संजय लीला भंसाली की वेब सीरिज हीरामंडी में जो तवायफों का जीवन दिखाया गया है उसे अधिक ग्लैमराइस करके दिखाया गया है. यह कहानी वास्तिवकता से अधिक दिखावा ज्यादा लग रही है. हमेशा की तरह से संजय लीला भंसाली ने भव्य सेट और महिलाओं को जरूरत से ज्यादा गहनों में सजा प्रदर्शित किया है. पहले के समय में एक तवायफ की जिंदगी बेकार हुआ करती थी. हालांकि को राजाओं के घर में हुआ करती थी वो अच्छी थी.
आजकल की औरतों के दृष्टिकोण से देखा जाए तो यह आज की औरत को अपमानित करने जैसा है. आज महिलाएं हर क्षेत्र में तेजी से आगे बढ़ रही हैं. उसकी स्थिति ऐसी नहीं है जो वो एक हार के लिए बिक जाए.
फिक्म में महिलाओं का जो किरदार दिखाया गया है उनसे लगता है कि वो एक दूसरे की समर्थक तो हैं ही लेकिन विरोधी भी हैं. इन किरदारों को खाला आपा और हूजूर के रूप में प्रदर्शित किया गया है.
महिलाओं को लाहौर की रानियों के रूप में दिखाया गया है लेकिन वास्तव में पुरूषों की एहमियत महिलाओं से अधिक है.
फिल्म में जो एकेटर्स मेल रोल में हैं वो प्रेमी भी नहीं है साथी भी नहीं है और पति भी नहीं हैं वो लोग साहब हैं. हीरामंडी में महिलाओं को पुरूषों जैसा सम्मान नहीं मिल रहा है क्योंकि दोनों एक स्तर के नहीं हैं.
लेकिन अगर बात दमन करने की हो तो वो पुरुषों की तरफ से होता है. उस्ताद जी का जो किरदार है वो जनखे के रूप में दिखाया गया है जो तवायफों के इर्द-गिर्द धूमता रहता है. फिल्म में जो महिला किरदारों के बीच बातचीत होती है उनमें भई वहीं वर्णन है कि वो जुल्म सहती है प्रताड़ित होती है इससे अलग कुछ भी नहीं दिखाया गया है. पूरी फिल्म में बाजार में आपको कोई खुशी नजर नहीं आएगा. लगता है कि यह महिलाओं की दुर्गति की कहानी है जो कभी खत्म नहीं होती.