सिनेमा में होंगे अमूलचूल बदलाव

कोरोना की बीमारी के चलते पूरे विश्व में लॉक डाउन है, जिससे आम इंसान अपने अपने घरों में कैद है. तो वहीं पूरे विश्व में हर इंसान के साथ हर इंडस्ट्री पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.  इससे पूरे विश्व के साथ साथ भारत की फिल्म व टीवी इंडस्ट्री भी अछूती नही है.  अफसोस की बात यह है कि संकट की इस घड़ी में आपस में बैठकर सिनेमा की बेहतरी के लिए किसी नई राह को तलाशने की बजाय कुछ भारतीय फिल्म निर्माताओं ने एक तरफा निर्णय लेते हुए अपनी फिल्मों को थिएटर मल्टीप्लैक्स व सिंगल सिनेमाघरों की बजाय सीधे ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रदर्शन के लिए बेच कर अपनी जेबें भर ली हैं. इस पर निर्माताओं का तर्क है कि उनकी फिल्में फरवरी माह से तैयार थीं,  कोरोना के चलते पता नहीं कब सिनेमाघर खुलेंगे, इसलिए उन्होने अपनी फिल्म की ताजगी को बरकरार रखने के मकसद से यह कदम उठाया है.

मगर फिल्म निर्माताओं के इस कदम से फिल्म निर्माताओं और मल्टीप्लैक्स मालिकों के बीच तलवारे खिंच गयी हैं. इसके‘यदि दूरदर्शी परिणामों पर गौर किया जाए, तो इसका सबसे बुरा असर सिनेमा पर ही पड़ने वाला है. क्योंकि फिल्म निर्माता और सिनेमाघर मालिक तो आते जाते रहेंगे, क्योंकि कुछ भी नश्वर नहीं है. मगर इनकी आपसी खींचतान से सिनेमा और फिल्म उद्योग का जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई कौन करेगा? इसका जवाब देने के लिए कोई तैयार नही है. मगर जिस तरह के हालात बन गए हैं, उसके मद्दे नजर अब भारतीय फिल्म उद्योग कई खेमों में न सिर्फ बंटा हुआ नजर आएगा, बल्कि यह खेमें यदि एक दूसरे के साथ ‘‘अछूत’’जैसा व्यवहार करते हुए नजर आएं, तो किसी को भी आश्चर्य नही होगा.

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