80के दशक में उम्दा डायलौग डिलिवरी, डांस और अभिनय के बल पर अपनी अलग पहचान बनाने वाले अनिल कपूर ऐसे अभिनेता हैं, जो आज की अभिनेत्रियों के अपोजिट भी परफैक्ट नजर आते हैं. उन्होंने अपने जीवन के 38 साल फिल्म इंडस्ट्री में गुजारे हैं और आज भी अभिनय करते जा रहे हैं. उन की ‘मशाल’, ‘तेजाब’, ‘बेटा’, ‘रामलखन’, ‘वो सात दिन’, ‘लम्हे’, ‘मेरी जंग’, ‘जांबाज’, ‘मिस्टर इंडिया’, ‘विरासत’ आदि कई ऐसी फिल्में हैं, जिन की तारीफ आज भी की जाती है. बौलीवुड में अभिनय के साथ अनिल कपूर की दूसरी पहचान प्रोड्यूसर के रूप में भी है.हंसमुख और विनम्र स्वभाव के अनिल कपूर को पढ़ना बिलकुल अच्छा नहीं लगता था, लेकिन अभिनय का शौक उन्हें बचपन से ही था. वे हमेशा क्लासरूम की पिछली सीट पर बैठा करते थे ताकि छिप कर सो सकें. उन का प्रिय विषय इतिहास हुआ करता था, जिस में उन्हें दुनिया में क्या कुछ हुआ है, कैसे देश बने आदि के बारे में जानना दिलचस्प लगता था. लेकिन अब वे शिक्षा के महत्त्व को समझते हैं.
हर फिल्म एक नई सीख
वे कहते हैं कि बच्चों के जीवन में शिक्षा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. इस से वे अपनेआप को सफल व्यक्ति के रूप में ढालने में समर्थ होते हैं. मेरे 3 बच्चे हैं. मैं उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाने की हर संभव कोशिश कर रहा हूं ताकि भविष्य में आत्मनिर्भर हो कर फैसले लेने में उन्हें मदद मिले. शिक्षा प्रत्येक बच्चे का मूलभूत अधिकार है, उस से वंचित किया जाना ठीक नहीं. शिक्षा के आधार पर ही देश, समाज और परिवार आगे बढ़ सकेगा. अनिल कपूर के कैरियर में अनेक उतारचढ़ाव आए पर उन्होंने हमेशा उस में से कुछ सकारात्मक चीजें खोज निकालीं और खुश रहे. उन का कहना है कि जीवन में मैं वह काम नहीं करता जिसे करने में खुशी न मिले. मेरे पास आजकल फिल्मों के औफर कम आते हैं, लेकिन जो भी काम मुझे मिलता है उसे मैं 100% सही ढंग से पूरा करता हूं. कई बार फिल्म अच्छी चल जाती है, तो कई बार नहीं चलती, पर मैं उस पर अधिक विचार नहीं करता. तनाव कई बार जबरदस्त होता है पर मैं उस से निकलना जानता हूं. मैं अपनी फिल्में नहीं देखता, लेकिन हर फिल्म एक नई सीख दे जाती है.