प्रसिद्ध और चर्चित अभिनेता गोविंदा बॉलीवुड के उन सितारों में से हैं जिन्होंने शायद ही 80 और 90 दशक के किसी अभिनेत्री या अभिनेता के साथ काम न किया हो. नीलम, जूही चावला, करिश्मा कपूर, रवीना टंडन, रानी मुखर्जी, कादर खान, संजय दत्त, परेश रावल, सतीश कौशिक, जॉनी लीवर आदि सभी के साथ उन्होंने अभिनय किया है.

आज की अभिनेत्रियों के साथ भी उनकी जोड़ी हमेशा सराही गयी, उन्हें जो भी भूमिका मिली वे उसी में ढलते चले गए, फिर चाहे वह रोमांटिक हीरो हो या कॉमेडी या एक्शन, हर किरदार में उन्होंने अपना लोहा मनवाया है. बचपन से ही अभिनय को अपना सबकुछ मानने वाले गोविंदा केवल फिल्मी पर्दे के हीरो ही नहीं, रियल लाइफ में भी हीरो हैं. उनका रहन-सहन, चाल-ढाल और लाइफस्टाइल हर बात में हीरो की झलक मिलती है.

फिल्म इंडस्ट्री में प्रवेश पाना उनके लिए मुश्किल भले ही थी, पर उनकी जिन्दादिली और हंसमुख स्वभाव की वजह से वे दर्शकों के चहेते बहुत कम समय में बन गए थे. उनके जैसे कॉमेडी की भूमिका करने वाले अभिनेता आज भी नहीं है. उन्होंने फिल्म ‘हद कर दी’ में एक साथ परिवार के 6 सदस्यों की भूमिका निभाकर वाकई हद कर दिया था. यही वजह थी कि उन्होंने एक समय में 49 फिल्में तीन सप्ताह में साइन भी की थी.

गोविंदा का असली नाम गोविन्द अरुण कुमार आहूजा है. अपने 6 भाई-बहन में सबसे छोटे होने की वजह से उन्हें ‘ची ची’ बुलाया जाता है, जिसका पंजाबी में शाब्दिक अर्थ छोटी ऊंगली है. गोविंदा को फिल्मों में आने की प्रेरणा फिल्म ‘डिस्को डांसर’ से मिली, जिसमें मिथुन चक्रवर्ती के डांस से वे काफी प्रभावित हुए और अपने डांस की वीडियो कैसेट्स बनाकर फिल्म निर्माता को भेजते रहते थे.

गोविंदा को फिल्मों में लीड रोल उनके मामा आनंद सिंह ने फिल्म ‘तन-बदन’ में दिया गया, जो ऋषिकेश मुखर्जी के सहायक निर्देशक थे. उनकी पहली फिल्म ‘लव 86’ थी, ‘स्ट्रीट डांसर’ उनके करियर की टर्निंग पॉइंट थी ,जहां से उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. अपने इस सफलता का श्रेय वे अपनी मां को देते हैं जिन्होंने हर समय उन्हें आगे बढ़ने में साहस दिया. इस समय भी गोविंदा वैसे ही चुस्त-दुरुस्त दिखते हैं. उनकी फिल्म ‘आ गया हीरो’ कुछ ही दिनों में रिलीज होने वाली है. कैसे वे इस बुलंदी पर पहुंचे है आइये जाने उन्हीं से.

आपका फिल्मी सफर कैसे शुरू हुआ, तब कितना संघर्ष था?

पहले फिल्मों में जाना आसान नहीं था. किसी भी प्रोडक्शन हाउस के बाहर घंटो बैठे इंतजार करते रहना पड़ता था. जब प्रोड्यूसर आता था तो ‘सर, सर’ करता हुआ आगे बढ़ा, लेकिन वे आगे बढ़ गए, फिर डायरेक्टर आयेंगे, इस तरह इंतजार चलता रहता था. इस सिस्टम से बाहर आने के लिए मैंने वहां के यूनिट के लोगों को वीडियो कैसेट्स बनाकर उनके हाथ में दे दिया करता था और निर्माता निर्देशक फ्री होने पर उन्हें देने को कहता था. ये आसान तरीका था. उन्हें इस काम के लिए कभी-कभी खाना खिला दिया करता था. इस तरह सही मेसेज मुझे उन लोगों से मिलता था. कई बार तो वे साधारण लोग जिद करके भी मेरे कैसेट्स दिखा देते थे.

