पंजाबी एक्ट्रैस नीरु बाजवा ने अपने एक्टिंग करियर की शुरूआत 18 साल की उम्र में 1998 में हिंदी फिल्म‘‘मैं सोलह बरस की’’से की थी. उसके बाद उन्होंने 2003 में हिंदी सीरियल ‘‘अस्तित्वःएक प्रेम कथा’’ और ‘जीत’ जैसे सीरियल किए. इसी बीच उन्होंने 2004 में पंजाबी फिल्म‘अस नु मान वतन दा’ की.2005 में नीरू बाजवा ने राकेश चैधरी निर्मित सीरियल ‘‘हरी मिर्च लाल मिर्च’’में लीड किरदार निभाया. इसके साथ ही वह फिल्म निर्माण में भी भी अपना हाथ आजमा चुकी हैं. फैमिली के साथ-साथ वह फिल्मी करियर से अभी तक जुड़ी हुई हैं. और अब 21 जून को उनकी नई पंजाबी फिल्म ‘‘छड़ा’’ रिलीज होने वाली है. जिसमें चार साल बाद नीरू बाजवा ने दिलजीत दोशांझ के साथ एक्टिंग की है. पेश है नीरू बाजवा के साथ हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश…
आप पंजाबी फिल्मों की स्टार हैं. जबकि हिंदी फिल्मों में आपने बहुत कम सफलता पायी है. आपको कहां क्या कमी नजर आती है?
-कमी कहीं नही है. मुझे पंजाबी फिल्में करने में मजा आता है. मैं वहीं ज्यादा व्यस्त रहती हूं.मैंने हिंदी में टीवी सीरियल ‘हरी मिर्ची लाल मिर्ची’’ में मेन लीड किरदार निभाने के साथ साथ कुछ हिंदी फिल्मों में छोटे किरदार भी निभाए थे. पर बाद में मेरा ध्यान पंजाबी फिल्मों की तरफ ही हो गया. मैं पंजाबी फिल्मों में अभिनय करने के अलावा अब तक ‘चन्नोःकमली यार दी’’, ‘‘सरगी’’ और ‘‘लौंग लाची’’जैसी तीन पंजाबी फिल्मों का निर्माण कर चुकी हूं. एक फिल्म ‘‘सरगी’’का निर्देशन भी किया है. फिल्म‘‘सरगी’’ में मेरी बहन रूबीना बाजवा के साथ बब्बल राय और जस्सी गिल ने अभिनय किया था. इसी के चलते मेरा पूरा ध्यान पंजाबी सिनेमा में ही लगा रहता है.
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अभिनय व निर्माण के साथ साथ निर्देशन में उतरने की कोई खास वजह रही?
-सबसे बड़ी वजह यह रही कि मुझे अपनी छोटी बहन रूबीना बाजवा को फिल्मों में लांच करना था. इसके अलावा इसकी कहानी भी ऐसी थी कि मुझे लगा कि मैं ही इसका निर्देशन करूं, तो बेहतर होगा. मैं अपनी बहन के टैलेंट को बहुत बेहतर तरीके से जानती थी. मुझे लगा कि मैं ही उसे सही ढंग से परदे पर ढाल सकती हूं. इसलिए मैंने इस फिल्म का निर्देशन किया. फिल्म को जबदस्त सफलता मिली. अब मेरी बहन पंजाबी फिल्मों में कई फिल्में कर रही है.
आपने कब महसूस किया कि आपकी बहन को भी फिल्मों में आना चाहिए?
-देखिए,बचपन में तो मैं और मेरी बहन दोनों ही एक साथ डांस व थिएटर किया करते थे. इसलिए मैं उसकी प्रतिभा को बचपन से देखती आ रही हूं.फिर जब मैं मुंबई रह रही थी,तो मैंने उसे अनुपम खेर के एक्टिंग स्कूल में भेजकर अभिनय का विधिवत प्रशिक्षण भी दिलाया. जब मुझे लगा कि अब वह फिल्मों में हीरोइन के रूप में बेहतर काम कर सकती है,तो मैंने उसे हीरोईन लेकर पंजाबी फिल्म ‘‘सरगी’’ निर्माण व निर्देशन किया.इस त्रिकोणी पे्रम कहानी वाली फिल्म में रूबीना के साथ जस्सी गिल व बब्बर रॉय ने अभिनय किया है.
इन दिनों पंजाबी सिनेमा किस दिशा में जा रहा है.क्या नए बदलाव आ रहे हैं?
