मराठी फिल्मों और टीवी से अपने करियर की शुरुआत करने वाले अभिनेता श्रेयस तलपडे ने हिंदी फिल्मों में फिल्म ‘इकबाल’ से अपनी उपस्थिति दर्ज की थी. इस फिल्म में उनके अभिनय को जमकर तारीफ मिली और वे फिल्म ‘डोर’ में दिखे, यहां भी आलोचकों ने उनके काम को सराहा और इसके बाद उन्होंने एक से एक सफल फिल्मों में अलग-अलग भूमिका निभाकर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाई. विनम्र और शांत स्वभाव के श्रेयस को हर तरह की भूमिका और काम करना पसंद है, उन्होंने अपने जीवन में कुछ दायरा नहीं बनाया है और जो भी काम चुनौतीपूर्ण लगता है, उसे करने के लिए हां कह देते है. उनकी फिल्म ‘पोस्टर बौयज’ रिलीज हो चुकी है, इसमें उन्होंने अभिनय के अलावा पहली बार निर्देशन का काम भी किया है जिसमें उनका साथ दिया अभिनेता सनी देओल ने, जो हर समय उनके साथ रहे. फिल्म अच्छी बनी और वे अपने काम से खुश हैं. पेश है उनसे हुई बातचीत के अंश.
अभिनय और निर्देशन दोनों को साथ-साथ करना कितना मुश्किल और रिस्की था?
पोस्टर बौयज में सिर्फ अभिनय का ही विचार था. इसे लिखने के बाद सोचा नहीं था कि प्रोड्यूस और डायरेक्ट करूंगा. जब मैंने सनी देओल को इस फिल्म की कहानी सुनाई थी, तो उन्होंने मुझसे पूछा था कि इसका निर्देशन कौन कर रहा है. मैंने कहा था कि मैं खोज रहा हूं अभी तक कोई मिला नहीं, क्योंकि सारे व्यस्त है इसपर उन्होंने मुझे ही निर्देशन करने की सलाह दी थी. मैंने अभी निर्देशन की बात नहीं सोची थी, लेकिन इतना तय था कि 3 से 4 साल बाद अवश्य करता. सनी ने ही मुझे सुझाया कि आप ने फिल्म की कहानी लिखी है और मराठी में भी आप थे, ऐसे में एक अच्छी टेक्नीशियन की टीम के साथ आपको इसे करने में आसानी होगी. इसके अलावा मैं तो सेट पर रहूंगा ही, कुछ जरुरत पड़ी तो हेल्प करूंगा. बस यहीं से मेरे अंदर आत्मविशवास आया. निर्देशन रिस्की इसलिए नहीं था, क्योंकि सनी देओल जैसे अच्छे निर्देशक और एक्टर का होना मेरे लिए अच्छी बात थी, जिन्होंने कई अच्छी फिल्में की है, ऐसे मैंने अगर कुछ गलत काम किया है, तो वे मुझे अवश्य सही करने के लिए निर्देश देंगे.
मुश्किल ये था कि मैं अपनी संवाद अभिनय करते वक्त भूल रहा था, लेकिन मेरे क्रिएटिव डिरेक्टर ने मुझे समझाया कि अगर तुम ऐसा करोगे, तो फिल्म को खराब करने में तुम्हारा ही हाथ रहेगा. असल में कैमरे के आगे आते ही मेरा ध्यान रहता था कि बाकी कलाकारों की लाइनें ठीक जा रही है या नहीं, लेकिन बाद में मैंने अपने अभिनय पर फोकास किया और फिल्म बनी.
अब तक की जर्नी को कैसे लेते हैं? क्या आगे भी फिल्मों का निर्देशन करने की इच्छा है?
मेरी जर्नी काफी उतार-चढ़ाव के बीच थी और मेरे हिसाब से हर कलाकार को इस फेज से गुजरना पड़ता है. वह समय मेरे लिए बहुत तनावपूर्ण था, कई बार महसूस हुआ कि जो मैंने सोचा नहीं था वह हुआ, उतनी फिल्में मैंने नहीं की, लेकिन धीरे-धीरे सब सही हो गया, क्योंकि अगर मैं फिल्मों में ही व्यस्त रहता, तो फिल्मों के निर्माण करने, लिखने या निर्देशन के बारे में सोच नहीं पाता. अब ऐसा होने लगा था कि मुझे जो फिल्में चाहिए थी, वह मुझे नहीं मिल रही थी. तब मैंने सोचा कि इस जोन से निकलकर, मैं ऐसी कहानी कहूंगा, जो मुझे खुशी दे और पोस्टर बौयज बनी. इस तरह एक्टिंग अगर सही तरह से चल रही होती, तो शायद मैं दूसरे क्षेत्र को एक्स्प्लोर नहीं कर पाता.
