फिल्म ‘बेबी’ में अक्षय कुमार की पत्नी की भूमिका निभा कर चर्चा में आईं अभिनेत्री मधुरिमा तुली करीब 6 साल से फिल्म इंडस्ट्री में हैं. ‘मिस उत्तरांचल’ से अभिनेत्री बनना उन के लिए आसान नहीं था. फिर भी विज्ञापन, हिंदी फिल्मों व टीवी धारावाहिकों में काम करने के अलावा उन्होंने दक्षिण की कई फिल्मों में भी काम किया. साधारण स्वभाव की मधुरिमा को फिल्मों में अभिनय का शौक तो था पर कोई गौडफादर न होने की वजह से अभिनय की दुनिया में आने से डरती थीं. लेकिन ‘मिस उत्तरांचल’ के खिताब ने उन्हें अभिनय के क्षेत्र में आगे बढ़ने की प्रेरणा दी. इस समय वे जी टीवी के रिऐलिटी शो ‘आई कैन डू दैट’ में एक प्रतिभागी हैं. उन से मिलना व बातचीत करना बेहद रोचक था. पेश हैं बातचीत के खास अंश:

आप अपने बारे में विस्तार से बताएं. इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहां से मिली?

मेरा जन्म झारखंड के धनबाद में हुआ है. मेरे पिता टाटा स्टील में काम करते थे. उन का हमेशा ट्रांसफर हुआ करता था. इस वजह से मैं जमशेदपुर, ओडिशा, देहरादून आदि कई स्थानों पर गई. देहरादून में पढ़ाई के दौरान मैं ने ‘मिस उत्तरांचल’ कौंटैस्ट में भाग लिया और 200 प्रतिभागी लड़कियों वाले इस इवेंट में मैं मिस उत्तरांचल बनी. मैं जीत गई तो मौडलिंग की तरफ मेरी रुचि बढ़ी, आत्मविश्वास बढ़ा और मुंबई आने की इच्छा हुई. लेकिन मां ने पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी. मैं उस समय केवल 15 वर्ष की थी. पढ़ाई खत्म कर के मैं मुंबई आ कर किशोर नमित कपूर के यहां कोर्स किया और इस क्षेत्र में आ गई.

कितना संघर्ष रहा?

पहले हर स्टूडियो व प्रोडक्शन हाउस में जा कर अपना फोटो देती रही, तो कई औडिशन भी दिए. फिर धीरेधीरे विज्ञापनों में फिर कुछ धारावाहिकों में छोटी भूमिकाएं मिलने लगीं. लेकिन मुझे जो भी काम मिला मैं करती गई. मैं ने ‘झांसी की रानी’, ‘रंग बदलती ओढ़नी’, ‘परिचय’, ‘कुमकुम भाग्य’ आदि टीवी शोज में काम किया.

फिल्मों में काम कैसे मिला?

मेरा कोई गौडफादर तो था नहीं, जो मुझे आगे बढ़ने में मदद करता. मेरा फिल्म ‘बेबी’ के लिए औडिशन हुआ तो निर्देशक ने मुझे चुन लिया. रोल छोटा था पर अक्षय के अपोजिट था. इस तरह काम का सिलसिला चल पड़ा.

परिवार का सहयोग कैसा रहा?

मां और पिता का सहयोग था पर बूआ मना करती थीं. मैं ने परिवार से 1 साल का समय मांगा तो उन्होंने इजाजत तो दी ही आर्थिक सहायता भी की. जब आप किसी नए शहर में आते हैं, तो आर्थिक समस्या सब से अधिक रहती है. पिताजी उस समय हर महीने 7 हजार भेजते थे. मैं उसी में गुजारा करती थी और वे मेहनत से काम करने के लिए प्रेरित करते थे. संघर्ष के दिनों में ब्रैड और अचार खा कर भी गुजारा करना पड़ा. उन दिनों को जब मैं याद करती हूं तो लगता है कि वाकई मैं ने काफी संघर्ष किया है. लेकिन मातापिता का सहयोग हर पल रहा. वे हमेशा प्रोत्साहन देते थे.

‘कास्टिंग काउच’ शब्द से आप कितनी परिचित हैं? क्या आप को उस का सामना करना पड़ा और उस से आप कैसे बाहर निकलीं?

फिल्म इंडस्ट्री में खराब और अच्छे दोनों तरह के लोग हैं. लेकिन यहां शोषण करने वाले अधिक हैं. शुरू में लोग कहते थे कि आप पैसे लगा दो, फिल्म बना देंगे. कुछ ने कहा कि आप इतनी सुंदर हैं, आप किसी बड़े आदमी से क्यों नहीं मिलतीं? कुछ ने यह तक कहा कि हमें हीरोइन को अंदर से देखना है. ये बातें मैं किसी से शेयर नहीं कर पाती थी. बस खुद से लड़ती थी. मैं मातापिता को इसलिए नहीं बताती थी कि उन्हें चिंता होगी. फिर भी पिता कई बार परेशान होते थे. पर मेरी मां हमेशा सकारात्मक सोच रखती थीं. वे कहती थीं कि अपना ‘सैल्फ स्टीम’ बनाए रखो, कोई अच्छा अवश्य मिलेगा. हर क्षेत्र में कुछ बुरे लोग अवश्य मिलते हैं. मैं भी उसी बात पर कायम रही.अभी मेरे साथ मेरा पूरा परिवार मुंबई में रहता है. यहां कोई रातोंरात स्टार बनता है, तो कुछ को सालोंसाल मेहनत करनी पड़ती है. मैं ऐडवैंचरस भी हूं. मेरी मां और मैं ने पर्वतारोहण किया है, तो ‘आई कैन डू दैट’ में मैं ने कई खतरनाक स्टंट भी किए हैं. 

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