पूरी दुनिया में बच्चों को शिकायत होती है कि माता-पिता उनके सपने को समझ नहीं पाते और उनपर अपनी इच्छाएं थोपते हैं. जबकि हर माता पिता की ये कोशिश होती है कि उनका बच्चा सबसे अकलमंद और सबसे कामयाब हो और इस कोशिश में वे अपना जी जान लगा देते हैं, लेकिन क्या बच्चे बड़े होकर माता-पिता के सपनों को समझने की कोशिश करते हैं? क्या वे देखते हैं कि उनके लिए माता-पिता ने अपने किन सपनों को अधूरा छोड़ा है?
एक सर्वे में पता चला है कि 50 वर्ष से ऊपर के 98 प्रतिशत माता-पिता के सपने अधूरे है. इस विषय पर एबट के एक सेमीनार में अभिनेत्री नीना गुप्ता और उनकी डिजाइनर बेटी मसाबा गुप्ता ने अपने रिश्ते और सपनों को लेकर बातचीत की. पेश है अंश.
नीना, सिंगल मदर होते हुए भी आपने बेटी के सपने को कैसे पूरा किया?
नीना - मैंने अकेले बेटी को पाला है. बहुत बार बहुत मुश्किलें आई बहुत सी चीजें मैं नहीं कर सकी, जो की जा सकती थी, क्योंकि काम करना था और उसे पालना भी था. बहुत सी चीजें ऐसी थी जो उसे मिलनी चाहिए थी पर मिली नहीं.
माता-पिता दोनों का होना बच्चे के लिए बहुत जरुरी है. उसके बिना बच्चे ‘सफर’ करते हैं, लेकिन उस बारें में मैं अधिक नहीं सोचती, क्योंकि उसके बिना भी हम दोनों को बहुत कुछ मिला है. जो नहीं मिला, उसे सोचकर कुछ कर नहीं सकते.
नीना, आज मसाबा एक प्रसिद्ध डिजाइनर हैं, क्या उनका यही सपना था? मसाबा बचपन में कैसी थीं?
मसाबा की लेखन बहुत अच्छी है. बहुत अच्छा डांस करती है और अच्छा गाती भी है. ऐसे में मुझे लगा था कि वह सिंगर, डांसर या लेखन के क्षेत्र में जाएगी, लेकिन परिस्थिति कुछ ऐसी हुई कि जहां वह पढ़ना चाहती थी वहां एडमिशन नहीं मिला. फिर उसने मुंबई के एस एन डी टी कॉलेज में गयी और वहां उसने फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर वेंडील रोड्रिक के साथ काम करने लगी और फिर डिजाइनर बन गयी.
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