पद्मश्री और पद्मभूषण सहित कई सम्मानों एवं पुरस्कारों से सम्मानित की जा चुकीं पंडवानी की मशहूर गायिका तीजनबाई की गायिकी में 59 साल की उम्र में भी खनक और अभिनय में लचक बरकरार है. पंडवानी गायन के दौरान मंच पर उन की हुंकार, फुफकार, ललकार से अनोखा समां बंध जाता है. हाथ में लिए तानपूरे को वे कभी गदा तो कभी रथ, कभी द्रौपदी के बाल तो कभी दुशासन के बाल के तौर पर प्रस्तुत कर डालती हैं.
तीजनबाई कहती हैं कि जब वे मंच पर महाभारत की कथा को परफौर्म कर रही होती हैं, तो वे किसी दूसरी ही दुनिया में पहुंच जाती हैं. जनता की तालियों की गड़गड़ाहट से उन के अंदर गजब की उमंगें जवां हो उठती हैं. पंडवानी के बारे में वे बताती हैं कि महाभारत की कहानी के पात्र पांडवों की कहानी को सुरताल से सजाना ही पंडवानी है. वे कहानी के संवादों को संगीत और अभिनय के साथ मंच पर प्रस्तुत करती हैं.
रंग लाई मेहनत
पिछले दिनों पटना पुस्तक मेले में पंडवानी पेश करने पहुंचीं तीजनबाई ने मुलाकात के दौरान बताया कि वे महज 13 साल की उम्र से पंडवानी गायन कर रही हैं और अब तक वे 212 शिष्यों को इस की तालीम दे चुकी हैं. उन के शिष्य भी पंडवानी गायन को आगे बढ़ा रहे हैं. 24 अप्रैल, 1956 को छत्तीसगढ़ के भिलाई जिले के गनियारी गांव में पैदा हुईं तीजन के पिता और मां नहीं चाहते थे कि वे पंडवानी गायिका बनें. मगर अपनी जिद और मेहनत के बूते उन्हें पंडवानी लोकगीत नाट्य की पहली महिला कलाकार बनने का गौरव हासिल हुआ.
पंडवानी गायन के प्रति रुझान कब और कैसे जगा, के सवाल के जवाब में तीजन बताती हैं, ‘‘बचपन में एक दिन नहर की ओर जा रही थी तो रास्ते में अपने नाना ब्रजलाल को पंडवानी गायन करते देखा. जिस अंदाज में वे पंडवानी गा रहे थे उसे सुन कर मेरा रोमरोम सिहर उठा. उस के बाद मैं रोज छिपछिप कर नाना का गायन सुनने लगी. एक दिन नाना ने मुझे छिप कर सुनते हुए पकड़ लिया. फिर अपने पास बुला कर पूछा कि यहां क्या कर रही हो? तब मैं ने सब सचसच बता दिया. नाना ने कहा कि जो कुछ सुना है उसे मुझे गा कर सुनाओ. मैं ने 1-1 लाइन सुना दी, तो नाना की आंखों में आंसू छलक आए. उन्होंने मुझे दुलारते हुए कहा कि मेरे घर में ही रत्न है और मुझे पता नहीं चला. उस के बाद नाना ने मुझे पंडवानी सिखाना शुरू किया. जब मां और गांव वालों को पता चला तब सब ने खूब तानेउलाहने दिए. पर मैं ने किसी की नहीं सुनी और पंडवानी गाती रही.’’
उमड़ पड़ती है भीड़
वे लोकगीत और संगीत के खत्म होने के बारे में कहती हैं कि हर चीज का अच्छा और बुरा दौर आता है. मगर अपने काम में डटे रहेेंगे तो कामयाबी मिलनी तय है. यह कहना गलत होगा कि लोकगीतों के कद्रदान अब नहीं रहे. लोकगीत और संगीत के प्रोग्राम में आज भी कद्रदानों की भीड़ उमड़ती है और लोग दिल से वाहवाह करते हैं. इस से कलाकारों का हौसला कई गुना बढ़ जाता है. फिल्मों में गायकी के बारे में तीजन कहती हैं कि कई औफर मिलते हैं पर उन्हें अपने काम और प्रोग्रामों से ही फुरसत नहीं मिलती है. ‘भारत एक खोज’ धारावाहिक में गाने के लिए डायरैक्टर श्याम बेनेगल ने उन्हें मुंबई बुलाया था. वहां बड़े कलाकारों का जमघट देख तीजन घबरा गईं. वे उन पलों को याद करते हुए कहती हैं, ‘‘सैट पर बड़ेबड़े कलाकारों को देख कर मैं नर्वस हो गई. अभिनेता अमरीश पुरी ने मेरी घबराहट को भांप लिया. मैं ने उन से कहा कि मैं मुंबई में नई हूं, इसलिए नर्वस हो रही हूं. पता नहीं ठीक से गा पाऊंगी या नहीं? तब अमरीश पुरी ने मेरा हौसला बढ़ाते हुए कहा कि श्याम बेनेगल के पिंजरे में जो भी आता है वह शेर ही होता है.’’