मिर्जा साहिबां की क्लासिक प्रेम कहानी को तमाम फिल्मकार अपने अपने अंदाज में पेश करते रहे हैं. लगभग6 माह पहले मशहूर फिल्मकार राकेश ओमप्रकाश मेहरा ने अपनी फिल्म ‘‘मिर्जिया’’ में एक साथ दो कहानियों यानी कि मिर्जा साहिबां की क्लासिक प्रेम कहानी व आधुनिक युग के मिर्जा साहिबां की प्रेम कहानी को समानांतर पेश करते हुए साहिबां तीर क्यों तोड़े का जवाब तलाशने का प्रयास किया था. अब उसी क्लासिक प्रेम कहानी को निर्देशक राजेश रामसिंह उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर की पृष्ठभूमि में बाहुबलियों व हिंदू मुस्लिम परिवारों की पृष्ठभूमि में इस तरह लेकर आए हैं कि कहानी का पूरा मर्म धराशाही हो गया. फिल्म ‘‘मिर्जा जूलिएट’’ प्यार व रोमांस की बजाए एक्शन, राजनैतिक महत्वाकांक्षा के चलते अपने भाई की हत्या करा देने से लेकर आनर किलिंग तक के सारे मुद्दों से ओतप्रोत एक बोझिल फिल्म बनकर रह गयी है.

फिल्म ‘‘मिर्जा जूलिएट’’ की कहानी उत्तर भारत के मिर्जापुर शहर की है, जहां हिंदू और मुसलमान दोनों धर्म के लोग रहते हैं. यहां बाहुबली धर्मराज शुक्ला (प्रियांशु चटर्जी) अपने दो भाईयों नकुल व सहदेव व बहन जूली के साथ रहते हैं. जूली मस्त व बिंदास है. वह निडरता के साथ हर किसी से पंगे लेती रहती है. उसे अपने प्रति अपने भाईयों के प्रेम का अहसास है. जूली की शादी इलाहाबाद के दबंग नेता पांडे परिवार में तय की गयी है. जूली के होने वाले पति राजन पांडे (चंदन राय सान्याल) कामुक किस्म के इंसान है. राजन, जूली को जुलिएट पुकारते हैं और फोन पर किस व सेक्स की बात करते हैं. पर जूली उनकी बातों पर ध्यान नहीं देती. निजी जीवन में जूली बिंदास है, मगर प्यार, रोमांस व सेक्स से अपरिचित सी है.

इधर रामनवमी के दिन  इलहाबाद में हिंदू और मुसलमानों के जुलूस निकल रहे होते हैं, दोनों में से कोई रास्ता बदलना नहीं चाहते. उस क्षेत्र का पुलिस अधिकारी मुस्लिम नेता सलाउद्दीन और हिंदू नेता यानी कि राजन पांडे चाचा देवी पांडे को राह बदलने के लिए समझाने का असफल प्रयास करते हैं. तभी वहां पुलिस की वर्दी में एक शख्स आता है और देवी पांडे पर गोली चलाकर चला जाता है. आरोप सलाउद्दीन पर लगता है. उधर पता चलता है कि पुलिस वर्दी वाला शख्स जेल का कैदी मिर्जा (दर्शन कुमार) है, जिसने वहां के पुलिस अफसर पाठक के इशारे पर इस हत्या को अंजाम दिया है.

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