“अगर कोई महिला ‘ना’ कहे तो उसे ना को हां नहीं, ना ही समझना चाहिए, फिर चाहे वह गर्लफ्रेंड हो, दोस्त हो या पत्नी या फिर सेक्स वर्कर.” अमिताभ बच्चन द्वारा अंत में कहे गए ये संवाद पूरे हॉल में गूंज रहे थे.

शूजीत सरकार की फिल्म ‘पिंक’ जिसका निर्देशन अनिरुद्ध राय चौधरी ने किया है, पुरुष मानसिकता पर एक जोरदार तमाचा है, जहां महिलाओं के साथ वे कुछ भी करने से नहीं डरते. अगर वह पुरुष ‘सो कॉल्ड’ अमीर रईसजादे हो तो फिर क्या कहने, पुलिस से लेकर पूरा ‘सिस्टम’ उस आपराधी को पनाह देने की कोशिश करने लगता है. महिलाओं को कोर्ट कचहरी पुलिस कहीं भी न्याय मिलना मुश्किल हो जाता है.

महिलाओं के साथ ‘मोलेस्टेशन’ पर बनी इस थ्रिलर फिल्म में अमिताभ बच्चन के साथ-साथ सभी अभिनेत्रियों ने जबरदस्त अभिनय किया है. इस फिल्म के लेखक रितेश शाह की भी तारीफ करनी होगी, जिन्होंने हर जगह अपने अद्भुत लेखनी का परिचय देकर इस फिल्म से दर्शकों को बांधे रखा. इस फिल्म में कोर्ट रूम का प्रसंग काबिले तारीफ है.

कहानी इस प्रकार है...

दिल्ली के पॉश एरिया में तीन कामकाजी महिलाएं एक फ्लैट में रहती है. मिनल अरोड़ा (तपसी पन्नू), फलक अली (कीर्ति कुल्हारी) और आंद्रिया (आंद्रिया तेरियांग) ये सभी अपना-अपना जॉब करती है लेकिन शाम को समय मिलने पर ये मौज-मस्ती भी करती है. ऐसे ही एक कॉन्सर्ट में ये लड़कियां राजवीर (अंगद बेदी) और उनके दो दोस्तों से मिलती है. जिसे ये पहले से थोड़ी जानती थी.

कॉन्सर्ट के बाद राजवीर और उसके दोस्त उसे एक रिसोर्ट में डिनर के लिए बुलाते है जहां ये लड़कियां थोड़ी ड्रिंक्स ले लेती है, यहीं से उनकी मुसीबतें शुरू हो जाती है. नशे में चूर राजवीर गलत तरीके से मिनल को छूने लगता है और उसके बार-बार मना करने पर भी जब वह नहीं मानता और जबरजस्ती करता है तब वह एक बोतल से उस पर वार करती है. जिससे उसे गहरी चोट लग जाती है. तीनों लड़कियां वहां से भागती है, पर ये लड़के उसे छोड़ते नहीं है. उनपर फिर से कहर ढाने की साजिश रचते रहते है. पुलिस में उनके खिलाफ बदचलन और सेक्स वर्कर होने का इलजाम लगाते है.

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