बी आर चोपड़ा निर्मित व यश चोपड़ा निर्देशित 1969 की सफलतम रहस्य प्रधान फिल्म ‘‘इत्तेफाक’’ का 48 वर्ष बाद रीमेक उनके पोते अभय चोपड़ा लेकर आए हैं. फिल्म की पटकथा लिखने के साथ साथ इसका निर्देशन भी अभय चोपड़ा ने किया है. जिन्हें पुरानी ‘इत्तेफाक’ याद है, या जो पुरानी ‘इत्तेफाक’ के प्रशंसक हैं, उन्हें यह फिल्म कम पसंद आ सकती है. वैसे भी इस फिल्म में कई कमियां हैं, जिनके चलते यह फिल्म बाक्स आफिस पर सफलता के झंडे गाड़ेगी, इसमें संशय है.
फिल्म की कहानी शुरू होती है, मशहूर लेखक व अप्रवासी भारतीय विक्रम सेठी (सिद्धार्थ मल्होत्रा) का पुलिस द्वारा पीछा किए जाने के दृष्य से. पुलिस उसे पकड़ नहीं पाती है, पर जब पुलिस को शेखर सिन्हा के कत्ल की खबर मिलती है, तो शेखर सिन्हा के घर पर विक्रम सेठी, पुलिस की पकड़ में आ जाता है. अब पता चलता है कि पहले पुलिस, विक्रम सेठी को अपनी पत्नी व अपने उपन्यास का प्रकाशन करने वाली कंपनी की सीईओ कैथरीन की हत्या का आरोपी समझकर पकड़ने में लगी हुई थी और अब कैथरीन के साथ साथ शेखर सिन्हा की हत्या का आरोप भी विक्रम सेठी पर लगता है.
उधर पुलिस की शक के घेरे में शेखर सिन्हा की पत्नी माया (सोनाक्षी सिन्हा) भी हैं. इसके अलावा संध्या नामक एक रेप पीड़िता द्वारा आत्महत्या किए जाने पर संध्या के पिता ने उसकी हत्या का आरोप विक्रम सेठी पर लगा रखा है. क्योंकि विक्रम सेठी ने संध्या से हमदर्दी जताते हुए उसकी पूरी कहानी जानकर वादा किया था कि उसका नाम उजागर नहीं होगा पर विक्रम सेठी ने अपने उपन्यास में संध्या का नाम उजागर कर दिया था, इसलिए उसे ताने सुनने पड़ रहे थे. इस अपमान से उबकर उसने आत्महत्या कर ली. बहरहाल, पुलिस को कैथरीन व शेखर सिन्हा के कातिल को कटघरे में पहुंचाना है. जांच अधिकारी देव (अक्षय खन्ना) पूरी तन्मयता के साथ जांच कर रहा है.
माया और विक्रम सेठी अपने आपको निर्दोश बताते हुए अपनी अपनी कहानी सुनाते हैं. देव को दोनों की कहानी सच लगती है. काफी मशक्कत के बाद देव, कैथरीन व शेखर सिन्हा के कातिल की पहचान कर लेता है. पर जब असली अपराधी पकड़ से बाहर हो जाता है, तब पता चलता है कि देव के साथ साथ पूरा पुलिस महकमा किस तरह गलत हो गया?
पटकथा लेखक व निर्देशक अभय चोपड़ा की तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने पुरानी फिल्म की कहानी के प्लाट को उठाकर अच्छी पटकथा लिखी. कम से कम पौने दो घंटे तक दर्शक टकटकी लगाए हुए कातिल को जानने के लिए बेसब्र रहता है. इंस्पेक्टर देव की तरह दर्शक भी कातिल का अनुमान लगाने में तब तक असफल होता है, जब तक पटकथा लेखक व निर्देशक सच सामने नहीं लाता है. निर्देशन में भी उनकी खूबी नजर आती है. मगर पटकथा की कमजोरियां हैं.
फिल्म के अंदर दो हवलदारों के माध्यम से कुछ जगह हास्य के दृश्य डाले गए हैं, जो कि जबरन ठूंसे हुए लगते हैं. फिल्म की गति काफी धीमी है, इसे पटकथा की कमी ही गिना जाएगा. कहानी व पटकथा के स्तर पर रहस्यमय घटनाक्रम से युक्त दृश्यों की काफी गुंजाइश रह गयी है. सिद्धार्थ मल्होत्रा यानी कि विक्रम और सोनाक्षी सिन्हा यानी कि माया के बीच कई दृश्य जोड़े जाने चाहिए थे. यदि लेखक व निर्देशक ने इन कमियों पर गौर किया होता, तो शायद यह फिल्म कुछ ज्यादा बेहतर हो सकती थी.
जहां तक अभिनय का सवाल है, तो सिद्धार्थ मल्होत्रा व सोनाक्षी सिन्हा ने कुछ भी कमाल नहीं किया है. इस फिल्म की कमजोर कड़ियों में सिद्धार्थ मल्होत्रा व सोनाक्षी सिन्हा भी हैं. जबकि पुलिस इंस्पेक्टर देव के किरदार में अक्षय खन्ना ने बेहतरीन, सहज व उम्दा अभिनय किया है. दर्शक फिल्म खत्म होने के बाद भी उन्हें याद रखता है. मंदिरा बेदी को छोटे से किरदार में लेकर भी जाया किया गया.
पुरानी फिल्म की तरह इस फिल्म में भी गाने नहीं हैं. पार्श्वसंगीत कमजोर व भटकाने वाला है.
एक घंटा 47 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘इत्तेफाक’’ का निर्माण गौरी खान, रेणु रवि चोपड़ा, करण जोहर व हीरु यश जोहर ने किया है. पटकथा लेखक व निर्देशक अभय चोपड़ा, संगीतकार तनिस्क बागची तथा कलाकार हैं- अक्षय खन्ना, सिद्धार्थ मल्होत्रा, सोनाक्षी सिन्हा, मनेाज जेाशी पारुल गुलाटी, मंदिरा बेदी, हिमांशु कोहली व अन्य.