अमित साध ने अपने करियर की शुरूआत छोटे परदे पर अभिनय करते हुए की थी. पर बाद में वह फिल्मों से जुड़ गए. लगभग 14 साल के उनके करियर पर यदि गौर किया जाए, तो एक बात उभर कर आती है कि उन्हें जिस मुकाम पर पहुंचना था, उस मुकाम तक वह नहीं पहुंच पाए. उन्होंने कई सफल फिल्में की, मगर उन फिल्मों का श्रेय दूसरे कलाकार बटोर ले गए. फिलहाल वह फिल्म ‘रनिंग शादी’ को लेकर चर्चा में हैं.

आपने काई पो चे, सुल्तान सहित कई बेहतरीन फिल्मों में अभिनय किया. इसके बावजूद आपके करियर में जो होना चाहिए था, जिस मुकाम पर आपको होना चाहिए था, वहां तक आप नहीं पहुंच पाए?

सबका अपना वक्त होता है. हर इंसान की जो यात्रा है और जो उसकी निर्धारित गति है, वह आपके हाथ में नहीं होती है. आपके हाथ में आपका अपना जज्बा है. आपकी शिद्दत, आपकी नियति है. फिल्म ‘काई पो चे’ के बाद मेरी कई फिल्में बनीं, पर लंबे समय तक वह प्रदर्शित नहीं हुई. मेरे हाथ में सिर्फ मैं ही था. तो मैंने अपने आपको खींच कर रखा, समेट कर रखा. मैंने अपने आपको बिखरने नहीं दिया. 2014 में मेरी कोई फिल्म प्रदर्शित नहीं हुई. 2015 में मेरी फिल्म ‘गुड्डू रंगीला’ आयी, जिसे बॉक्स ऑफिस पर सफलता नहीं मिली. यह भी मेरे हाथ में नहीं था. 2016 में सलमान खान के साथ मेरी फिल्म ‘सुल्तान’ आयी, जिसे पूरी दुनिया ने देखा. पर यह भी मेरे हाथ में नहीं था.

तो जो कुछ आपके अपने हाथ में नहीं है, उसके लिए सोच कर परेशान होना या अपनी चिंताएं बढ़ाना, अपने स्वास्थ्य को खराब करना, क्या मायने रखता है? अब 2017 में मेरी एक नहीं चार फिल्में रिलीज होने वाली हैं. इस वक्त आपने मुझे अमिताभ बच्चन के पिता हरिवंश राय बच्चन की वह लाइन गुनगुनाने के लिए प्रेरित कर दिया, जिसे आमिताभ बच्चन हमेशा गुनगुनाते हैं, ‘‘मन का हो तो अच्छा, मन का ना हो, तो ज्यादा अच्छा’’ मैंने इस पंक्ति पर सिद्धि प्राप्त कर ली है.हर दिन सुबह उठकर उपर वाले से यही प्राथना करता हूं. मैं उनसे कभी कुछ नहीं मांगता हूं. हर दिन सुबह उठकर धन्यवाद अदा करता हूं.

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