आपातकाल की पृष्ठभूमि में प्यार, धोखा, गुस्सा, नफरत, बदले की कहानी व एक्शन से भरपूर मिलन लूथरिया की फिल्म ‘‘बादशाहो’’ बहुत ज्यादा प्रभाव नहीं डालती. सत्तर व अस्सी के दशक में इस तरह की कहानी पर तमाम मसाला फिल्में बन चुकी हैं. सिर्फ आपातकाल की पृष्ठभूमि बताने से कहानी असरदार नहीं बनती.
फिल्म ‘‘बादशाहो’’ की कहानी शुरू होती है 1973 में जयपुर की महारानी गीतांजली के महल में चल रही एकपार्टी से. इस पार्टी में शासक दल के बड़े नेता संजीव (प्रियांशु चटर्जी) भी मौजूद हैं, जो कि महारानी से नाराज होकर महल से बाहर निकलते हैं. दो साल बाद आपातकाल लगने पर संजीव सेना को आदेश देते हैं कि अब महाराज नहीं रहे, इसलिए जयपुर के राजमहल की तलाशी लेकर महारानी गीतांजली के पास मौजूद सारा सोना जब्त करके दिल्ली के सरकारी खजाने में जमा किया जाए.
सेना का अफसर सैन्य बल के साथ राजमहल पहुंचता है. उसे जो कुछ मिलता है, उसकी जानकारी वह संजीव को देता रहता है. सोना मिलने के बाद महारानी को जेल भेज दिया जाता है. जेल के बाहर महारानी को छुड़ाने के लिए हंगामा होता है. इसी हंगामे में बदमाश भवानी सिंह (अजय देवगन) गिरफ्तार होकर जेल के अंदर पहुंचते हैं, जहां महारानी गीतांजली उनसे अपना सोना सरकारी खजाने तक पहुंचने से पहले वापस लाकर देने के लिए कहती हैं. पता चलता है कि भवानी सिंह कभी राजमहल में ही रहा करता था. वह महाराजा का अतिविश्वासपात्र था. महाराजा की मौत के बाद महारानी ने उस पर विश्वास किया था. दोनों के बीच कुछ ज्यादा ही अच्छे संबंध रहे हैं. पर एक गांव के जलाए जाने पर भवानी सिंह को अहसास हुआ था कि महारानी ने अपने चेहरे पर कई मुखौटे ओढ़ रखे हैं. तब वह महल से दूर चला गया था. पर अब वह महारानी की मदद के लिए तैयार है.
महारानी की सेक्रटरी संजना (ईशा गुप्ता) भी भवानी सिंह के साथ हैं. इसके अलावा भवानी सिंह ने महारानी के सोने को सरकारी खजाने में पहुंचने से पहले ही लूट लेने के मकसद से अपने सहयोगी दलिया (इमरान हाशमी) तथा ताला खोलने में माहिर तिकला (संजय मिश्रा) को बुला लिया है.
सरकार ने जब्त सोने आर्मी ट्रक में भरकर दिल्ली लाने की जिम्मेदारी सैन्य अधिकारी व कमांडो सहर (विद्युत जामवाल) को दी है. यह ट्रक व सैन्य अधिकारी चलते हैं. रास्ते में भवानी सिंह अपने साथियों के साथ सभी को हराकर ट्रक पर कब्जा कर भागते हैं. रास्ते में एक पुलिस अफसर (शरद केलकर) उनका पीछा करता है. अंततः एक जंगल में जाकर भवानी सिंह व उसके साथी सारा सोना पिघलाकर उसे ऊंटो पर लादकर चल देते हैं. इधर पता चलता है कि कमांडो सहर तो महारानी गीतांजली से मिला हुआ है.
अंततः सारा सोना उस गांव में जाकर बंट जाता है, जिस गांव को जलाने का आदेश कभी महारानी गीतांजली ने दिया था. खैर, अब आर्मी कहां गयी, महारानी कहां गयी, कुछ स्पष्ट नहीं होता. पर एक खंडहर में भवानी सिंह व उसके साथी आपस में बातें करते हुए नजर आते हैं.
अस्वाभाविक दृश्यों से भरपूर तितर बितर व अति कमजोर पटकथा से युक्त फिल्म ‘‘बादशाहो’’ में आकर्षण वाला कोई मामला नही है. किरदारों का चरित्र चित्रण भी गड़बड़ है. अति कमजोर कहानी व पटकथा वाली यह फिल्म बोर ही करती है. संजीव के किरदार को संजय गांधी जैसा लुक दिया गया जिसकी वजह महज फिल्म को आपातकाल की पृष्ठभूमि से जोड़ना रहा या कुछ और यह फिल्मकार ही बेहतर जानते होंगे.
फिल्म की लोकेशन अच्छी है. कैमरामैन ने कुछ अच्छे दृश्य कैमरे में कैद किए हैं. जहां गीत संगीत का सवाल है,तो फिल्म का एक गाना ‘‘मेरे रश्के कमर..’ ही ठीक है. जहां तक अभिनय का सवाल है, तो अजय देवगन कुछ कमाल नहीं दिखा पाए. इमरान हाशमी निराश करते हैं. ईलियाना डिक्रूजा जरुर अच्छी लगी हैं. विद्युत जामवाल का अभिनय भी ठीक ही है. संजय मिश्रा के हिस्से कुछ संवाद अच्छे आ गए हैं और उनकी परफार्मेंस भी अच्छी है.
दो घंटे तीस मिनट की अवधि वाली फिल्म का निर्माण मिलन लूथरिया, भूषण कुमार व किशन कुमार ने किया है. फिल्म के लेखक रजत अरोड़ा, निर्देशक मिलन लूथरिया, संगीतकार तनिष्क बागची व अंकित तिवारी तथा कलाकार हैं-अजय देवगन, इमरान हाशमी, ईलियाना डिक्रूजा, शरद केलकर, संजय मिश्रा, ईशा गुप्ता व अन्य.