-देखिए,पंजाबी फिल्म इंडस्ट्री लंबे समय समय पहले बंद हो गयी थी. लगभग दस साल पहले इसकी दोबारा शुरूआत हुई.इस तरह देखा जाए तो हमारी फिल्म इंडस्ट्री बहुत पुरानी नही है. जब पंजाबी सिनेमा की दोबारा शुरूआत हुई, तो एक ही लेखक निर्माता निर्देशक अभिनेता काम कर रहा था. धीरे-धीरे कुछ नए लोग आए. पिछले पांच छह वर्षों के दौरान पंजाबी सिनेमा के साथ काफी लोग जुडे़ हैं. अब यह काफी बड़ा सिनेमा हो गया है. हमें पंजाबी सिनेमा पर गर्व है, क्योंकि हमारा पंजाबी सिनेमा सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी अपनी सफलता के झंडे गाड़ रहा है.आप यकीन करें या ना करें, लेकिन विदेशों में हिंदी फिल्मों के मुकाबले पंजाबी फिल्में ज्यादा कमायी कर रही हैं. पंजाबी सिनेमा में हीरोइनों के लिए भी काफी अच्छे किरदार लिखे जा रहे हैं. नारी प्रधान किरदार लिखे जा रहे हैं. पारिवारीक फिल्में भी बन रही हैं. अब पंजाबी सिनेमा की पहचान सिर्फ कौमेडी फिल्मों वाली नही रही. गंभीर विषयों पर आधारित फिल्मों ने भी सफलता के परचम लहराए हैं.
विदेशों में हिंदी फिल्में कमायी नही कर पा रही हैं. जबकि पंजाबी फिल्में अच्छी कमायी कर रही हैं. इसकी क्या वजह आपकी समझ में आती है?
-पहली बात तो इंग्लैड, कनाडा, जापान, अमरीका सहित कई देशों में पंजाबी भारतीय बहुत रह रहे हैं. इस वजह से वह पंजाबी सिनेमा देखते हुए रिलेट करते हैं.यह उनकी अपनी बोली का सिनेमा होता है. उसके साथ खुद को जुड़ा हुआ पाते हैं.दूसरी वजह यह है कि तमाम हिंदी फिल्में ऐसी होती हैं, जिन्हें आप पूरे परिवार के साथ देखने नही जा सकते. जबकि हम पंजाबीयों की खासियत है कि हम पूरे परिवार के साथ फिल्में देखने जाते हैं. पूरे परिवार का मतलब नाना नानी दादा दादी बच्चे सब होते हैं. शायद इन्ही वजहों के चलते विेदश में पंजाबी सिनेमा ज्यादा देखा जाता है. आप यदि देखेंगे तो हर पंजाबी फिल्म ऐसी ही होती हैं जिन्हें बच्चे से बूढे तक परिवार का हर सदस्य इकट्ठा देख सकें. जबकि हिंदी फिल्मों में समस्या आती है.
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पर आम धारणा यह है कि पंजाबी दर्शक कॉमेडी फिल्में ही देखना पसंद करता है?
-ऐसा नही है. कुछ लोग इस तरह की गलत धारणाएं बना रखी हैं. मैंने पहले ही कहा कि अब पंजाबी में हर तरह का सिनेमा देखा जाता है. पंजाब का दर्शक अलग तरह के कौंसेप्ट वाली फिल्म देखने के लिए पूरी तरह से तैयार है. हमारा पंजाबी का दर्शक काफी मैच्योर है.
दिलजीत दोसांझ के साथ आपकी सफल जोड़ी रही है.आप लोगों ने तीन फिल्में एक साथ की थी.अब ‘छड़ा’ आपकी चौथी फिल्म है. पर यह चार साल का गैप क्यों हो गया?
-मैं और दिलजीत दोनों ही हमेशा स्क्रिप्ट को प्रधानता देते हैं.काफी लंबे समय से ऐसी कोई स्क्रिप्ट नहीं आ रही थी, जो हम दोनों को पसंद आ सके.हम हमेशा एक साथ काम करने के लिए तैयार थे.पर अच्छी स्क्रिप्ट नही आ रही थी.जैसे ही अच्छी स्क्रिप्ट आयी, ‘छड़ा’ के साथ हम दोनों दर्शकों के सामने आने जा रहे हैं.
फिल्म ‘छड़ा’’में ऐसी क्या बात है कि आपको लगा कि यह फिल्म की जानी चाहिए?
-इस फिल्म की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस फिल्म के हीरो दिलजीत दोसांझ के साथ साथ इसके निर्माता लेखक निर्देशक सभी से अच्छी तरह से परिचित थी. मैं निर्देशक के साथ पहले भी एक फिल्म कर चुकी हूं. इसकी कहानी भी रिलेट कर रही हैं.
चार साल के दौरान दिलजीत में क्या बदलाव आया?
-कोई बदलाव नहीं आया.वह उसी तरह के इंसान हैं. कलाकार के तौर पर उन्होंने ग्रो किया है.अब हिंदी फिल्मों में भी उन्होंने अपनीअच्छी पहचान बना ली है.हां!चार साल में वह बडे़ स्टार हो गए है.
फिल्म‘‘छड़़ा’’के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगी?
-मेरे किरदार का नाम अंजली है. वह भी छेड़ी है.30 से अधिक की उम्र हो गयी है, पर शादी नहीं हुई है. पर वह आत्मनिर्भर है.वेडिंग प्लानर है.जबकि दिलजीत का किरदार भी छड़ा है.वह शादियों में फोटोग्राफी करते हैं. हम दोनों के बीच रोमांटिक कौमेडी है. इसमें कहीं कोई रोना धोना नही है. सिर्फ रोमांस और हास्य है. यह फिल्म लोगों को शुद्ध मनोरंजन देगी.
