फिल्म की टैग लाइन बताती है कि यह परी लोक की कथा नहीं है. मगर फिल्म की टैग लाइन यह नहीं कहती कि इस फिल्म को देखने के लिए समय व पैसा बर्बाद न करें. सुपरनेच्युरल पौवर वाली हौरर फिल्म में शुरू से अंत तक जंगल, रात का अंधेरा, खून, शैतान, गंदगी, जंजीरो में बंधी औरतों के अलावा कुछ नहीं है. कहानी के नाम पर पूरी फिल्म शून्य हैं. फिल्मकार ने जबरन डरावनी आवाजें डालने की कोशिश की है, मगर दर्शक डरने की बजाय हंसता है.

फिल्म की कहानी शुरू होती है कोलकाता से, जहां अरनब (परमब्रता चटर्जी) शादी के लिए पियाली को  देखने जाता है. पियाली (रिताभरी चक्रवर्ती) डाक्टरी की पढ़ाई पूरी कर इंटर्नशिप कर रही है. वापसी में वह अपने माता पिता से कह देता है कि उसे लड़की पसंद है. तभी कार के सामने एक बूढ़ी औरत आ जाती है और उसकी मौत हो जाती है. पता चलता है कि वह रुखसाना (अनुष्का शर्मा) की मां है, जिसे उसकी मां जंगलों के बीच में एक झोपड़े के अंदर लोहे की जंजीर से बांधकर रखती है. रुखसाना की मां की अंतिम क्रिया में रुखसाना की अरनब मदद करता है. उसके बाद वह रुखसाना को उसके घर पर छोड़ देता है. पता चलता है कि अस्पताल का एक कर्मचारी उस बुढ़िया के शरीर पर निशान देखकर प्रोफेसर (रजत कपूर)को खबर करता है. फिर प्रोफेसर अपने कुछ आदमियों के साथ रुखसाना को मारने पहुंचता है, पर रुखसाना वहां से भागकर अरनब के घर पहुंच जाती है.

अरनब उसे अपने घर में कुछ समय रहने के लिए कह देता है. अरनब, रुखसाना के व्यवहार से अचंभित है. पर धीरे धीरे दोनों एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं. प्रोफेसर, अरनब को समझाता है कि रुखसना औलाद चक्र की अंतिम शैतान है. वह इफीरात /बुरी आत्मा की बेटी है, जो कि अपनी नस्ल को आगे बढ़ाना चाहती है. यह उससे प्यार करेगी, एक माह के अंदर ही बच्चे को जन्म देगी और अरनब को खत्म कर देगी. यह शैतान है, मगर इंसान की तरह रहते हैं. इनके अंदर जहर होता है. यह गुस्से में अपना जहर दूसरे इंसान को काटकर उगलते हैं. यदि ऐसा न करें, तो यह खुद अपने जहर से मर जाएं.

Pari

पहले अरनब को यकीन नहीं होता. पर रुखसाना की बनायी एक तस्वीर को वह गूगल पर खोजता है, अब अरनब, प्रोफेसर के हाथों रुखसाना को सौंपता है. पर प्रोफेसर मारा जाता है. रुखसाना एक बच्चे को जन्म देती है, उसके बाद सारा सच अरनब को बताकर अपने जहर से खुद मर जाती है. मरने से पहले रुखसाना बता देती है कि उसका बच्चा पवित्र है, उसमें शैतानी अंश नहीं है.

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निर्देशक व पटकथा लेखक के तौर पर प्रोसित राय फिल्म व कहानी के साथ न्याय करने में बुरी तरह से विफल रहे हैं. इंटरवल से पहले तो दर्शक समझ ही नहीं पाता कि आखिर यह सब हो क्या रहा है? पूरी कहानी मूर्खतापूर्ण ही है. लेखक व निर्देशक ने फिल्म की कहानी का संदर्भ बांगलादेश के जन्म के समय की घटना को उठाकर उसमें शैतानी पक्ष जोड़ कर हौरर फिल्म बनाने का असफल प्रयास किया है. क्योंकि फिल्मकार अपनी कहानी के साथ दर्शक को ठोस सच का यकीन नहीं दिला पाता. बल्कि एक अच्छी प्रेम कहानी का भी दुःखद अंत दिखाकर डरावनी नहीं, बल्कि एक उदास फिल्म बना डाली.

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हम अपने पाठकों को बांगलादेश के जन्म के समय की उस घटना के बारे में याद दिला देते हैं. 1971 से पहले पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था. 1971 के युद्ध में जब पूर्वी पाकिस्तान, बांगलादेश बना, उस वक्त पाकिस्तानी सैनिकों ने बांगलादेश की औरतों से शारीरिक संबंध बनाते हुए वहां पर पाकिस्तानी नस्ल को बढ़ाने का अभियान चलाया था. इसका  पता चलते ही बांगलादेश के एक संगठन ने ऐसी औरतों की तलाश कर उनके गर्भ को गिराना शुरू किया था.

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फिल्म ‘‘परी’’ के निर्देशक प्रोसित राय और निर्माता व अभिनेत्री अनुष्का शर्मा की सोच पर हंसी आती है. इनके लिए 21वीं सदी में भी बिजली की गड़गड़ाहट, दरवाजों के चरमराने की आवाज, अति गंदे चेहरे व खोपड़ी में काला बुरखा पहने औरतें, खून आदि का होना यानी कि हौरर फिल्म हो गयी.

फिल्म में अरनब और पियाली के बीच एक संवाद है कि ‘हर इंसान के अंदर राक्षस का अंश होता है?’ यदि फिल्मकार ने इस बात को भी ठीक से फिल्म में पिरोया होता, तो शायद परी अच्छी फिल्म बन जाती.

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो अनुष्का शर्मा ने खून की प्यासी रुखसाना के किरदार को अपनी तरफ से निभाने का प्रयास जरूर किया है, मगर फिल्म की कहानी, पटकथा व उनके किरदार को इतना घटिया लिखा गया है, कि उनकी मेहनत रंग नहीं ला पाती. फिल्म में अनुष्का शर्मा चमगादड़ की की तरह उछलते, कूदते, उड़ते, खिड़की पर उलटा लटके, कुत्ते को काटते हुए दिखायी देती हैं, मगर उस वक्त भी दर्शक के शरीर में  सिहरन/ कंपकपी पैदा नहीं होती. फिर भी अनुष्का शर्मा इस बात के लिए बधाई की पात्र हैं कि उन्होंने कुछ नया करने का प्रयास किया है.

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परमब्रता चक्रवर्ती के अरनब के किरदार को लेखक ने कोई तवज्जो नहीं दी, तो फिर वह बेचारे क्या करते? कुछ दृश्यों में अनुष्का शर्मा व परमब्रता चटर्जी के बीच की केमिस्ट्री खूबसूरत लगती है. रजत कपूर ने बुरी आत्मा की तलाश में जुटे बांगलादेशी प्राफेसर के किरदार को सही ढंग से निभाया है. कैमरामैन बधाई के पात्र हैं. गीत संगीत बेकार है.

दो घंटे 14 मिनट की अवधि की फिल्म ‘‘परी’’ का निर्माण अनुष्का शर्मा ने किया है. फिल्म के निर्देशक प्रोसित राय, लेखक प्रोसित राय व अभिषेक बनर्जी, संगीतकार अनुपम राय तथा कलाकार हैं-अनुष्का शर्मा, परमब्रता चटर्जी, रजत कपूर, रिताभरी चक्रवर्ती, मानसी मुलतानी व अन्य.

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