फिल्म ‘फैशन’ से चर्चित हुई अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने बॉलीवुड और हॉलीवुड में अपनी एक खास जगह बना ली है. देश हो या विदेश हर जगह उनके फैन फौलोवर्स की संख्या लाखों-करोड़ों में है. मिस वर्ल्ड बनने के बाद उन्हें पहचान मिली और इसे उन्होंने केवल देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में सिद्ध कर दिया कि वह एक मंझी हुई अदाकारा हैं.

अभिनय में उनका शुरूआती दौर अधिक अच्छा नहीं था, लेकिन उनकी लगन और मेहनत उन्हें यहां तक ले आई. आज वह नंबर वन की अभिनेत्री हैं. उन्होंने हर तरह के किरदार निभाए हैं. प्रियंका अपने देश लौटने के बाद यहां की फिल्मों और अपने प्रोडक्शन हाउस को लेकर व्यस्त हैं. उन्होंने कई साल अमेरिका में गुजारे, लेकिन उन्हें बॉलीवुड और अपना परिवार सबसे अधिक पसंद है.

प्रियंका का हॉलीवुड में जाना एक इतफाक नहीं था, बल्कि उनकी इच्छा थी कि वह उनके काम करने के तरीका और वहां की इंडस्ट्री को अच्छी तरह समझ सकें. उनसे मिलकर बात करना रोचक था. पेश है अंश.

घर लौटने के बाद पहला काम क्या किया?

उस दिन मैं घर पर देर से पहुंची और बालकनी में गयी. वहां की सारी चीजें, बुक शेल्फ सब ठीक किया. सारी खिड़कियां खोली और बड़ा अच्छा महसूस हुआ. मेरी मां हमेशा अमेरिका जाती रहती है और बातें होती रहती है. इसलिए उससे अधिक यहां की मिट्टी को मैंने ‘मिस’ किया.

हॉलीवुड में एंट्री करना कितना मुश्किल था?

सीरियल क्वांटिको की पॉपुलैरिटी ही इसकी खास वजह है. वहां मुझे बुलाया गया और मैंने जब फिल्म ‘बेवाच’ की कहानी सुनी तो मुझे पसंद आई थी. मैं इसमें विलेन हूं और ये किरदार मेरे लिए नया था. मुझे हमेशा से चैलेंजिंग और नयी भूमिका करना पसंद है. हालांकि कई हिंदी फिल्म जैसे ‘साथ खून माफ’ और ‘ऐतराज’ में विलेन की भूमिका मैंने निभाई है, पर ये उससे अलग है.

वहां काम करने का ढंग अलग नहीं है. वहां भी फिल्म मेकिंग ऐसे ही होता है, लेकिन वहां की बजट अलग है, हर काम बड़े स्तर पर होता है और समय से हर काम खत्म हो जाता है. भाषा में केवल फर्क है. इसके अलावा टीवी और फिल्म में काफी अंतर है, जो यहां भी है.

हॉलीवुड में आपने बॉलीवुड की कलाकार के रूप में काम किया, क्या आप किसी प्रकार की अलगाववाद की शिकार हुईं?

वहां के लोगों को बॉलीवुड के बारें में जानकारी कम है, हमारी फिल्मों में कहानी के साथ-साथ कैसे डांस, डांसर और गाना आ जाता है, ये कैसे कहानी को आगे बढाती है, ये उन्हें समझ नहीं आती. ऐसे में उन्हें समझान पड़ा कि हमारी संस्कृति में गाना बजाना बचपन से होता है. बच्चा पैदा हो या शादी ब्याह, गाना बजाना और डांस हर जगह होता है. कही भी संगीत बजे, हम डांस कर लेते है. इस तरह उन्हें समझ आया और उन्होंने मेरी कई हिंदी फिल्में, जिसमें ‘बाजीराव मस्तानी’ और ‘बर्फी’ देखी. उन्हें मेरी एक्टिंग पसंद आई.

इसके अलावा मुझे अपना काम पता है और वह मुझे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री ने सिखाया है, इसलिए हॉलीवुड में काम करते वक्त कुछ कमी न हो, इसका ध्यान रखती थी. मुझे कभी भी इस बात का एहसास नहीं हुआ कि मेरी स्किन ब्राउन है और वे मुझे अलग समझते हैं. वहां मेरे कई अच्छे दोस्त बन चुके हैं, जो मेरी सहायता करते हैं.

आपको मराठी फिल्म ‘वेंटिलेटर’ के लिए नैशनल अवार्ड मिला, इस बारें में क्या कहना चाहती हैं?

मुझे खुशी है कि मुझे अवार्ड मिला. मैं इस फिल्म की कहानी से बहुत अधिक प्रेरित थी. इसे मैंने अपने पिता के लिए बनायी थी. मुझे याद आता है जब मेरे पिता वेंटिलेटर पर थे, तब आई सी यू के बाहर यही सब हो रहा था. मेरे पिता के परिवार के लोग पंजाबी हैं और मेरे मां के तरफ के लोग बिहारी हैं, सबके अलग-अलग विचार आ रहे थें. इस तरह ‘टू स्टेट्स’ की बातचीत चल रही थी.

इसके अलावा मैंने जिस वजह से अपनी प्रोडक्शन कंपनी बनायी और वह कामयाब हो रही है, तो खुशी की बात है, क्योंकि जब मैं इंडस्ट्री में आई थी तो मुझे ‘हेल्प’ करने वाला कोई नहीं था. मैं मिस वर्ल्ड थी इसलिए फिल्में मिली. मुझे अपने आप को परिचय करवाना पड़ा. इसलिए मैं अपनी कंपनी में नए लेखक, निर्देशक, संगीतकार, गायक और कलाकार को मौका देती हूं. मैं चाहती हूं कि फिल्में छोटी भले ही हो पर अच्छी हो.

