फिल्म ‘लव सेक्स धोखा’ से लेकर ‘अलीगढ़’ तक राज कुमार राव ने अपने अभिनय के नित नए आयाम पेश किए हैं. ‘शाहिद’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल करने के बाद उन्हें पीछे मुड़कर देखने की जरुरत नहीं पड़ी. हाल ही में उनकी फिल्म ‘न्यूटन’ को बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में काफी सराहा गया. बहरहाल इन दिनों वह 17 मार्च को प्रदर्शित हो रही अपनी फिल्म ‘ट्रैप्ड’ को लेकर काफी रोमांचित हैं.
अपनी अभिनय यात्रा को लेकर क्या सोचते हैं?
मेरी अब तक की यात्रा कंटेंट ओरिएंटेड रही है. मुझे हर प्रतिभाशाली निर्देशक के साथ काम करने का मौका मिला. कलाकार के तौर पर मुझे बहुत प्रयोगात्मक काम करने का मौका मिला. मुझे तो इस यात्रा में बहुत मजा आया. मुझे लगता है कि मैंने बॉलीवुड में बहुत सही समय पर कदम रखा, जब सिनेमा बदल रहा था, नए नए फिल्मकार आ रहे थे. मुझे लगता है कि मैंने अपनी एक जगह ढूंढ़ ली है.
‘डॉली की डोली’ को सफलता नहीं मिली?
ऐसा भी हो सकता है. ‘डॉली की डोली’ में मैं पूरी फिल्म में नहीं था. कुछ दृष्यों में ही था. मैं फिर कहूंगा कि हम कलाकार हैं. फिल्म के भविष्य का एहसास नहीं कर सकते. हमारे हाथ में मेहनत करना होता है, वह मैं ईमानदारी के साथ करता हूं. बाकी तो दर्शकों पर निर्भर करता है. वैसे मैंने तो लोगों के कई भ्रम तोड़े हैं. लोगों को भ्रम था कि मैं कभी डांस नहीं कर सकता. पर मैंने डांस करके दिखाया. और इस साल बहुत कुछ होगा.
यानी कि 2017 में आप कब्जा करने वाले हैं?
मैं ऐसी सोच नही रखता. यह सच है कि इस वर्ष मेरी कई फिल्में एक साथ प्रदर्शित होंगी. कुछ फिल्में पिछले वर्ष प्रदर्शित होने वाली थी, पर किन्हीं कारणों से वह पिछले वर्ष प्रदर्शित न हो सकीं. तो अब इस वर्ष कई फिल्में प्रदर्शित होंगी. इस वर्ष ‘बहन होगी तेरी’, ‘शिमला मिर्ची’, ‘ओमार्टा’ ‘ट्रैप्ड’ व ब्लैक कॉमेडी फिल्म ‘न्यूटन’ प्रदर्शित होंगी. ट्रैप्ड एक सर्वाइवल ड्रामा है. रमेश सिप्पी के निर्देशन में हास्य फिल्म ‘शिमला मिर्ची’ कर रहा हूं. एक बंगला फिल्म कर रहा हूं. इंडो अमरीकन निर्देशक अमृता सिंह गुजराल की कॉमेडी फिल्म ‘फाइव वेडिंग’ में नरगिस फाखरी के साथ काम कर रहा हूं. इसकी शूटिंग हमने चंडीगढ़ में की है. इसमें मैंने भारतीय अफसर हरभजन सिंह का किरदार निभाया है. यह फिल्म भारतीय शादी, प्यार, मौत और पुनर्जन्म की बात करती है. इसमें कुछ विदेशी कलाकार हैं. नरगिस फाखरी के साथ चंडीगढ़ घूमने का भी मौका मिला. पर सबसे पहले ट्रैप्ड प्रदर्शित होगी.
फिल्म ‘ट्रैप्ड’ क्या है?
