दिल्ली निवासी बौलीवुड की खूबसूरत अदाकारा हुमा कुरैशी को दर्शक उन की सुंदरता और दमदार अभिनय के साथसाथ वजन के कारण भी जानते हैं. कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद हुमा थिएटर से जुड़ गईं. 2008 में उन्हें हिंदुस्तान यूनीलीवर के लिए मौडलिंग करने का मौका मिला. उन का फिल्मी सफर अनुराग कश्यप की फिल्म ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ से शुरू हुआ. इस फिल्म में हुमा ने मुख्य भूमिका निभा कर बेहतरीन अभिनय की छाप छोड़ी. इस के बाद ‘गैंग्स औफ वासेपुर-2’, ‘लव शव ते चिकन खुराना’, ‘एक थी डायन’, ‘डेढ़ इश्किया’ जैसी फिल्मों में काम कर अपनी अभिनय प्रतिभा से दर्शकों का दिल जीता.
हाल ही में हुमा कुरैशी ने विपुल साडि़यों के नए कलैक्शन को लौंच किया. उसी दौरान उन से रूबरू होने का मौका मिला तो कुछ चटपटे सवालजवाबों का आदानप्रदान हुआ:
आप ने अपने कैरियर की शुरुआत थिएटर व मौडलिंग से की. क्या अब भी आप थिएटर से जुड़ी हुई हैं?
थिएटर मुझे बहुत पसंद है. अगर मौका मिलेगा तो जरूर करना चाहूंगी. पर अब मैं थोड़ी लालची हो गई हूं. अब मुझे फिल्मों में ऐक्टिंग करने में मजा आने लगा है, क्योंकि फिल्मों के जरीए हम ज्यादा लोगों के पास पहुंच पाते हैं.
आप की नजर में सैक्स अपील का मतलब?
मेरे हिसाब से सैक्स अपील का मतलब होता है कि आप किसी चीज को कितना चाहते हैं, आप किसी चीज को कितना पसंद करते हैं, आप उस के कितना पास रहना चाहते हैं. जब हम ट्रैवल करते हैं, तो हमारे फैंस हम से हाथ मिलाते हैं. हमें छूना चाहते हैं. यही सैक्स अपील है. ये कूल हैं और मुझे लगता है सब से कूलैस्ट लोग ही अपीलिंग होते हैं.
आतंकवाद को खत्म करने का कौन सा उपाय सुझाएंगी?
कू्ररता और हिंसा फैलाने के लिए निर्दोषों को मारना अमानवीय कृत्य है. आतंकवाद को खत्म करने के लिए दुनिया का एकजुट होना बेहद जरूरी है.
आप को लगता है कि बौलीवुड में जीरो साइज फिगर का क्रेज खत्म हो गया है?
जी हां, यह तो 1 साल पहले खत्म हो गया था जब मैं ने एक मैगजीन के कवर पेज के लिए फोटो शूट कराया था. असली हिंदुस्तानी लड़की की बौडी में एक ग्रेस होता है. बीच में कुछ सालों के लिए यह पागलपन आया था. पर अब खत्म हो चुका है.
क्या आप को भी साड़ी पहनना पसंद है?
हां, पसंद तो है पर मुझे आदत नहीं है. लेकिन साड़ी हर लड़की को ब्यूटीफुल लुक देती है. साड़ी महिलाओं का खूबसूरत परिधान है. सोरोना डुपोंट साडि़यां बहुत कंफर्टेबल होती हैं. आप उन्हें आसानी से कैरी कर सकती हैं. शिफौन, क्रेप और साटन साडि़यां भी बेहद आरामदायक होती हैं, जो पहनने वालों के स्टाइल और आराम को ध्यान में रख कर बनाई जाती हैं. फिर फूल सी हलकी इन साडि़यों का रखरखाव भी बहुत आसान है.
दिल्ली से मुंबई कैसे पहुंचीं?
मैं मुंबई फिल्मों की वजह से पहुंची. बचपन से ही मुझे फिल्में पसंद थीं और मैं फिल्मों में काम करना चाहती थी. मगर किसी को बताती नहीं थी, क्योंकि अगर दिल्ली की कोई लड़की बोले कि उसे हीरोइन बनना है, तो सब उस का मजाक बनाते. इसलिए अपना कैरियर बनाने के लिए पहले थिएटर में काम किया और फिर मुंबई आ गई.
फिल्म इंडस्ट्री में आप की ऐंट्री काफी धमाकेदार थी, पर ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ फिल्म के बाद आप का फिल्मी कैरियर थोड़ा धीमा हो गया. आप क्या कहना चाहेंगी?
मैं फिल्मी फैमिली से नहीं हूं. यहां मेरा कोई अंकल प्रोड्यूसर नहीं है, जो मेरे लिए फिल्में प्रोड्यूस करे. मुझे खुद मेहनत करनी पड़ती है. ऐक्टिंग भी जौब की तरह है. इस बीच मैं ने 6 फिल्में की हैं और सभी ठीकठाक चली हैं.