‘हवेली पर आना कभी’, ‘जो जिंदगी मुझसे टकराती है वो सिसक-सिसक कर दम तोड़ देती है’, ‘जा सिमरन जी ले अपनी जिंदगी’, ‘प्रेमी है, पागल है, दीवाना है’, ‘ऐसी मौत मारूंगा कमीने को कि भगवान भी पुर्नजन्म वाला सिस्टम ही खत्म कर देगा’ और ‘इतने टुकड़े करूंगा कि तू पहचाना नहीं जाएगा’ ऐसे न जाने कितने हिट डायलौग्स अमरीश पुरी ने अपने फिल्मी करियर में बोले हैं.

इन डायलौग्स की वजह से ही उन्हें बौलीवुड का सुपर विलेन कहा जाता है. लेकिन क्या आप विश्वास करेंगे कि अमरीश पुरी विलेन नहीं बनना चाहते थे. वो हीरो बनने के लिए मुंबई आए थे. चलिए बताते हैं आखिर कैसे हीरो बनने के चक्कर में विलेन बन गए थे अमरीश पुरी.

जब भी हिंदी सिनेमा जगत के खलनायकों के बारे में बात होगी तो उस लिस्ट में सबसे पहले अमरीश पुरी का नाम होगा. फिल्मों में अपने विलेन के हर रोल को अमर बना देने वाले अमरीश पुरी को खलनायकी का पर्याय ही माना जाने लगा था.

भले ही उन्हें दुनिया से अलविदा से कई बरस बीत गए हों. लेकिन आज भी उनकी फिल्में उनका हमारे बीच होने का एहसास करा ही देती हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि खलनायकी का पर्याय माने जाने वाले अमरीश पुरी हीरो बनने की चाहत लेकर मुंबई में आए थे.

एक रिपोर्ट के मुताबिक अमरीश पुरी के दोनों भाई मदन पुरी और चमन पुरी पहले से ही फिल्म इंड्रस्टी में थे और उन्होंने ही पहली बार अमरीश पुरी का पोर्टफोलियो तैयार करा कर इंड्रस्टी में दिखाया था. शुरुआत में अमरीश पुरी को सपोर्टिंग रोल भी मिल गए थे लेकिन किसी ने हीरो के रूप में उन्हें स्वीकार नहीं किया था.

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