अभिनय के सफर की शुरुआत हौलीवुड से करने वाले सिड मक्कड़ का सफर बौलीवुड से होते हुए छोटे परदे तक आ पहुंचा है. जी टीवी के नए शो ‘लाजवंती’ के प्रमोशन पर दिल्ली पहुंचे सिड से उन के नए शो और उन के फिल्मी सफर के बारे में बातचीत हुई. पेश हैं, बातचीत के खास अंश:

सभी कलाकार तो थिएटर से अभिनय की शुरुआत कर के बाद में हौलीवुड पहुंचते हैं. पर आप का यह सफर उलटा क्यों रहा?

जी हां, मैं ने अपने अभिनय की शुरुआत अंगरेजी फिल्म ‘द बैस्ट एग्जौटिक मैरीगोल्ड होटल’ से की थी क्योंकि मेरी सिर्फ अच्छे अभिनय के लिए फिल्में करने चाह रही है. इस फिल्म में मैं ने हौलीवुड के चोटी के अभिनेता रिचर्ड गेरे और जूडी गेंच के साथ अभिनय किया. इस के बाद हुआ यह कि पहली ही फिल्म इतने बड़े कलाकारों के साथ करने के बाद मैं सिर्फ हौलीवुड फिल्मों के बारे में सोचने लगा. लेकिन आप अपनी पहचान सिर्फ हौलीवुड की फिल्में कर के नहीं बना सकते, इसलिए कई अच्छी कहानियों वाली बौलीवुड फिल्में भी मैं ने कीं. ‘दस तोला’, ‘लक बाई चांस’, ‘किसकिस की किस्मत’ मेरी हिंदी फिल्में हैं. फिर यह लगा कि असली पहचान बनाने का माध्यम तो छोटा परदा है. लेकिन मैं सास बहू वाले डेली सोप में काम नहीं करना चाहता था, इसलिए टीवी शोज भी मैं ने वही किए जिन की कहानियों में अभिनय दिखाने का मौका हो.

आप ने इस शो से पहले ऐपिक टीवी के शो ‘दरीबा डायरी,’ उस के बाद ‘लाजवंती’ में अभिनय किया. क्या पुरानी कहानियों से प्यार है?

‘दरीबा डायरी’ 1850 के समय की हिस्टौरिकल सीरीज थी और ‘लाजवंती’ 1947 के बंटवारे के वक्त की कहानी है. इन दोनों टीवी शोज में एक बात तो निश्चित थी कि इस के किरदारों के अभिनय की परदे पर असल परीक्षा होने वाली थी और मैं यह आप को पहले भी बता चुका हूं कि मैं सिर्फ वही शोज या फिल्में साइन करता हूं जिन में ऐक्टिंग दिखाने का मौका मिले. जब ‘लाजवंती’ की डाइरैक्टर इलाजी ने बताया कि यह उन के दादाजी की लिखी कहानी है और बहुत पहले इस पर फिल्म बनने वाली थी जिस में दिलीप कुमार साहब को काम करना था. मैं ने तुरंत हामी भर दी क्योंकि मुझे लगा कि रोल में जरूर कुछ चैलेंजिंग होगा तभी तो दिलीपजी ने इस रोल के लिए हां किया था.

महिलाओं की स्थिति में पहले से क्या सुधार आया है, आप इसे किस तरह देखते हैं?

बेशक पहले की अपेक्षा महिलाओं की स्थिति में सुधार हुआ है. आज हम अपने बराबर ही उन्हें पाते हैं. कई महिलाओं ने तो पुरुषों को कई क्षेत्रों में पीछे ही छोड़ दिया है. लेकिन आज भी कई घटनाएं ऐसी सुनने में आती हैं जिन से यही लगता है कि हमारे समाज ने कोई प्रगति नहीं की है. हम आज भी वहीं के वहीं हैं, जहां महिलाओं को सिर्फ उपभोग की वस्तु समझा जाता है.

लोग आप में शशि कपूर को देखते हैं. आप ने कभी महसूस किया?

पहले तो कभी ध्यान नहीं दिया पर जब से आप लोगों ने बताया कि मैं शशि कपूर जैसा दिखता हूं तब से जरूर शशि साहब से अपने लुक की तुलना करने लगा हूं. मैं ने उन की सारी फिल्में देख डालीं, तो उन के जैसे हेयरस्टाइल की भी कौपी की है. पर अभी उन की जैसी ऐक्टिंग करने में मात खा रहा हूं. 

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