फिल्मी माहौल में पले बढ़े वरुण धवन ने बॉलीवुड में बहुत कम समय में अपनी एक खास पहचान बना ली है. वह लगातार सफलता की ओर अग्रसर हैं. तो वहीं बॉलीवुड में नताशा दलाल के संग उनके रिश्तों की चर्चाएं हैं. वरुण धवन अक्सर नताशा के साथ नजर आ जाते हैं, पर अब तक वरुण ने खुलकर इस रिश्ते की बात कबूल नहीं की है. पर इन दिनों वह दस मार्च को होली के अवसर पर प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ की चर्चा करते रहते हैं.
आपके करियर के टर्निंग प्वाइंट क्या रहा?
मेरे करियर की पहली फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ थी. इस फिल्म से जुड़ना मेरे करियर, मेरी जिंदगी में एक नया मोड़ रहा. इस फिल्म के बाद मेरी ईमेज एक चॉकलेटी ब्वॉय की बन गयी. लोगों को समझ में आया कि मैं सिर्फ क्लासी फिल्में करता हूं और खुश रहता हूं. लेकिन एक साल के बाद मेरे करियर में दूसरा मोड़ आया, जब मैंने अपने पिता डेविड धवन के निर्देशन में फिल्म ‘मैं तेरा हीरो’ की. इस फिल्म ने मेरी इमेज बदली.
इसके बाद मेरी फिल्म आयी ‘बदलापुर’. बदलापुर मेरे करियर की बहुत बड़ी टर्निंग प्वाइंट रही. इसमें मेरा किरदार बहुत अलग था. इसके बाद ‘ए बी सी डी’ रही, इस फिल्म ने सौ करोड़ का व्यापार भी किया. उसके बाद मैंने ‘दिलवाले’ व ‘ढिशुम’की. अब मेरी नई फिल्म आ रही है ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’. उम्मीद करता हूं कि यह फिल्म भी मेरे करियर में एक नया मोड़ लेकर आएगी.
इन फिल्मों के चलते आपकी निजी जिंदगी में क्या बदलाव आए?
‘मैं तेरा हीरो’ के समय मुझे साबित करना था कि सोलो हीरो के रूप में मैं फिल्म को सफलता दिला सकता हूं. तो मुझ पर बहुत बड़़ा दबाव था. इस फिल्म के बॉक्स ऑफिस पर सफलता पाने से मेरा अपना आत्म विश्वास बढ़ गया. मुझे निजी जिंदगी में अहसास हुआ कि मैं भी फिल्म में हीरो बन सकता हूं. उस वक्त मैं निजी जिंदगी में बहुत खुश था. जब मैंने ‘बदलापुर’ की, तो माहौल थोड़ा सा धीमा व डार्क हो गया था. यह फिल्म भी बहुत डार्क थी. इसका असर मेरी जिंदगी में बहुत पड़ा. मेरी निजी जिंदगी में कुछ झगड़े भी हुए. अब जब मैं ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ की शूटिंग कर रहा था, तब बीच में मैं थोड़ा अग्रेसिव हो गया था. क्योंकि इस किरदार में कुछ चीजें ऐसी हैं, जो मेरी निजी जिंदगी पर भी पूरी तरह से छा गयी थीं.
क्या आपके पिता ने ‘मैं तेरा हीरो’ आपकी ईमेज को बदलने के लिए बनायी थी?
देखिए, पहली फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ में मेरे साथ दो दूसरे नए हीरो भी थे. जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि इस फिल्म से मेरी इमेज एक क्लासी किस्म करने वाले चॉकलेटी हीरो की हो गयी थी. अब ईमेज बदलना था. तो फिल्मों में अलग पहचान बनाने के लिए रिस्क तो लेनी होती है. फिल्म ‘मैं तेरा हीरो’ के समय मैंने रिस्क लिया. मेरे पिता ने रिस्क लिया और खुद को साबित करने का मेरे उपर दबाव भी था. यदि मैं यह कहूं कि मेरे पिता पर मुझसे ज्यादा दबाव था, तो गलत नहीं होगा.
आप ‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ को ‘हम्प्टी शर्मा की दुल्हनिया’ का सिक्वअल मानते हैं या नहीं?
मैं इसे सिक्वअल नहीं बल्कि फ्रेंचाइजी वाली फिल्म मानता हूं. सिक्वअल में कहानी आगे बढ़ती है. पर यहां कहानी बहुत अलग है. किरदार अलग है. किरदार व कहानी का माहौल अलग है. हां! दोनों फिल्मों के कलाकार समान हैं. हम इसे ‘लव फ्रेंचाइजी’ मानते हैं. दोनों ही फिल्मों में प्यार ही मुख्य मुद्दा है. इसके अलावा पिछली फिल्म की ही तरह यह फिल्म भी दुल्हन व शादी के बारे में है.
