थिएटर से शुरूआत कर फिल्मों में अपनी एक अलग पहचान बनाते हुए अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले अभिनेता ओमपुरी हमेशा दर्शकों को एक अलग रंग में नजर आते रहे. बदले हुए समाज व बदले हुए सिनेमा के रूप व स्तर से ओम पुरी कभी खुश नहीं रहे. उन्होंने हर मसले पर हमेशा अपनी बेबाक राय रखी. मगर समय,समाज व सिनेमा के बदलाव के साथ उनके निजी जीवन व उनके व्यवहार में भी अप्रत्याशित बदलाव आता रहा.

मुझे याद है ओम पुरी ने बौलीवुड में जब अपना करियर शुरू किया था, उस वक्त वह बहुत सहृदय इंसान थे. वह मुंबई में बैंड स्टैंड के पास एक बंगले में एक फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. उस वक्त तक उन्हे फिल्म‘आरोहण’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिलने के साथ ही फिल्म ‘‘अर्धसत्य’’ में उनके अभिनय की काफी तारीफें होने लगी थीं. फिल्म ‘‘अर्धसत्य’’ के उनके अनंत वेलनकर के किरदार की हर कोई प्रशंसा कर रहा था. जब मैं उनके पास बैठा हुआ था, उसी वक्त खबर मिली थी कि उन्हें फिल्म ‘‘अर्धसत्य’’ के लिए दूसरा राष्ट्रीय पुरस्कार मिल गया है. उस वक्त ओम पुरी ने बड़ी विनम्रता के साथ कहा था, ‘‘मैं तो कलाकार हूं. कला की सेवा करने आया हूं. यह पुरस्कार तो मेरी जिम्मेदारी में इजाफा कर रहे हैं.’’ मगर 2005 के बाद ओम पुरी के अंदर एकगुस्सैल इंसान ने जगह ले ली थी.

राष्ट्रीय पुरस्कार की खबर सुनकर ओम पुरी को बधाई देने के लिए धीरे धीरे कई निर्माता निर्देशकों का वहां जमावड़ा लग गया था. (वास्तव में यह 1983 की बात है. जब मोबाइल फोन थे नहीं और न ही हर किसी के घर या आफिस में फोन हुआ करता था. आज के जमाने में शायद लोग मोबाइल फोन पर ही बधाई देकर चुप बैठ जाते.) बहरहाल, उस वक्त वहां इकट्ठा हुए फिल्मकार यही कह रहे थे कि ओमपुरी जी अभिनय को नित नए आयाम देते जा रहे हैं और यह सिलसिला कहां जाकर ठहरेगा, कोई नहीं कह सकता. लेकिन जैसे ही कला सिनेमा मृत प्राय हुआ और ‘कला सिनेमा’ की बदौलत कमायी गयी शोहरत के बल पर ओम पुरी मुंबईया मसाला फिल्मों का हिस्सा बने, वैसे ही उनकी प्रतिभा धूमिल होती चली गयी. उनके बोल बदलते चले गए. जनवरी 2012 में ओम पुरी ने हमसे कहा था-‘‘मैं तो जिंदगी जीने के लिए कमर्शियल फिल्में कर रहा हूं.’’

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