जब किसी रचनात्मक इंसान के हाथ बंधे हों यानी कि रचनात्मक बंदिशों के साथ किसी विषय पर फिल्म बनानी हो, तो उस फिल्म का क्या हश्र हो सकता है, इसका नमूना है संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘‘पद्मावत’’. पटकथा लेखन में कुछ गलतियों के बावजूद सकून की बात यह है कि फिल्म ‘‘पद्मावत’’ में राजपूतों की ‘आन बान व शान’ का बेहतरीन चित्रण है.
यूं तो हम बचपन से किताबों में दर्ज कहानी ‘‘एक था राजा एक थी रानी, दोनों मर गए, हो गयी खत्म कहानी’’ को सुनते आए हैं, पर उसी कहानी को फिल्म ‘‘पद्मावत’’ में नए अंदाज में देखते हुए भी इस सवाल का जवाब नहीं मिलता कि पुरूष (अपने पति व अपने लोगों) के सम्मान के लिए एक स्त्री का जबरन जौहर यानी कि आग में कूद कर मौत को गले लगाने के सत्य घटनाक्रम से कैसे निपटा जाए.
फिल्म की कहानी 13वीं सदी में अफगानिस्तान से शुरू होती है. खिलजी वंश का शासक जलालुद्दीन खिलजी (रजा मुराद) अफगानिस्तान में अपने लोगों के साथ बैठ कर दिल्ली सल्तनत पर काबिज होने की योजना बना रहा है. उसी वक्त उनका भतीजा अलाउद्दीन खिलजी (रणवीर सिंह) जो कि वहशी, निर्दयी व अति गुससैल है, शुतुरमुर्ग के साथ पहुंचता है. शुतुरमुर्ग के एवज में जलालुद्दीन खिलजी की बेटी मेहरूनिशआ (अदिति राव हैदरी) का हाथ मांग लेता है. शादी के वक्त जब कार्यक्रम हो रहे हैं, उसी वक्त अलाउद्दीन राजमहल में ही एक महिला के साथ शारीरिक संबंध स्थापित करता है. मेहरूनिसा से शादी के बाद जलालुद्दीन, अलाउद्दीन को कारा का शासक बना देता है. अलाउद्दीन खिलजी चाल चलता है कि जलालुद्दीन उसके पास कारा पहुंच जाएं, जहां सारे सैनिक उसके विश्वासपात्र हैं. वहां पर वह सबसे पहले जलालुद्दीन द्वारा भेंट में लाए गए मलिक काफूर की परीक्षा लेते हुए मलिक कफूर के हाथों जलालुद्दीन के साथ आए दो विश्वासपात्रों की हत्या करवा देता हैं. उसके बाद खुद ही जलालुद्दीन खिलजी की हत्या कर राजा यानी कि सुल्तान बन बैठता है और अपनी पत्नी मेहरूनिसा को पिता की मौत पर आंसू तक नहीं बहने देता.
उधर सिंहल की राजकुमारी पद्मावती जंगल में शेर का शिकार कर रही है. पद्मावती का शेर पर चलाया गया तीर चित्तौड़ के राजा रतन रावल सिंह को लग जाता है, जो कि सिंहल नरेश के मेहमान हैं. राजा रतन रावल “सिंहल” में पाए जाने वाले खास तरह के मोती को लेने आए हैं. राजा रतन रावल की सेवा करते करते पद्मावती उसे दिल दे बैठती है और फिर राजा रतन रावल सिंह, पद्मावती से शादी करके ही वापस चित्तौड़ पहुंचते हैं. चित्तौड़ पहुंचने पर राजा रतन रावल सिंह अपनी पत्नी पद्मावती के साथ राज्य के गुरू राघव चेतन के पास ले जाते हैं. राघव चेतन, पद्मावती से कुछ सवाल पूछते हैं और जवाब पाकर वह खुद को हारा हुआ पाते हैं. रात में जब राजा रतन रावल सिंह और पद्मावती एकांत के क्षण बिताते हुए प्रेम मग्न हैं, तभी उन्हे गुप्त रूप से देखने राघव चेतन पहुंचते हैं और पकड़े जाते हैं. सजा के तौर पर पद्मावती उन्हें देश निकाला देने की बात करती है. देश निकाला मिलने पर राघव चेतन चितौड़ राज्य को मिटा देने की धमकी देते हुए बाहर निकलता है और दिल्ली सल्तनत पर काबिज हो चुके अलाउद्दीन खिलजी के पास जाकर पद्मावती के रूप सौंदर्य की तारीफ कर खिलजी को चित्तौड़ पर अधिकार जमाने की सलाह देता है.