मुझे अधिक संघर्ष बाहर से नहीं करना पड़ा था. कई बार निर्देशक मुझे बुलाकर बातचीत कर लेते थे. मेरे काम की तारीफें भी करते थे और चांस देने की बात भी करते थे. इस तरह कोई मुझे अंदर आने से रोकता नहीं था. उस समय मैं ‘शॉर्ट टेम्पर’ का था इसलिए किसी का रोकना-टोकना पसंद नहीं करता था, लेकिन 9 किमी. जाना और 9 किमी. आना ये पूरा 18 किमी. का संघर्ष मेरे जीवन में हर दिन फिक्स था. मेरी हाई हील घिस जाती थी और उसे बनाने वाला मेरी मुसीबत जानता था और मुझसे पैसे भी नहीं लेता था. डांसिंग क्लास में, एक्टिंग स्कूल में किसी ने भी मुझसे पैसे नहीं मांगे. इस तरह मैं लकी था.

एक साथ तीन सप्ताह में 49 फिल्मों को साईन कर अभिनय करना कितना मुश्किल था?

मैंने तीन सप्ताह में 49 फिल्में साईन की थी. मुझे लगा कि ये थोड़ा अधिक हो रहा है कैसे और कब करूंगा, समझ नहीं पा रहा था. मेरी सेक्रेटरी कीर्ति, मुझे इतना काम करने से मना करती थी ताकि मैं बीमार न हो जाऊं. बीमारी की वजह से कई बार हॉस्पिटल में भी रहा. उस समय लोग ऐसे ही काम करते थे. अब फिल्म लाइन अलग हो चुकी है, ये सही भी है, मैं उसे मिस नहीं करता.

आपको अपनी कमजोरी और स्ट्रॉन्ग पॉइंट कब समझ में आई?

अभिनय के क्षेत्र में मुझे समझा दिया गया था कि जो लोग फिल्म देखने आ रहे है उन्हें आपकी मेहनत के बारें में कुछ पता नहीं है. अगर फिल्म अच्छी नहीं बनी, तो वे उसे नकार देंगे. इसका भय था. इसलिए ईमानदारी अधिक हुई और मेहनत दुगुनी हो गयी. समय कम था, अधिक फिल्में साईन कर ली थी. भाषा का ज्ञान अधिक नहीं था. सब कुछ सुधारने में बहुत मेहनत करनी पड़ी. मैं जब कामयाबी की शिखर पर था तो मेरी मां बीमर पड़ गयी. मेरे पास उनसे मिलने का समय नहीं था. उन्होंने कहा कि मेरा अंतिम समय आ गया है और उन्होंने 49 की उम्र तक काम करने का आशीर्वाद दिया. मैं हंसने लगा और कहा कि आपके बिना मेरी जिंदगी नहीं. लेकिन वह अब नहीं रहीं. मैंने कामयाबी पायी, दुनिया देखी और यहां तक पहुंचा हूं. पहले मैं काम करके सोचता था, अब सोचकर काम करता हूं.

हिंदी सिनेमा इंडस्ट्री में आये बदलाव को आप कैसे लेते हैं? बार-बार देखने की इच्छा करने वाली फिल्में आज कम क्यों बनती है?