मेरे लिए निर्देशन अभी एकदम नया है, लेकिन इसे करने के बाद बहुत अच्छा लगा. दरअसल जब मैंने लिखना शुरू किया था, तब लगा था कि मुझे अपनी कहानी अपने तरीके से कहने की जरुरत है, जिसके लिए मुझे निर्देशन के क्षेत्र में उतरना पड़ेगा. कालेज के जमाने से मैंने थिएटर जरूर किये थे, पर निर्देशन कभी नहीं किया था. मैंने हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में काम किया है. अभी मैं और कई फिल्मों का निर्देशन मराठी और हिंदी में करना चाहूंगा. मैंने देखा है कि ये काम स्ट्रेस बुस्टर है.
आप एक अच्छे मिमिक्री आर्टिस्ट भी हैं, उसमें आप कुछ करने की इच्छा रखते हैं?
‘गोलमाल अगेन’ के सेट पर मैंने काफी मिमिक्री की है और ये मुझे अच्छा लगता है, क्योंकि सात साल बाद ये पूरी टीम आने की वजह से खूब मौज-मस्ती कर रहे है. मिमिक्री में अभी कुछ करने के बारे में सोचा नहीं है.
क्या नाटक और टीवी से फिर से जुड़ने की इच्छा है?
मुझे अच्छा लगेगा, क्योंकि मैंने अपने करियर की शुरुआत नाटक और टीवी से ही किया है. उसी की वजह से मैं यहां तक पहुंचा हूं. मैं अभी भी मराठी नाटक देखता हूं. मैं नाटक देखते वक्त ही कई बार सोचता हूं कि मुझे भी वहां स्टेज पर होना चाहिए, लेकिन जैसा आपको पता है कि नाटक में पैसे नहीं मिलते और आपको घर चलाने के लिए पैसे चाहिए, ऐसे में फिल्म की ओर जाना पड़ता है.
इकबाल, डोर और क्लिक जैसी फिल्मों में आपने सोलो एक्टिंग किया है, क्या आपको लगता है कि आपको मल्टीस्टार फिल्मों से अधिक सोलो एक्टिंग में जगह मिलनी चाहिए थी?
एक नौन खिल्मी बैकग्राउंड से होने की वजह से थोड़ी मुश्किलें आई. मसलन फिल्म ‘ओम शांति ओम’ में मेरी भूमिका अच्छी थी, पर ग्रेट नहीं थी. शाहरुख खान और फरहा खान की वजह से मैंने काम किया था. इसके अलावा कई बार कुछ फिल्में मैंने अपने दोस्तों के लिए किया, कुछ फिल्में मैंने अपने सीनियर एक्टर के कहने के पर भी कर लिया. मैं इसके लिए कभी ‘रिग्रेट’ नहीं करता, क्योंकि उस समय मुझे जो ठीक लगा, मैंने किया. मैंने कभी भी किसी गेम या पौलिटिक्स में शामिल होना उचित नहीं समझा. मेरी गलती यह रही है कि मैंने अपनी ‘पी आर’ ठीक तरीके से नहीं की, क्योंकि आज के जमाने में अपनी पब्लिसिटी अच्छी तरीके से करनी पड़ती है. जितना मेहनत आप फिल्म को सफल बनाने के लिए अभिनय में करते है उतना ही उसकी पब्लिसिटी उसे देखने के लिए करनी पड़ती है. मैं डिजिटल प्लेटफार्म पर अधिक सक्रिय नहीं हूं. मेरी बहन ने भी इसे एक बार टोका है और अब मैं देर से ही सही इस ओर ध्यान दे रहा हूं.
क्या फिल्म इंडस्ट्री में किसी फिल्म को ‘ना’ कहना मुश्किल होता है?
मेरे जैसे आउटसाइडर को बहुत अधिक मुश्किल होता है और आपको जानते हुए भी कि फिल्म आपके लिए सही नहीं है, आपको उसे हां कहना पड़ता है. मैं अभी भी दोस्तों के लिए फिल्में करता हूं, क्योंकि इससे मुझमें सकारात्मकता का विकास होता है.
क्या अभी कोई मराठी फिल्म कर रहे हैं?
अगले साल मराठी में ‘पोस्टर बौयज 2’ की कहानी को करने की इच्छा है. इसे लिख रहा हूं.
क्रिएटिविटी के हिसाब से मराठी या हिंदी किसमें अधिक आजादी मिलती है?
सभी में मिलती है, क्योंकि आज सभी चाहते हैं कि फिल्म अच्छी बने, सेंसर बोर्ड की दहशत भी अब खत्म हो गयी है. असल में सेंसर बोर्ड को सर्टिफिकेशन सही तरीके से करनी चाहिए.