‘बद्रीनाथ की दुल्हनिया’ को लेकर क्या कहना चाहेंगे?
बद्री झांसी के एक साहूकार का लड़का है. जिसे कोटा में रह रही वैदेही पसंद आ जाती है. कोटा और झांसी अलग जगह है. दोनों शहरों की अपनी अलग अलग खासियत है. जबकि इनके बीच चार घंटे की दूरी है. पर दोनों शहर के लोगों की सोच रहन सहन बहुत अलग है. इस फिल्म में इस बात को बेहतर तरीके से पेश किया गया है, कि दो चार घंटे की दूरी में हमारे यहां कैसे भाषा और रहन सहन बदल जाती है.
छोटे शहर के लोगों की सोच, मानसिकता, बातचीत का लहजा बहुत अलग होता है. इसको अपने किरदार में ढालने के लिए आपने क्या किया?
फिल्म के निर्देशक शशांक खेतान इस मसले पर काफी शोध कर चुके हैं. वह कानपुर, झांसी, लखनउ, कोटा सहित कई छोटे छोटे शहरों में जा चुके हैं. वहां रहकर हुए काफी कुछ समझ चुके थे. वह इन शहरों से मेरे लिए करीबन तीस वीडियो लेकर आए थे. मैंने उन वीडियो को देखा. दो माह का वर्कशॉप किया. मैंने बात करने के लहजे पर काम किया. भाषा के एक्सेंट पर काम किया. उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान इन सभी जगहों पर बात करने का लहजा अलग है. तो मुझे झांसी का एक्सेंट भी लाना था. पर इस बात का भी ख्याल रखना था कि फिल्म पूरे देश वालों के लिए बन सके. इस पर काम करने पर मुझे समय लगा. देखिए, झांसी में भी किसान और साहूकार दोनों अलग अंदाज में बात करते हैं.
बद्री क्या है?
झांसी का रहने वाला नवयुवक है बद्रीनाथ बसंल. बद्री का किरदार बहुत प्यारा है. शराबी है. मगर गाली गलौज नहीं करता. वह वैदेही के प्यार को पाने के लिए कई तरह की हरकतें करता रहता है. बद्री उन लोगों में से है, जो कुछ भी करने से पहले सोचते नहीं हैं, बस कर जाते हैं.
झांसी के लोग गर्म दिमाग के होते हैं?
बिलकुल सही कहा! बद्री भी गर्म दिमाग का है. किसी ने गलत बात कर ली, तो सीधे मारामारी पर उतर जाता है. पर वह हंसमुख भी है. दिलवाले भी हैं. झांसी के लोग बहुत संजीदा किस्म के होते हैं. भावुक हैं.
चलिए मंबई और झांसी के बीच का अंतर बता दीजिए?
बहुत अलग माहोल है. हमने झांसी के किले में जाकर शूटिंग की. वहां से आसमान बहुत साफ नजर आता है. मुझे झांसी और कोटा दोनों जगह का वातावरण और खाना अच्छा लगा. वहां के लोग सोचते बहुत अलग ढंग से हैं, बातचीत करते समय गुणाभाग नहीं लगाते. लाभ हानि नहीं सोचते हैं.
कोटा और झांसी में क्या फर्क हैं?
कोटा में कोचिंग क्लासेस बहुत हैं. आईआई टी का हब बना हुआ है. मतलब कोटा एक पढ़ाकू शहर है. इसीलिए वैदेही में समझदारी बहुत है. जबकि झांसी में मारामारी का मासला है. मुझे तो दोनों जगह शूटिंग करने में मजा आया.
जब आप अपने पिता या भाई के निर्देशन में काम करते हैं अथवा जब दूसरे निर्देशकों के साथ काम करते हैं. तो कहां सहज रहते हैं?
देखिए, धर्मा प्रोडक्शन तो मेरे लिए परिवार की तरह है. शशांक भी पारिवारिक सदस्य की तरह हो गए हैं. इन लोगों के साथ मैं भावनात्मक रूप से जुड़ जाता हूं. इनकी जब मैं फिल्में करता हूं, तो मैं आर्थिक दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि भावनात्मक दृष्टिकोण से चाहता हूं कि फिल्म सफल हो.
कहा जा रहा है कि आप सलमान खान का स्थान लेने वाले हैं?
इन चर्चाओं को मैं गंभीरता से नहीं लेता. मैं तो चाहूंगा कि इस तरह की चीजें ना लिखी जाएं. पर मैं अपना व्यक्तित्व नहीं बदल सकता. मेरे व्यक्तित्व के आधार पर किसी को कुछ लगता है, तो बात अलग है. यह सच है कि मुझे सलमान खान या गोविंदा जिस तरह की फिल्में करते रहे हैं, वह सारी फिल्में बहुत पसद हैं.