उस समय लोगों को अपने काम से बहुत सम्मोहन था. सब लोग सच्चे दिल से काम करते थे. सही हो या गलत लोग सामने कहने से घबराते नहीं थे. इससे काम में भी फर्क आता था. अभी के कलाकारों में वह व्याकुलता दिखाई नहीं देती. सभी ने गेजेट्स के जरिये विश्व को देख लिया है. वे काम से पहले उसकी तकनीक को समझ लेते है. इससे वह मासूम नहीं, पढ़ा लिखा व्यक्ति है और इस तरह का सम्मोहन उनमें नहीं होता. इसलिए उनके द्वारा किये गए काम से दर्शक भी सम्मोहित नहीं होते. एक फिल्म को एक बार देखने के बाद दूबारा देखना नहीं चाहते. मुझे याद आता है जब मेरी मां बहुत बीमार थी और उनका अंतिम समय आ चुका था तो मैं हर दिन उनसे क्या पूछना है, उसकी लिस्ट बनाता था. उनसे मिलकर रोता था और सेट पर आकर कॉमेडी सीन्स करता था, डरता था कि कब वह चली जाय और मैं यहां काम ही करता रहूं. इसके अलावा मुझे बॉलीवुड शब्द कभी पसंद नहीं. ये हिंदी सिनेमा जगत है.

कुछ फिल्मों में नकारात्मक भूमिका निभाने की वजह क्या रही? जबकि आपको बड़ी फिल्मों में भी ऑफर मिले थे?

उस समय सही ऑफर नहीं मिल रहे थे. फिल्म ‘देवदास’ में मुझे चुन्नीलाल की भूमिका मिली थी मैंने निर्देशक से कहा कि आप मुझमें चुन्नीलाल कहां से देखते हैं. मैंने मना कर दिया था. फिर नकारात्मक भूमिका मिलने लगी. मेरी पत्नी के कहने पर मैंने स्वीकार किया. राजनीति में मैं नहीं था, अच्छी फिल्में भी मिल नहीं रही थी, ऐसे में बच्चे कहां जाएं, फिर मैंने जो मिले उसी को करना बेहतर समझा. इसके अलावा कलाकार का संघर्ष हमेशा चलता रहता है.

क्या आप चाहते हैं कि आपकी बायोपिक बने?

(हंसकर) नहीं. मैं नहीं चाहता, क्योंकि ये वे पत्ते हैं, जो नहीं खोले जाएं तो ही अच्छे होते है. लोगों ने मेरी सिर्फ कॉमेडी फिल्में ही देखी हैं, मेरे दर्द को नहीं देखा. दर्द कभी भी प्रदर्शन के लायक नहीं होता. हालांकि लोगों को इसमें मजा जरुर आता है, पर मुझे पसंद नहीं.

आप किस तरह के पिता है?

मैं बचपन से ही अधिक कठोर स्वभाव का नहीं हूं, क्योंकि मैंने बहुत कठिन समय देखा है. चाहता हूं कि बच्चे अपने इस उम्र को एन्जॉय करें. राजनीति में आने की गलत निर्णय ने बच्चों की सहजता को खराब कर दिया था.

सफल कलाकार होने के बावजूद आप राजनीति में क्यों गए?

बुजुर्गों ने मुझसे राजनीति में जाने की सलाह दी थी. मेरे पिता ने कहा था कि जिसकी वजह से तुम यहां तक पहुंचे हो, उसकी बात को कभी मत टालना. मुझे राजनीति की कोई जानकारी नहीं थी. मेरे आने की कोई वजह नहीं थी. मैंने कोई गलत काम भी तो नहीं किया था फिर क्यों आया? मैं अपने आप से ये प्रश्न पूछता हूं. इससे मेरा पूरा परिवार डिस्टर्ब हो गया था.

कॉमेडी फिल्मों में बदलाव को कैसे देखते हैं?

मेरी फिल्में कॉमेडी नहीं होती थी. फिल्मों में कॉमेडी का पुट होता था. जो सबको पसंद आ गया. 15 साल का दौर चला. अभी तो कॉमेडी लिखी जाती है. लोगों की व्याकुलता बढ़ गयी है. फिल्म ‘स्लमडॉग मिलैनियर’ का जब शीर्षक सुना तो मुझे पसंद नहीं आया, क्योंकि इसमें ‘डॉग’ शीर्षक में था. गाने भी वैसे ही हैं. जो एक बार सुनने के बाद दूबारा सुनने की इच्छा नहीं होती.

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