हिंदी सिनेमा इन दिनों वैचारिक दिवालिएपन से जूझ रहा है. मूल कहानियों के बजाय रीमेक और हौलीवुड की फिल्मों के आइडिया चुराए जा रहे हैं. पुराने गाने रीमिक्स की मिक्सी में डाल कर नए सिरे से परोसे जा रहे हैं. लिहाजा, इंडियन बौक्सऔफिस पर इस का पूरा फायदा हौलीवुड उठा रहा है. आहिस्ताआहिस्ता वह हिंदी फिल्मों के बाजार में अपनी घुसपैठ बना रहा है. पहले चंद फिल्मों के डब वर्जन के साथ रिलीज होने वाली फिल्में आज हजारों प्रिंट के साथ रिलीज हो रही हैं. इतना ही नहीं, वहां का लगभग हर बड़ा प्रोडक्शन हाउस मुंबई में अपना औफिस खोल चुका है. जहां से वह न सिर्फ फिल्मों का निर्माण कर रहा है बल्कि यहां के कमाऊ बाजार में अपनी हिस्सेदारी भी बढ़ा रहा है.

हालांकि इस के लिए बौलीवुड खुद ही दोषी है, जो पटकथाओं पर काम करने और अपना मैनरिज्म विकसित करने के बजाय जबतब हौलीवुड की नकल करता है. फिल्मों की कहानी, ट्रीटमैंट, बिजनैस रणनीति, फिल्म मेकिंग स्टाइल से ले कर बौलीवुड की हर नब्ज पर हौलीवुड इस कदर हावी है कि इस की बानगी तब देखने को मिली, जब हौलीवुड के नामचीन फिल्म निर्देशक स्टीवन स्पीलबर्ग भारत आए.

स्टीवन के आने की खबर फैलते ही पूरा बौलीवुड सब कामकाज छोड़ कर उन से मिलने को बेताब दिखा. कुछ निर्मातानिर्देशक तो अपनी फिल्मों की शूटिंग बीच में ही छोड़ कर स्टीवन से गुरुज्ञान लेने के लिए इतने उतावले दिखे कि मानो हिंदी सिनेमा अभी अपने शैशवकाल में है और यही फिल्मकार उन के सिनेमा को वयस्क करेगा.

भोपाल में प्रकाश झा की फिल्म सत्याग्रह की शूटिंग में बिजी बिग बी से भी नहीं रहा गया. वे भी फिल्म की शूटिंग अधूरी छोड़ कर मुंबई में स्टीवन की शरण में जा पहुंचे. किसी बाहरी फिल्मकार से अपने अनुभवों को साझा करना कोई गलत बात नहीं है, पर जो फिल्मकार रिलायंस कंपनी के साथ हुए एक व्यावसायिक करार के चलते अपनी फिल्म ‘लिंकन‘ के प्रचार के चतुर व्यापारी का लबादा ओढ़ कर आया हो, उसे यह कह कर प्रचारित किया जाए कि स्टीवन हिंदी फिल्मकारों से मिल कर भारतीय सिनेमा के उत्थान को ले कर गंभीर चर्चा करेंगे, उसी पुरानी मानसिकता का प्रतीत है, जहां हम विदेशियों के सामने खुद को कमतर और बौना महसूस करने लगते हैं.

जब वे आए तो अखबारों में लिखा गया कि स्टीवन 61 बौलीवुड कलाकारों के साथ बातचीत करेंगे और उन्हें फिल्म निर्माण के गुर सिखाएंगे. मानो अभी तक हिंदी सिनेमा में किसी को फिल्म निर्माण की एबीसीडी भी नहीं आती हो.

जब स्टीवन आए तो उन से मिलने के लिए शाहरुख, आमिर, राज कुमार हिरानी, अनुराग कश्यप, फरहान अख्तर, जोया अख्तर, अभिषेक कपूर, हबीब फैसल, राम गोपाल वर्मा, संजय लीला भंसाली और फराह खान जैसी 61 मशहूर हस्तियां रातोंरात वहां पहुंच गईं. क्या कभी हिंदी सिनेमा के विकास और उस की खामियों को दूर करने के लिए इतने बड़े नाम एक जगह पर जमा हुए हैं? शायद नहीं, फिर यह ढोंग क्यों?

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. अकसर इस तरह का नजारा दिखता है, फिर चाहे वे स्टीवन आए हों, ब्रैड पिट, एंजलीना जोली या फिर ओपेरा का भारत दौरा हो. हमारी सोच पर हौलीवुड का हौआ इस कदर हावी है कि हम कमतरी के एहसास से उबर ही नहीं पाते हैं.

अकसर हम हौलीवुड की बात चलते ही कह देते हैं कि वहां सिनेमा तकनीक से चलता है और हम तकनीकी तौर पर काफी पिछड़े हैं. सोचने वाली बात यह है कि जिन सत्यजीत रे को औस्कर से नवाजा गया था, उन की किसी फिल्म में तकनीकी की कमी दिखती है क्या? असल में ये सारे बहाने हैं. जैसा कि विदेशी फिल्मों की नकल बनाने में माहिर विक्रम भट्ट ने हाल ही में एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि हम विदेशी फिल्में उठा कर इसलिए बनाते हैं क्योंकि उन फिल्मों के बारे में हमें पता होता है कि वे हिट थीं या असफल. ऐसे में फिल्म की सफलता की गारंटी बढ़ जाती है.