यह फिल्म एक सर्वाइवल ड्रामा है. कैसे शौर्य नामक युवक एक ऐसी इमारत के एक मकान के अंदर फंस जाता है, जहां पानी, बिजली व खाने पीने का कोई सामान नहीं है. कैसे वह सर्वाइव करता है. यानी कि खुद को जीवित रखने में सफल होता है. उसी की कहानी है. इस किरदार को निभाना एक कलाकार के तौर पर मेरे लिए शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्तर पर काफी चुनौतीपूर्ण रही. मैं शौर्य का किरदार निभा रहा था, तो मैंने कुछ दिन पहले से ही वह जिंदगी निभानी शुरू कर दी थी. मैंने खुद खाना पीना छोड़ दिया था. बीस दिन तक एक गाजर और एक ब्लैक कॉफी ही लेता रहा. शारीरिक तौर पर काफी चुनौती थी, पर मजा भी आया. इस तरह का किरदार निभाने का मौका पता नहीं दुबारा कब मिलेगा.
इस किरदार को निभाते समय आपने उनके बारे में सोचा जो कि भुखमरी के शिकार होकर मौत के मुंह में समा जाते हैं?
कई बार सोचा. मुझे एहसास हुआ कि वह कितने असहाय होते होंगे. क्योंकि हमारे शरीर को भोजन, पानी, बिजली, प्रकाष, हवा सब कुछ चाहिए. इंसान कुछ दिन बिना भोजन किए तो गुजार सकता है, मगर बिना पानी के खुद को जीवित रखना बहुत मुश्किल है. अब मैं बहुत आसानी से उन लोगों के दर्द, तकलीफ को समझ सकता हूं, जिन क्षेत्रों में सूखा पड़ता है, लोगों को पीने का पानी भी नसीब नहीं होता है. इस फिल्म को करते समय मैंने महसूस किया कि हमारे शरीर को पानी की बहुत ज्यादा जरुरत होती है. एक कलाकार व राज कुमार के रूप में भी मेरे अंदर फ्रस्ट्रेशन का एहसास इस बात को लेकर बना रहता था कि शरीर को जो चाहिए वह नहीं मिल रहा है.
कभी आपने सोचा कि भुखमरी के शिकार या सूखाग्रस्त क्षेत्र के लोगों के लिए क्या किया जाना चाहिए?
सच कहूं तो ऐसे लोगों की स्थिति सोचकर मुझे बहुत तकलीफ होती है. बहुत बुरा लगता है. यदि किसी इंसान को पीने का पानी न नसीब हो तो हमारे लिए इससे अधिक शर्मनाक बात कोई नहीं हो सकती.
कमरे के अंदर बंद इंसान की कहानी है, तो फिर इसमें हीरोइन क्या कर रही है?
फिल्म में एक प्रेम कहानी भी है. अब इस प्रेम कहानी को लेखक व निर्देशक ने किस तरह से बुना है, वही इस फिल्म की खूबी है. मगर नब्बे प्रतिशत फिल्म कमरे के अंदर है.
आपको राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले. आपकी फिल्में अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में धूम मचा रही है. इसके बावजूद भारत में आपकी फिल्मों के प्रदर्शन में काफी समस्याएं आ रही है?
ऐसा कुछ नहीं है. देखिए, फिल्म ‘ट्रैप्ड’ को लेकर हम सभी ने योजना बनायी थी कि हम पहले इस फिल्म को अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में ले जाएंगे, उसके बाद भारत के सिनेमाघरों में प्रदर्शित करेंगे. अक्टूबर 2016 में ‘ट्रैप्ड’ को मामी अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में प्रदर्शित किया गया, जिसे काफी सराहना मिली. उसके बाद हमने इसके प्रदर्शन की बात सोची. अब हम 17 मार्च को इसे प्रदर्शित कर रहे हैं.
जब आपको फिल्म ‘ट्रैप्ड’ की कहानी सुनायी गयी थी, तब किस बात ने आपको इंस्पायर किया था?
