कुछ दिनों पहले ही हमने आपको बताया था कि देश की सरकार बदलने के साथ ही भारतीय सिनेमा किस तरह बदला हुआ नजर आ रहा है. मगर कोई फिल्मकार दर्शकों के मनोरंजन की बात भूलकर किस तरह सरकारी एजेंडे वाली फिल्म बनाता है, यह जानना हो तो विपुल अमृतलाल शाह निर्मित व देवेन भोजानी निर्देशित फिल्म ‘‘कमांडो 2’’ देखनी चाहिए अन्यथा इस फिल्म में चंद बेहतरीन स्टंट दृश्यों के अलावा कुछ नही है.

यूं तो भारतीय सिनेमा की शुरूआत करने वाले फिल्मकारों ने देश को ब्रिटिशों से आजाद कराने के शस्त्र के रूप में फिल्म का सहारा लिया था. उस वक्त का फिल्मकार इस तरह का धार्मिक व ऐतिहासिक सिनेमा बना रहा था, जिससे देश की जनता का मनोरंजन हो तथा जनता के अंदर देश प्रेम व देश के प्रति कुछ करने की भावना प्रज्वलित हो. सिनेमा की इस कसौटी पर ‘‘कमांडो 2’’ कहीं से भी खरी नहीं उतरती.

कहने को तो फिल्म ‘‘कमांडो 2’’ तीन साल पहले प्रदर्शित हो चुकी फिल्म ‘‘कमांडो’’ का सिक्वअल है. इस फिल्म में कमांडो मलेशिया जाकर देश का काला धन देश में लेकर आने की मुहीम पर है. जो कि वास्तव में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा 2014 में लोकसभा चुनाव के वक्त दिए गए भाषण व किए गए वादे के अनुरूप यह कमांडो चालाकी से देश के उद्योगपतियों व कालाबाजारियों का कालाधन इधर से उधर करने वाली अपराधी विक्की चड्ढा के माध्यम से सारा काला धान तीन करोड़ किसानों के बैंक खातों में ट्रांसफर यानी कि डलवा देने के बाद विक्की चड्ढा को मौत की नींद सुला देता है. और पता चलता है कि यह सारा काम कमांडो व इंस्पेक्टर बख्तावर ने देश के प्रधानमंत्री के अलावा गृहमंत्री के इशारे पर किए हैं.

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