हिंदी फिल्मों को कितना मिस करती हैं? आगे की प्लानिंग क्या है?

हिंदी फिल्म और इस इंडस्ट्री को मिस करती हूं, यहां मेरा परिवार भी है. आगे मैं कुछ स्क्रिप्ट पढ़ रही हूं, पसंद आने पर करुंगी. इसके अलावा मैं अपनी प्रोडक्शन कंपनी में कई रीजनल फिल्में जैसे मराठी, सिक्किम, बांग्ला, कोंकणी आदि बनाउंगी. इसमें सारे कलाकार उसी जगह से लेने की कोशिश की जाएगी, ताकि वे उससे जुड़ सकें. सिक्किम में तो मेरी पहली प्रोजेक्ट होगी, क्योंकि वहां फिल्म इंडस्ट्री नहीं है.

गर्मियों में आप अपनी देखभाल कैसे करती हैं? आपकी फिटनेस का राज क्या है?

वहां तो ठण्ड का मौसम हमेशा रहता है. यहां गर्मी में एसी में रहती हूं, लेकिन मुझे गर्मी का मौसम पसंद है. मेरा कोई खास डाइट प्लान नहीं होता, मैं सब खाती हूं, लेकिन कुछ सावधानियां रखनी पड़ती है ताकि वजन न बढ़े. प्रोटीन अधिक कार्बोहाइड्रेट कम लेना पड़ता है. मुझे घर के गरम-गरम फुल्के बहुत पसंद हैं. इसके अलावा विदेश में भी मेरे साथ रसोइयां जाती हैं, जो वहां खाना बनाती है. पानी और लिक्विड गर्मियों में अधिक लेती हूं.

मेरी जींस अच्छी है, इसलिए हमेशा फिट रहती हूं. इसका श्रेय मेरे माता-पिता को जाता है. 40 की उम्र तक मेरे पिता का स्वास्थ्य बहुत अच्छा था. मेरी मां भी फिट है और मेरी प्रोडक्शन हाउस पूरी तरह से सम्हालती है. अपने वजन को नियंत्रित रखने के लिए मैं वर्क आउट करती हूं, सही आउट फिट पहनती हूं.

आप अपनी जर्नी को कैसे देखती हैं? एक्टर और एक्ट्रेस में पारिश्रमिक अंतर को कैसे देखती हैं?

मैंने जो फिल्में की, उसमें सफल फिल्में अधिक थी और आज मैं यहां पहुच चुकी हूं, मैंने कभी ट्रेंड फौलो नहीं किया. लीड करने की कोशिश की. उसे मैंने एन्जॉय किया और इसकी क्रेडिट बहुत सारे लोगों को जाता है, जिन्होंने मेरी असफल फिल्मों के बाद भी मुझे सहयोग दिया आगे बढ़ने की प्रेरणा दी. मैं नए कलाकारों को भी यही संदेश देना चाहती हूं कि जो भी काम मिले, उसमें कुछ नया लाने की कोशिश करें, ज्ञान बढायें, घबराएं नहीं. काम अच्छा मिले तो चमत्कार होकर ही रहता है.

पूरा विश्व पुरुष प्रधान है. जितना यहां महिला और पुरुषों की समानता के लिए लड़ाई लड़ी जाती है, वहां भी वैसी ही बहस चलती रहती है. सालों से यही चल रहा है, लेकिन यह दौर अब खत्म हो रहा है. आजकल एक्ट्रेस की फिल्में भी सौ करोड़ का आंकड़ा पार कर रही है, उम्मीद है आगे दो सौ और तीन सौ करोड़ भी पार कर लेगी. इसमें दर्शकों सबसे अधिक जिम्मेदार है. उन्हें अपनी टेस्ट बदलनी होगी, उन्हें महिला लीड फिल्मों को देखने के लिए आगे आना होगा. इससे जो एक्टर और एक्ट्रेस के बीच में मेहनताना में अंतर है वह कम होगा, क्योंकि पूरे विश्व  में एक्टर को एक्ट्रेस से अधिक पारिश्रमिक मिलता है, लेकिन इतना सही है कि मुझे वहां के लोगों ने बहुत प्यार दिया और मुझे मेहनताना भी सही मिला. विदेश में भी मैंने शुरू से ही अपनी शर्तों पर काम किया है.

आप सोशल मीडिया पर कितनी एक्टिव हैं और किसी पोस्ट पर कितनी सतर्कता बरतती हैं ताकि बाद में कंट्रोवर्सी न हो?

इसके लिए मैं मीडिया को जिम्मेदार मानती हूं, जो हर पोस्ट को आर्टिकल बना लेती है. मैंने अगर कुछ पोस्ट किया है तो मेरे 1.5 मिलियन फौलोअर्स ने उसे पढ़ लिया है. मीडिया उसे अगर तवज्जों न दे तो कोई बात आगे नहीं बढ़ेगी. सभी को अपनी बात रखने का हक है. मेरे पेरेंट्स ने ये मुझे बचपन से सिखाया है कि किसी भी सही बात को कहने में कभी डरो नहीं और मैं वैसा ही करती हूं. मैं आगे भी यूथ को कहना चाहती हूं कि कुछ सही या गलत नहीं होता, डेमोक्रेटिक कंट्री में सब अपनी राय दे सकते हैं और सब कुछ परिप्रेक्ष्य होता है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...