प्रेम की दीवानगी को निर्देशक ने फिल्म ‘कयामत से कयामत तक’ में बखूबी दिखाया. सिनेमा हमआप से उतना ही जुड़ा है जितना जीवन के और रंग, आप को इस का एहसास हो या न हो लेकिन जब प्यार खिलता है तो सारी दुनिया खूबसूरत नजर आती है.

किशोरावस्था में हमें मुहब्बत और अचानक किसी के बहुत अच्छे लगने का एक अच्छा सा एहसास होने लगता है. इस एहसास की दुनिया में ही खो जाने का मन करता है. हम से कई गलतियां भी होती हैं, हमें प्यार की खुशी का भी पता चलता है, हमारा दिल टूटता है और किसी के नकारने का भी पता चलता है.

कुछ ऐसी फिल्में हैं जिन्हें देखने पर आप को किशोरावस्था की यादें ताजा हो जाएंगी, ऐसी यादें जो वक्त के साथ काम के बीच लगभग गायब हो गई थीं. राजकपूर की फिल्म ‘बौबी’ में अल्हड़ जोड़े की प्रेमकहानी जब भी परदे पर आती है तो उसे देख कर हम भी अपने अतीत की गहराइयों में गोते लगाने लगते हैं और जिंदगी के बीत गए पन्नों पर अपनी धुंधलाती प्रेमकहानी की तसवीर खोजने लगते हैं.

अल्हड़ प्रेम का सजीव चित्रण हिंदी सिनेमा में कई बार किया गया है. हंसतेखिलखिलाते झरने की तरह हिंदी सिनेमा सामाजिक यथार्थ और मानवीय रिश्तों के आवेग, तपिश, त्रासदी और छिछोरापन सब को अपने में समेटे निरंतर आगे बढ़ता रहा है.

इस प्रबल सिनेमाई झरने ने जन्म दिया है कर्णप्रिय गीतसंगीत को, कालजयी कथाओं व पात्रों की प्रेम में डूबी कहानियों को जो आज के अंधेरे मल्टीप्लैक्स की डिजिटल स्क्रीन पर आ कर कभी आप को आप की जिंदगी के खुशनुमा 17वें साल में ले जाती हैं, कभी लोरियां सुनाती हैं और कभी डरातीहंसाती हैं.

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