आपने काफी फिल्में कर लीं. अब किस तरह की फिल्में या किरदार करना चाहती हैं?
-खुद को सीमाओं में बांधना मुझे पसंद नहीं है.मैं हर तरह का किरदार निभाना चाहती हूं.मुझे हर जौनर की फिल्मों में अभिनय करना है. मैं अपने आपको लक्की मानती हूं कि मुझे हर फिल्म में अलग तरह का किरदार निभाने का मौका मिलता रहता है. मेरी दूसरी खुशनसीबी यह है कि रोने धाने वाले किरदार मेरे पास नहीं आते. मैं ना तो लोगों को रोते हुए देखना चाहती हूं ना खुद रोना चाहती हूं.
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तो दूसरी फिल्म भी निर्देशित करना चाहेंगी?
-जी हां!! फिल्म निर्देशित करना है. एक अच्छी स्क्रिप्ट की तलाश जारी है. स्क्रिप्ट को लेकर मैं बहुत सोचती नही हूं. पढ़ते पढ़ते मेरे अंतर्मन ने कह दिया कि अच्छी है,तो फिर अच्छी है.
कोई बायोपिक फिल्म नही करना चाहती?
-जी नहीं.. बायोपिक फिल्म नही करनी है. क्योंकि मुझे नही लगता कि मैं किसी भी बायोपिक के साथ न्याय कर पाउंगी.
हिंदी फिल्में करनी हैं या नहीं?
-हिंदी फिल्में न करने की मैंने कोई कसम नही खायी है.यदि कोई रोचक विषय वाली फिल्म में रोचक किरदार होगा, तो कर लूंगी.किरदार ऐसा हो जो मुझे अंदर से इंस्पायर करे.
टीवी करना चाहेंगी या नहीं?
-टीवी के लिए मेरे पास बिलकुल समय नही है. टीवी में बहुत समय देना पड़ता है. मेरे वश का नहीं है.
आप ज्यादातर समय कनाडा में रहती हैं. कनाडा और भारत के बीच कैसे सामंजस्य बैठाती हैं?
-जी हां! शादी के बाद मैं कनाडा रहने लगी हूं. मेरी तीन साल की बेटी भी है.पर कनाडा और पंजाब के बीच मुझे बहुत ज्यादा दूरी कभी नहीं लगी. हम हवाई जहाज पकड़कर महज 14 घंटे में कनाडा से मुंबई पहुंच जाते हैं. अब तो कनाडा में भी शूटिंग होने लगी है. मेरे द्वारा निर्मिज पहली पंजाबी फिल्म ‘‘चन्नोःकमली यार दी’’ की 95 प्रतिशत शूटिंग कनाडा में हुई थी. सच यह है कि शादी के बाद मेरे करियर को पंख लग गए.शादी के बाद ही मैने तीन फिल्मों का निर्माण किया.एक फिल्म का निर्देशन भी किया. अभिनय भी लगातार कर रही हूं.
इन दिनों आप क्या देखती हैं?
-बेटी की वजह से टीवी देख नही पाती. पर नेटफिलिक्स पर बहुत अच्छे कार्यक्रम आ रहे हैं, जो देख रही हूं. कुछ बहुत बेहतरीन वेबसीरीज भी मैंने देखी हैं. अब नेटफिलिक्स पर भारत से भी बेहतरीन कार्यक्रम ही जा रहे हैं, यह सुखद बात है.
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क्या वेब सीरीज करना चाहेंगी?
-बहुत जल्द आप मुझे किसी वेब सीरीज में देख सकेंगे. तीन चार वेब सीरीज के औफर आए हैं, जिनसे जुड़ने के बारे में सोच रही हूं. हो सकता है कि मैं खुद भी एक वेब सीरीज निर्देशित करूं.
कनाडा में लोग किस तरह की फिल्में देखना पसंद करते हैं?
-अब दर्शक काफी मैच्योर हो गया है. वह उल जलूल फिल्में नही देखना चाहता. सभी को अच्छी फिल्में देखना हैं. लोगों को स्टार नहीं कंटेट चाहिए.
आपके शौक क्या हैं?
-जिम जाना, पढ़ना,फिल्में देखना, यात्राएं करना. मुझे पंजाबी संगीत सुनना पसंद है. खासकर पुराने पंजाबी गाने सुनती हूं.
अब तक आपने जितनी भी फिल्में की हैं, उनमें से किस फिल्म के किस किरदार ने आपकी जिंदगी पर असर डाला?
-किसी भी फिल्म के किसी भी किरदार ने मेरी जिंदगी पर असर नही डाला.क्योंकि मैं काम को घर तक नही ले जाती. मैं खुद को औन औफ आर्टिस्ट मानती हूं.
कोई ऐसा किरदार है, जिसे आप करना चाहती हैं?
-नहीं.. मेरा एक ही सपना था हीर का किरदार निभाने का.तो मैंने फिल्म‘‘हीरा रांझा’’में अभिनय कर लिया.अब मैं योजना नहीं बनाती.
Edited by Rosy