औस्कर नौमीनेटेड फिल्म ‘‘लिटिल टेररिस्ट’’ के अलावा नेशनल अवार्ड से नवाजी जा चुकी फिल्म ‘‘इंशा अल्लाह फुटबाल’’ और ‘‘इंशा अल्लाह कश्मीर’’ सहित कई गंभीर फिल्मों के निर्देशक अश्विन कुमार अब बतौर लेखक और निर्देशक कश्मीर की पृष्ठभूमि पर फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ लेकर आए हैं. अश्विन कुमार का मानना है कि उनकी ये फिल्म फौज के साथ-साथ कश्मीर की असलियत पर रोशनी डालती है, जिसे सेंसर बोर्ड से पास करवाने के  लिए उन्हें नौ माह तक दौड़ना पड़ा था.

हाल ही में एक एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए अश्विन कुमार ने कश्मीर के वास्तविक हालात, उसकी वजहों, कश्मीरी लोगों के गायब होने सहित कई मुद्दों पर खुलकर बात की.

पतला होने का मतलब फिट होना नहीं- यास्मीन कराचीवाला

आप कश्मीर को लेकर काफी फैशिनेटेड हैं?

हर पत्रकार मुझसे यही सवाल करता है. मैं क्या कह सकता हूं. वैसे मैने अब तक के अपने करियर में कुल आठ फिल्में बनाई हैं, जिसमें से तीन फिल्में ही कश्मीर की पृष्ठभूमि में रही हैं.

 no fathers in kashmir

फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ बनाने की जरुरत क्यों महसूस हुई?

पहले तो मैं कहना चाहूंगा कि कश्मीर में जो कुछ हो रहा है, उससे हमारे देश की कौम पूरी तरह से वाकिफ नही है. ये बहुत दुःख की बात है. सच कहूं तो ये दुःख की बात नहीं बल्कि नेशनल ट्रैजिडी है. कश्मीर के लोगों के बारे में हमारे अखबारों और समाचार चैनलों द्वारा जिस तरह से गलतफहमी फैलाई जाती है, उस गलतफहमी को हटाने का एकमात्र तरीका लोगों तक सच्चाई को पहुंचाना है. उस सच्चाई को हम नहीं पहुंचा पा रहे हैं. या यूं कहें कि उस सच्चाई को दबाने का काम हो रहा है. सच को जानबूझकर दबाया जा रहा है. उससे निकलने का कोई साधन नहीं है. जब फिल्ममेकर इस सच को अपनी फिल्म के माध्यम से उजागर करने का प्रयास करते हैं, तो आप जानते ही हैं कि हमें सेंसर बोर्ड किस तरह परेशान करता है. हमारी आवाज को कुचलने की कोशिश होती है. मुझे फिल्म ‘‘नो फादर्स इन कश्मीर’’ को पास कराने के लिए पूरे नौ माह तक संघर्ष करना पड़ा. अब एफसीएटी के आदेश के बाद ‘यूए’ प्रमाणपत्र मिलना तय हुआ है. पर अभी तक प्रमाणपत्र मेरे हाथ में नहीं आया है.

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