के साथ रहने वाली अकीरा शर्मा (सोनाक्षी सिन्हा) है, जिसके माता पिता ने उसे बचपन में ही आत्मरक्षा के लिए जूडो कराटे व बॉक्सिंग की ट्रेनिंग दिलायी है. पर कम उम्र में ही एक साथ चार पांच लड़कों की पिटाई कर देने की आदत के चलते अकीरा पर तेजाब फेंकने आए युवक पर ही तेजाब गिर जाता है. पर अदालत अकीरा को दोषी मानकर बाल सुधार गृह में भेज देती है.

सुधार गृह से निकलने के बाद अकीरा पढ़ाई करना चाहती है, पर उसके माता पिता की मौत हो जाने के कारण उसे मुंबई अपने भाई के पास जाना पड़ता है. अकीरा का भाई मुंबई के एक कालेज में अकीरा का एडमिशन करवा देता है.

यहां मुंबई में ए सी पी गोविंद राणे (अनुराग कश्यप) की एक विवादास्पद सीडी लीक हो जाती है और हालात ऐसे बन जाते हैं कि इसमें अकीरा फंस जाती है. अब पुलिस उसका एनकाउंटर करना चाहती है. अकीरा एनकाउंटर से बच जाती है, पर उसे पागल घोषित कर एक मनोचिकित्सक अस्पताल में भर्ती करा दिया जाता है. जहां उसे बिजली के झटके दिए जाते हैं. अब अकीरा को क्रूर पुलिस वालों से निपटना है.

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