पद्मावती के रूप सौंदर्य की प्रशंसा सुनकर पद्मावती को पाने की ख्वाहिश के साथ अलाउद्दीन खिलजी अपनी सेना लेकर चित्तौड़ पर आक्रमण के लिए निकलता है. कुछ दूर पर डेरा डालकर वह चित्तौड़ के राजा के पास संदेश भिजवाता है. राजा रतन रावल सिंह उससे डरते नहीं है और उसकी शर्त मानने के लिए तैयार नहीं होते. दूसरे दिन खिलजी अपने सैनिकों की एक छोटी सी टुकड़ी चित्तौड़ पर आक्रमण के लिए भेजता है, यह सभी मारे जाते हैं. अब राघव चेतन, खिलजी को समझाता है कि चित्तौड़ के किले को भेदना आसान नही है. तब खिलजी मनौवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए सैनिकों के साथ वहीं डेरा डाले रहता है. इधर महल में दिवाली का त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. फिर होली का त्यौहार मनाया जाता है. अब खिलजी योजना के तहत राजा रतन रावल सिंह के पास सुलहनामे का संदेश भेजता है. खिलजी, चित्तौड़ के राजा की हर शर्त मानकर उनकी मेहमान नवाजी देखने के लिए निहत्था चित्तौड़ राज महल पहुंचता है. शतरंज की बिसात पर दोनों के बीच तीर चलते हैं. अंततः राज्य की जनता की भलाई के खिलजी से समझौता हो जाए, इसलिए पद्मावती की शक्ल दर्पण में खिलजी को दिखायी जाती है. उसके बाद तो खिलजी, पद्मावती को पाने के लिए और अधिक लालायित हो जाता है और राजा रतन रावल को अपने डेरे में बुलाता है. दूसरे दिन जब राजा रतन रावल, खिलजी के डेरे में पहुंचते हैं, तो वह उन्हे बंदी बनाकर दिल्ली ले जाकर जेल में कैद कर देता है. अब शर्त है कि कि जब पद्मावती, खिलजी से मिलने जाएंगी, तभी राजा रतन रावल की रिहाई होगी.
चित्तौड़ की बड़ी महारानी नागमती (अनुप्रिया गोयंका) के विरोध के बावजूद गोरा व बादल के संग योजना बनाकर कुछ शर्तों के साथ पालकी में बैठकर दिल्ली जाती हैं. इन पालकियों में चित्तौड़ के बहादुर सैनिक हैं. उधर दिल्ली में खिलजी की पत्नी मेहरूनिसा, पद्मावती की मदद करती है. पद्मावती, राजा रतन रावल को छुड़ाकर चित्तौड़ पहुंचती है, मगर चित्तौड़ राज्य को गोरा व बादल को खोना पड़ता है.
इस पराजय से खिलजी अतिक्रोधित होकर अपनी पूरी सेना लेकर चित्तौड़ पर हमला बोलते हुए आग के बम बनाकर चित्तौड़ के किले की दीवारों को क्षति पहुंचाता है. फिर राजा रतन रावल सिंह और खिलजी के बीच युद्ध होता है, जब खिलजी हारने लगता है, तो युद्ध के नियमों को ताक पर रखकर खिलजी का गुलाम मलिक काफूर छल करते हुए राजा रतन रावल को तीरों से छलनी कर देता है. अब दोनों तरफ की सेनाओं के बीच युद्ध शुरू हो जाता है. इधर महल के अंदर राजा के मारे जाने पर पद्मावती सभी महिलाओं को इकट्ठाकर जौहर करने के लिए कहती हैं. जब खिलजी, राजमहल में घुसकर पद्मावती तक पहुंचता है, तब तक पद्मावती के साथ सभी नारियां जौहर कर चुकी होती हैं.
बड़े कैनवास की अति भव्यता वाली ‘हम तो दिल दे चुके सनम’, ‘देवदास’, ‘रामलीला : गोलियों की रासलीला’ व ‘‘बाजीराव मस्तानी’’ जैसी फिल्में बना चुके फिल्मकार संजय लीला भंसाली इस बार ‘पद्मावती’ में बुरी तरह से चूके हैं. फिल्म के ज्यादातर दृष्य आंखों को भाते हैं, मगर पूर्णता में यह फिल्म प्रभावित नहीं कर पाती. महायुद्ध, प्रेम कथा और कास्ट्यूम ड्रामा वाली यह फिल्म संजय लीला भंसाली की महत्वाकांक्षी फिल्म होते हुए भी सतहीफिल्म नजर आती है.