दुनिया जानती है कि भारतीय सिनेमा हौलीवुड से कहीं ज्यादा व्यापक और कमाऊ है. यहां जितनी फिल्में सभी भाषाओं में मिल कर बनती हैं, उन की आधी भी हौलीवुड में नहीं बनतीं. इस के बावजूद हम विदेशी फिल्मकारों को हौआ और औस्कर को इतनी ललचाईर् नजरों से क्यों देखते हैं, यह बात समझ से परे है.

और तो और हिंदी फिल्मों के कई नामी चेहरे हौलीवुड की फिल्मों में बचकाने और चंद सैकंड की हास्यास्पद उपस्थिति पा कर ऐसे उछलते हैं कि मानो उन का लीड रोल हो. फिर उस छोटे से रोल का डंका पीट कर फिल्म का फ्री में प्रचार करने लगते हैं, जबकि सचाई यह है कि हौलीवुड फिल्ममेकरों को भारत कमाई का एक बड़ा बाजार नजर आता है. जाहिर है, अगर उन्हें यहां के बाजार को पूरी तरह भुनाना है, तो करोड़ों प्रचार पर भी खर्चने होंगे.

इस के लिए उन्होंने यह तरीका निकाला कि करोड़ों खर्च करने के बजाय अगर यहां के किसी पौपुलर हीरो को छोटामोटा रोल दे दिया जाए, तो एक तीर से दो शिकार हो सकते हैं. प्रचार होगा सो होगा, इसी बहाने उस स्टार के फैंस भी बतौर दर्शक फ्री में मिल जाएंगे. उन की रणनीति काम कर गई .

अब बौलीवुड सितारों को हौलीवुड का फीवर चढ़ गया है इसलिए अब जहां अनजाने में अनिल कपूर ‘मिशन इंपौसिबल‘ का भारत में मुनाफा करवा रहे हैं, वहीं इरफान खान ‘द अमेजिंग स्टोरी औफ स्पाइडर मैन‘ का. गौरतलब है कि ये दोनों कलाकार इन फिल्मों में बड़े ही मामूली रोल में नजर आए थे.

दरअसल, हौलीवुड, बौलीवुड की वैचारिक रीढ़ में दीमक की तरह घर कर चुका है और उसे दिनबदिन खोखला करता जा रहा है. यहां के फिल्मकार विदेशी फिल्मों की नकल करते यह बात पूरी तरह से भूल चुके हैं कि हमारे देश में भी सत्यजीत रे, तपन सिन्हा, मृणाल सेन, गोविंद निहलानी और श्याम बैनेगल जैसे फिल्मकार रहे हैं और आज भी हैं, जो फिरंगी जमीन पर अपने काम का लोहा मनवाते रहे हैं. पर लगता है कि अब हम खुद ही हौलीवुड के मायाजाल से बाहर निकलने के लिए तैयार नहीं हैं.

आलम यह है कि आज जिन निर्देशकों को प्रतिभावान माना जाता है, वे भी पूरी तरह से विदेशी फिल्मों की छवि में कैद नजर आते हैं. जहां अनुराग कश्यप अपनी सफल फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर‘ पर तारंतीनों का प्रभाव स्वीकार करते हैं, वहीं भट्ट कैंप जैसा बड़ा बैनर अपनी हर फिल्म को विदेशी फिल्म से पहले चुरा कर बनाता था, अब बाकायदा अधिकार खरीद कर. जैसा हाल ही में ‘मर्डर 3‘ के साथ हुआ.

गौरतलब है कि ’मर्डर 3’ को स्पैनिश फिल्म ’द हिडन फेस’ के औफिशियल राइट खरीद कर बनाया गया है. उस पर भी अनुराग कश्यप कहते हैं कि भारतीय सिनेमा की कोई एक पहचान नहीं है. अब इन्हें यह कौन समझाए कि जब आप ही अपनी विधा को विकसित करने के बजाय हौलीवुड के मैनरिज्म अपनी फिल्मों में दोहराते हैं, तो फिर पहचान कहां से बने.

तिगमांशु धूलिया के साथ ’पान सिंह तोमर’ जैसी फिल्म लिखने वाले संजय चौहान कहते हैं कि जब से फौरेन स्टूडियो भारत आए हैं, डीवीडी की चोरियां रुकी हैं. अब महेश भट्ट और अब्बासमस्तान भी राइट खरीद कर नकल कर रहे हैं. गौर करने की बात यह है कि बिना बताए चोरी भले ही हिंदी फिल्मकारों ने छोड़ दी हो, पर खरीद कर ही सही नकल से वे बाज नहीं आते.