गोविंदा ने आपके पापा के खिलाफ जो बयान बाजी की है, उसे आप कैसे देखते हैं?
मुझे पता है कि गोविंदा और मेरे पापा ने एक साथ काम करते हुए इतिहास रचे हैं. दोनों इज्जतदार और प्रतिभाशाली लोग हैं. अब गोविंदा ने जो कुछ कहा, अब उस वक्त उनके अपने मन में जो था, वही उन्होंने कहा. पर मेरे पिता के मन में उनके प्रति कोई नाराजगी नहीं है. हमारे परिवार में नकारात्मक बातों पर सोचा नही जाता. उन्होंने जो कुछ कहा, वह कहकर अच्छा लग रहा है. तो कुछ नहीं कह सकता. मैं उनके खिलाफ कुछ भी कहकर बयानबाजी नहीं कर सकता. क्योंकि मेरी परवरिश ऐसी हुई है, उन्होंने तो करण जौहर के खिलाफ भी बाते की हैं. पर वह भूल गए कि हमारी फिल्म की रिलीज की तारीख आठ माह पहले ही घोषित कर दी गयी थी. मैं आज भी उनकी इज्जत करता हूं. इसलिए उनके खिलाफ कोई बात नहीं करूंगा.
दूसरी बात एक कलाकार के तौर पर किसी भी कलाकार को इस बात पर निर्देशक से नाराज नहीं होना चाहिए कि वह उसे लेकर फिल्म नहीं बना रहा है. हर कलाकार किसी भी निर्देशक के साथ काम कर सकता है. एक निर्देशक किसी भी कलाकार के साथ काम कर सकता है. तीसरी बात रचनात्मकता में आप किसी को बांध कर नही रख सकते. फिर भी उनके खिलाफ बात नहीं करना चाहता.
घर पर आप लोगों के बीच फिल्म को लेकर क्या बातें होती हैं?
हम लोग सिनेमा, फिल्म की पटकथा, कंटेंट, सिनेमा में आ रहे बदलाव आदि पर बहुत लंबी लंबी बहस करते हैं. यह सब जब चर्चाएं होती हैं, तो मेरे जहन में कहीं न कहीं बस ही जाती हैं. पर सेट पर मैं पूरी तरह से निर्देशक का कलाकार बनकर काम करता हूं.
आप आलिया भट्ट की बड़ी तारीफ करते हैं?
वह मेरी फिल्म की हीरोइन हैं. हमने एक साथ तीन फिल्में की हैं. हमारे शुभचिंतक भी हैं.
इससे नताशा दलाल को तकलीफ नहीं होती हैं?
बिलकुल नहीं होती है. होनी भी नही चाहिए. कलाकार के तौर पर मैं किसी की भी तारीफ कर सकता हूं. आलिया भट्ट की तारीफ करने के अर्थ यह नही हैं कि नताशा के प्रति मेरा लगाव कम हैं. मैं तो पुरूष कलाकारों कि भी तारीफ करता हूं .
आप ट्वीटर पर बहुत व्यस्त रहते हैं. ट्वीटर का बॉक्स ऑफिस पर कितना असर पड़ता है?
ट्वीटर और बॉक्स ऑफिस का कोई संबंध नही है. मुझे पता है कि तमाम कलाकार ऐसे हैं, जो ट्वीटर पर नही हैं. पर उनकी फिल्में सफलता के रिकॉर्ड बनाती है. आमिर खान ट्वीटर पर नही हैं, आमिर खान किसी टीवी चैनल पर नहीं गए. पर ‘दंगल’ ने कमायी के रिकॉर्ड बना दिए. मैं ट्वीटर पर फिल्म को प्रमोट करने नही जाता. बल्कि अपने मन की बातें लिखने जाता हूं. मैं हमेशा सकारात्मक बातें ही ट्वीटर पर डालता हूं.
सोशल मीडिया पर कलाकारों को गालियां बहुत मिलती हैं?
मुझे तो गालियां नही मिली. शायद मैं भी सिर्फ पॉजीटिव बातें करता हूं.
बायोपिक फिल्में नहीं करना चाहते?
बायोपिक फिल्में करनी है, पर अभी थोड़ा समय है, बाद में करूंगा.
इसके अलावा क्या कर रहे हैं?
पुरानी फिल्म ‘जुड़वा’ की सिक्वअल फिल्म ‘जुड़वा 2’ की शूटिंग शुरू कर चुका हूं. पहले दिन हमने गणपति के भजन के गाने के फिल्मांकन से शुरूआत की है. इसका निर्देशन मेरे पिता डेविड धवन कर रहे हैं. इसमें मेरे साथ जैकलीन फर्नांडिश और तापसी पन्नू हैं. जैकलीन के साथ यह मेरी दूसरी और तापसी पन्नू के साथ पहली फिल्म है.