इंटरवल के बाद फिल्म पर से उनकी पकड़ छूट जाती है. इंटरवल से पहले भी एडिटिंग टेबल पर मेहनत की गयी होती, तो ठीक होता. फिल्म जरुरत से ज्यादा लंबी हो गयी है. राजा रतन रावल सिंह और रानी पद्मावती के बीच के रिश्तों वाले दृष्य भावनात्मक स्तर पर स्पर्श नही करते. इसी के साथ संजय लीला भंसाली की छाप वाले गीत संगीत व नृत्य देखने के शौकीन दर्शक इस बार ‘पद्मावत’ देखकर निराश होंगे. फिल्म का क्लायमेक्स प्रभावशाली नही बन पाया. राजपुताना औरतों के जौहर को प्रतीकात्मक रूप से दिखाना इस फिल्म की कमजोर कड़ी रही. वैसे इसके लिए फिल्मकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता. क्योंकि देश के कानून के हिसाब से भी वह जौहर को उसके सही अंदाज में चित्रित नहीं कर सकते थे और यह बात संजय लीला भंसाली को शुरू से ही पता था.
फिल्म के तमाम दृष्य जिस तरह से सुंदरता बन पड़े हैं, उसके लिए निर्देशक संजय लीला भंसाली के साथ ही कैमरामैन सुदीप चटर्जी बधाई के पात्र हैं. संजय लीला भंसाली ने राजस्थान के रग को बाखूबी पकड़ा है.
फिल्म में पद्मावती और अलाउद्दीन खिलजी का कोई भी स्वप्न दृष्य नही है. एक भी दृष्य दोनो आमने सामने नहीं आते हैं. फिल्म में राजपूतों के पराक्रम, उनके वसूलों व राजपूत महिलाओं के आत्म सम्मान का ही चित्रण है. इससे राजपूत संगठनों को राहत की सांस लेनी चाहिए.
जहां तक अभिनय का सवाल है, तो अति क्रूर व वहशी अलाउद्दीन खिलजी के किरदार में रणवीर सिंह ने दमदार अभिनय किया है. खुद रणवीर सिंह ने ट्वीटर पर अपने किरदार को दानव की संज्ञा दी है. उन्होने जिस तरह से इस किरदार को परदे पर उभारा है, उसके लिए उनकी तारीफ करनी ही पड़ेगी.एक वाक्य में कहे तो यह फिल्म पूरी तरह से रणवीर सिंह की है. रणवीर सिंह ने साबित कर दिखाया कि उनके अंदर अभिनय की असीम संभवनाएं हैं. ‘पद्मावती’ के किरदार में दीपिका पादुकोण ने भी जानदार अभिनय किया है.
राजा रतन रावल सिंह के किरदार में पहले शाहरुख खान को लिया जा रहा था, पर बाद में कई बदलाव हुए. विक्की कौशल सहित कई दूसरे कलाकारों के नामों की भी चर्चाएं रहीं. अंत में शाहिद कपूर को राजा रतन रावल सिंह के किरदार में चुना गया. राजपूत राजा के किरदार में शाहिद कपूर काफी निराश करते हैं. शाहिद कपूर तो संवाद अदागी करते हुए अपने पिता व मशहूर अभिनेता पंकज कपूर की नकल करते हुए नजर आते हैं.
यदि इस फिल्म को लेकर एक समुदाय के अति प्रतिक्रियावादियों ने विरोध कर फिल्म के प्रदर्शन को लटकाया न होता, तो यह संजय लीला भंसाली की एक और कास्ट्यूम ड्रामा वाली फिल्म के अलावा कुछ न साबित होती.
दो घंटे 43 मिनट की अवधि वाली फिल्म ‘‘पद्मावत’’ का निर्माण संजय लीला भंसाली, सुधांशु वत्स व ‘वायकौम 18’ ने किया है. फिल्म के निर्देशक संजय लीला भंसाली, लेखक संजय लीला भंसाली और प्रकाश कापड़िया संगीतकार. संजय लीला भंसाली व संचित बलभरा, कैमरामैन. सुदीप चटर्जी तथा फिल्म के कलाकार हैं – दीपिका पादुकोण, रणवीर सिंह, शाहिद कपूर, अदिति राव हैदरी, जिम सर्भ, रजा मुराद व अन्य.