यह तो बात हुई बौलीवुड पर हौलीवुड की मानसिकता के हावी होने की. अब जरा इस बात पर चर्चा करते हैं कि आर्थिक मोरचे पर हौलीवुड ने किस तरह से बौलीवुड को बुरी तरह दबाना शुरू कर दिया है. ग्लोब्लाइजेशन के इस दौर में फिल्मों का दायरा कुछ मुल्कों तक ही सीमित नहीं रह गया है.

आज बौलीवुड और हौलीवुड की फिल्मों के दर्शक लगभग एक से हो गए हैं. लिहाजा, विदेशी फिल्में भारतीय बौक्सऔफिस  पर न सिर्फ जोरशोर से रिलीज हो रही हैं बल्कि कमाई के मामले में हिंदी फिल्मों को कड़ी टक्कर भी दे रही हैं. हालांकि पहले इक्कादुक्का हौलीवुड फिल्में ही भारत में रिलीज होती थीं और इन की कमाई का असर हिंदी फिल्मों में न के बराबर था, पर जैसेजैसे यहां के दर्शकों का रुझान बदला है और मल्टीप्लैक्स कल्चर का दौर आया, सारा गणित ही उलटा हो गया है.

बात चाहे हाल में रिलीज फिल्म ’लाइफ औफ पाई’ की हो या फिर ’स्काईफाल’ और ’द ऐवेंजर्स’ की. इन फिल्मों का कारोबार कई बड़ी हिंदी फिल्मों से ज्यादा था.

जेम्स बौंड सीरीज की फिल्म ’स्काईफाल’ ने जहां इंडियन बौक्सऔफिस पर लगभग 50 करोड़ से ज्यादा की कमाई की. वहीं ’लाइफ औफ पाई’ तो कई दिनों तक सिनेमाघरों में चली थी. गौरतलब है कि यह फिल्म शाहरुख की ’जब तक है जान’ और अजय देवगन की ’सन औफ सरदार’ के आसपास रिलीज हुई थी पर शाहरुखअजय की फिल्में सिनेमाघरों से कब की उतर चुकी हैं.

’द एवेंजर्स’ ने पहले हफ्ते में ही 29 करोड़ की नैट कमाई की, जबकि थ्री डी में बनी स्पाइडरमैन सीरीज की नई फिल्म ने एक हफ्ते में 40 करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई की.

हौलीवुड की इंडिया में लगातार बढ़ती कमाई का ही असर है कि अब कुछ हौलीवुड फिल्में अमेरिका से पहले भारत में ही रिलीज होने लगी हैं. वरना पहले तो हौलीवुड फिल्में महीनों पहले वहां रिलीज हो जाती थीं, फिर कभीकभार जा कर यहां रिलीज होती थीं. इसी के परिणामस्वरूप मार्बल स्टूडियो की फिल्म ’द एवेंजर्स’ अमेरिका से पहले इंडिया में रिलीज हुई. 

एक अखबार के अनुसार हौलीवुड बौलीवुड पर इस कदर हावी होता जा रहा है कि एक जमाने में गिनती के प्रिंट के साथ रिलीज होने वाली अमेरिकी फिल्में अब हजारों प्रिंट के साथ सिनेमाघरों में उतर रही हैं. मसलन, ’एवेंजर्स’ 800 स्क्रीन, ’द एडवेंचर औफ टिनटिन’ 350 स्क्रीन और ’द हंगर गेम्स’ 240 स्क्रीन पर रिलीज की गई.

खबर है कि आने वाले 3 महीने में हौलीवुड के शीर्ष स्टूडियो ने करीब आधा दर्जन फिल्मों को अमेरिका से पहले भारत में रिलीज करने की प्लानिंग कर ली है.

इस के अलावा हौलीवुड के कई बड़े बैनर और फिल्म स्टूडियो मसलन, सोनी पिक्चर्स, वार्नर ब्रदर्स, फौक्स इंडिया, वाल्ट डिज्नी, एशिया में बड़ी योजनाओं के तहत भारत में अपना प्रोडक्शन हाउस खोल चुके हैं. असल में इस सब के पीछे की खास वजह है कि इन की नजर भारतीय बाजार में मिलने वाले मुनाफे पर है.

बौलीवुड में हौलीवुड फिल्मों की बढ़ती कमाई और इन को मिली जबरदस्त कामयाबी ने बौलीवुड की नींद उड़ा दी है. इस में कोई दो राय नहीं कि हिंदी फिल्मों की थीम और मैनरिज्म पर हौलीवुड का प्रभाव दिखता है, लेकिन डर इस बात का है कि जिस तरह से हौलीवुड ने यूरोपीय सिनेमा के अस्तित्व को अपने सामने नगण्य कर दिया है, वह हिंदी सिनेमा का भी ऐसा हश्र नहीं करेगा?

बहरहाल, मानसिक और आर्थिक तौर पर हावी होते हौलीवुड से पार पाना बौलीवुड के लिए भविष्य में काफी मुश्किलें खड़ी कर सकता है. बेहतर होगा कि बौलीवुड की समस्त विधाओं के जानकार अभी से चेत जाएं और खुद को वैचारिक और तकनीकी स्तर पर मजबूत करें वरना हौलीवुड के समुद्र में बौलीवुड एक छोटी मछली की तरह कहीं लुप्त हो जाएगा.

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