ऐसा बहुत कम होता है कि किसी फिल्मकार की पहली ही फिल्म ‘‘कान्स इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल’’ में ‘डेब्यू डायरेक्टर’ के प्रतियोगिता खंड का हिस्सा बन जाए. पर यह गौरव भारतीय फिल्मकार जिया उल खान के निर्देशन में बनी पहली फिल्म ‘‘विराम’’ को मिला है.

मोतीहारी, बिहार निवासी एक पुलिस अफसर के बेटे जिया उल खान दिल्ली में पढ़ाई पूरी करने के बाद मुंबई आए थे. बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म ‘‘विराम’’ इन दिनों कान्स फिल्म फेस्टिवल में धूम मचा रही है.

क्या आपने कान्स फिल्म फेस्टिवल को ध्यान में रखकर ही फिल्म ‘‘विराम’’ का निर्माण किया?

हर फिल्मकार का सपना होता है कि उसकी फिल्म ‘कान्स फिल्म फेस्टिवल’ का हिस्सा बने. हमें खुशी है कि हमारी फिल्म का विश्व प्रीमियर 18 मई को ‘‘कान्स इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल’’ में हुआ. हमारी फिल्म के निर्माता हरी मेहरोत्रा 65 साल के हैं. 25-30 साल पहले वह मुंबई में अभिनेता बनने आए थे. कुछ वजहों से उन्हें मुंबई से वापस जाना पड़ा था. अब वह दोबारा वापस आए हैं, तो उनके अपने कुछ सपने हैं. फिल्म बनाना उनका पेषा नहीं पैशन है.

जब हमने फिल्म निर्माण शुरू किया था, तभी यह योजना बनी थी कि हम सबसे पहले अपनी फिल्म को कान्स फिल्म फेस्टिवल में ले जाएंगे, उसके बाद भारत में रिलीज करेंगे. आपको पता होगा कि कान्स फिल्म फेस्टिवल का नियम है कि फिल्म सबसे पहले उनके फेस्टिवल में जानी चाहिए, उसके बाद दूसरे किसी फेस्टिवल में भेजी जाए.

फिल्म वास्तव में कान्स फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा रही या उसके बाजार सेक्शन में है?

हमने अपनी फिल्म को ऑफिशियली कान्स फिल्म फेस्टिवल में फिल्म भेजा था. ‘कान्स फिल्म फेस्टिवल’ में डेब्यू डायरेक्टर के प्रतियोगिता खंड में हमारी फिल्म ‘विराम’ का चयन हुआ था, जिसे 18 मई को वहां दिखाया गया. प्रतियोगिता खंड में फिल्म होने की वजह से हमें काफी दर्शक मिले. अब हमारी फिल्म के कमाने के अवसर बढ़ गए हैं. पूरे विश्व में 35 देश हैं, जहां भारतीय फिल्म देखी जाती हैं. इसीलिए हमने अपनी फिल्म का ‘कान्स फिल्म फेस्टिवल’ में प्रीमियर करने का निर्णय लिया. कान्स में मौजूद फिल्मकारों व वितरकों की मांग पर हम इसे बाजार सेक्शन में भी दिखा सकते हैं. अभी 28 मई तक कान फिल्म फेस्टिवल चलेगा.   

आपकी फिल्म में बड़े कलाकार नही हैं. इसलिए आप इसे कान्स फिल्म फेस्टिवल में ले गए?

आप ऐसा कह सकते हैं. फिल्म को पुरस्कार मिले या ना मिले, लेकिन जब कोई फिल्म किसी इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा बन जाती है, तो उसके लिए वितरक खोजना आसान हो जाता है. मुझे लगता है कि हमारी मानसिकता आज भी गुलामी की है. देश आजाद है. हम आजाद हैं. जब हमारी कोई फिल्म किसी भी यूरोपियन देश के फिल्म फेस्टिवल का हिस्सा बन जाती है, तो हमारे यहां उसे हाथों हाथ लिया जाता है. फिल्म के प्रति लोगों का नजरिया बदल जाता है. लोग सोचते हैं कि फिल्म में कुछ तो है, तभी तो इंटरनैशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखायी गयी.

दूसरी बात आज की तारीख में फिल्म की कमायी का जरिया सिर्फ बॉक्स ऑफिस नहीं रहा. अब डिजीटल प्लेटफॉर्म से भी कमायी होती है. फिल्म फेस्टिवलों से भी कमायी होती है. पूरे 70 प्लेटफार्म हैं, जहां फिल्म बिकती है और कमायी होती है. यदि हमारी फिल्म ‘कान्स फिल्म फेस्टिवल’ में पुरस्कृत हो गयी, तो एक माह के अंदर हम दो या तीन गुणा कमा लेंगे.

यदि ऐसा है, तो फिल्में बीच में ही बनना बंद क्यों हो जाती हैं?

आपने एकदम सही कहा. मेरे एक मित्र का कहना है कि, ‘कोई भी फिल्म असफल नहीं होती है, उसका बजट असफल होता है.’ फिल्मों के रूकने की वजह यह होती है कि हम तैयारी नहीं करते हैं. फिल्म निर्माण शुरू करने से पहले अपनी पूरी तैयारी करनी चाहिए. जब फिल्म सही बजट में बनेगी, तो कोई समस्या नहीं आएगी. हमारे यहां तो प्री प्रोडक्शन पर ध्यान ही नहीं दिया जाता. कई बार निर्माताओं के आपसी ‘ईगो’ के चलते फिल्म रिलीज नही होती है.

फिल्म ‘‘विराम’’ क्या है?

यह फिल्म एक मैच्योर प्रेम कहानी है. फिल्म का नायक 55 वर्ष के उद्योगपति मेहरोत्रा (नरेंद्र झा) हैं, जिनकी पत्नी की मृत्यू हो चुकी है. फिर उनकी जिंदगी में एक लड़की मातुल (उर्मिला महंता) आती है. कैसे प्यार इन दोनों क जिंदगी में बदलाव लाता है. जब एक पुरूष और एक स्त्री मिलेगें, तो किसी न किसी मोड़ पर रोमांस तो होगा ही. इसी के साथ इसमें रहस्य का तड़का भी है.

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