मैं विक्रमादित्य मोटावणे का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं. मैं उनके साथ फिल्म करना चाहता था और यह फिल्म वही निर्देशित कर रहे थें. मैंने उनकी फिल्में ‘उड़ान’ व ‘लुटेरा’ देखी थी. जब ‘मसान’ की स्क्रीनिंग के दौरान विक्रमादित्य ने मुझसे इस कहानी का जिक्र किया, तो मैंने खुद उनसे पूछा कि कब करनी है. इस कहानी से प्रभावित होने की वजह यह रही कि मैं सर्वाइवल ड्रामा का बहुत बड़ा फैन हूं. मुझे इस तरह की फिल्में देखकर उत्साह आता था कि कैसे आपको पूरी फिल्म को लेकर चलना है. फिल्म में आपके किरदार का पूरा एक ग्राफ है. तो मुझे लगा कि मेरे लिए इस किरदार को निभाना चुनौतीपूर्ण रहेगा. मैंने पहले इस तरह का किरदार निभाया नहीं था. भारत में इस तरह की फिल्म भी नहीं बनी है.
बॉलीवुड के कई कलाकार हॉलीवुड में काम कर अच्छा नाम कमा रहे है. इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल में आपकी फिल्मों ने धूम मचायी और अंततरराष्ट्रीय स्तर पर आपकी भी एक पहचान बन गयी है. ऐसे में आप हॉलीवुड फिल्में नहीं करना चाहते हैं?
यदि किसी अच्छी फिल्म का ऑफर मिले, तो मैं जरूर करूंगा. वैसे मैंने एक फिल्म ‘लव सोनिया’ की है, जो कि इंडो अमरीकन फिल्म है. इसके अलावा मैंने एक फिल्म ‘‘फाइव वेंडिंग’’ की है. देखिए, मेरी राय में हर कलाकार को अंग्रजी फिल्म करनी चाहिए. क्योंकि अंग्रेजी भाषा की पहुंच पूरे विश्म में है. मैं हाल ही में यूरोप गया था, वहां मैंने पाया कि लोग हॉलीवुड फिल्में ही देखना चाहते हैं. तो हॉलीवुड फिल्में करने से कलाकार के तौर पर हमारी पहुंच बढ़ जाती है. हम ज्यादा दर्शक वर्ग तक पहुंच जाते हैं. पर इन दिनों हमारा करियर बॉलीवुड में बहुत अच्छा चल रहा है. इसलिए मेरा सारा ध्यान यहीं पर है. पर जब भी कोई अच्छी हॉलीवुड फिल्म मिलेगी, तो जरूर करना पसंद करुंगा.
फिल्म ‘लव सोनिया’ में महिलाओं की तस्करी का मुद्दा उठाया गया है. इस फिल्म को करने के बाद इस समस्या पर आपकी अपनी सोच क्या बनी?
इस फिल्म को करते समय मैंने बहुत दर्दनाक कहानियां सुनी. मैं कई ऐसी लड़कियों से मिला, जिन्हें इस तरह के चंगुल से मुक्त कराया जा चुका है. इनकी कहानी सुनने के बाद मैंने अपने आपको बेबस पाया. क्योंकि मैं इनके लिए कुछ कर नहीं पा रहा था. मुझे लगा कि कम से कम सिनेमा के माध्यम से हम इस कहानी को कह तो रहे हैं. इससे लोगों में जागरूकता आएगी. हो सकता है कि इस पर कोई बहस छिडे़.
फिल्म ‘फाइव वेडिंग’ में आपने पहली बार नरगिस फाखरी के साथ काम किया है?
जी हां! वह स्वयं अमरीकन हैं. उनके अंग्रेजी बोलने का लहजा अलग है.
तो उनके साथ काम करने के आपके अनुभव क्या रहे?
फिल्म ‘फाइव वेडिंग’ में नरगिस का किरदार अमरीकन लड़की का ही है. फिल्म अंग्रेजी भाषा की है. उनके साथ ही इस फिल्म में मुझे भी अंग्रेजी बोलने का मौका मिला. उनके साथ काम करने में मजा आया. वह बहुत फनी हैं. मेरी अच्छी दोस्त हैं. वह सेट पर वीडियो भी बना रही थी.