गत वर्ष फिल्मकार अलंकृता श्रीवास्तव की नारी स्वतंत्रता की वकालत करने वाली बोल्ड फिल्म ‘‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’’ ने काफी हंगामा मचाया था. चार अलग अलग उम्र व परिवेश की नारियों की कथा के साथ नारी स्वतंत्रता को लेकर काफी कुछ कहने का प्रयास किया गया. इसी फिल्म में एक दकियानूसी मुस्लिम परिवार की लड़की रेहाना बेदी का किरदार निभाकर 24 वर्षीय प्लाबिता बोरठाकुर ने जबरदस्त शोहरत बटोरी थी. यूं तो आसाम निवासी प्लाबिता बोरठाकुर इस फिल्म से पहले 20 एड फिल्मों के अलावा राज कुमार हिरानी की फिल्म ‘‘पी के’’ में अनुष्का शर्मा की छोटी बहन का किरदार निभा चुकी थीं. मगर फिल्म ‘‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’’ ने उनके करियर को गति प्रदान की. इस फिल्म के बाद उन्होंने वेब सीरीज ‘‘व्हाट इज योर स्टेटस’’ के अलावा ‘‘वाह जिंदगी’’ व ‘छोटे नवाब’’ जैसी फिल्मों में लीड किरदार निभाए हैं.
बौलीवुड से जुड़ने के लिए आप आसाम से मुंबई चली आयीं ?
अब ऐसा कह सकते हैं. आसाम में रहते हुए हम बौलीवुड फिल्मों के दीवाने रहे हैं. वैसे कला मुझे विरासत में मिली है. मेरे पिता प्रोबीन बोरठाकुर आसाम के दुलियाजान में एक तेल कंपनी में कार्यरत हैं. पर वह मशहूर शास्त्रीय गायक भी हैं. मेरी मां रीना बोरठाकुर मशहूर कवियत्री व लेखक हैं. मुझे पर मेरे पिता का काफी प्रभाव है. मैं भी बहुत अच्छा गाती हूं और संगीत की धुनें भी बनाती हूं. मुंबई तो मैं उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए आयी थी. क्योंकि मेरी दो बहने प्रियांगी और परिणीता मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में ही कार्यरत हैं. मैंने सायकोलाजी और फिलौसफी में स्नातक की डिग्री हासिल की. उसके बाद यूं ही समय बिताने के लिए बैरी जौन के एक्टिंग स्टूडियो से अभिनय में डिप्लोमा का कोर्स किया. तब मुझे अहसास हुआ कि मुझे यही करना है. यूं भी दस से पांच नौकरी करने की मेरी कोई इच्छा नहीं थी.
आपने असमी सिनेमा की बजाय बौलीवुड को क्यों चुना ?
असमी सिनेमा नही करना है, ऐसा नहीं सोचा है. अच्छी स्क्रिप्ट मिले तो में असमी फिल्म भी कर सकती हूं. पर यह सच है कि मुझे बौलीवुड में काम करना था. मुझे असम में भी फिल्मों में काम करना है.
फिल्मों में शुरुआत कैसे हुई ?
औडीशन देकर फिल्में पायी. मुंबई पहुंचकर मैंने तीन वर्ष कौलेज की पढ़ाई पर ध्यान दिया. पर पढ़ाई के साथ ही कौलेज की हर सांस्कृतिक गतिविधि में हिस्सा लेती रहती थी. नृत्य, गीत गाना और नाटकों में अभिनय करना आदि. फिर एक्टिंग कोर्स किया. उसके बाद मैंने एड फिल्म के लिए औडीशन दिए. करीबन 25 एड किए हैं. फिर “पी के” और ‘‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’’ जैसी फिल्म की. जब तक अच्छी स्क्रिप्ट न मिले, तो मैं फिल्म स्वीकार नहीं करती. फिलहाल फिल्मों को लेकर काफी चुजी हूं. ‘लिपस्टिक अंडर बुर्का के बाद मैंने तीन फिल्में कर ली.
फिल्म ‘‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’’ में तो आपका काफी बोल्ड किरदार था ?
अलंकृता श्रीवास्तव की फिल्म ‘‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’’ में मैंने भोपाल की रहने वाली रेहाना बेदी का किरदार निभाया है. जो कि एक मुस्लिम परिवार से है. फिल्म देख चुके लोग जानते हैं कि उस पर कई तरह की बंदिशे हैं. वह घर से बुर्का के नीचे जींस पहनकर निकलती है, कौलेज पहुंचते ही वह बुर्का बैग में रख देती है. वह मशहूर गायक बनना चाहती है. ध्रुव नामक लड़के के प्रेम में है और उसे किस भी करती है. वह जींस पर पाबंदी लगने पर आंदोलन का हिस्सा भी बनती है. जेल पहुंचती है. उसकी जिंदगी में काफी कुछ होता है. इस फिल्म में रेहाना का किरदार निभाकर काफी कुछ सीखा. मुझे नारी की स्थिति का सही अंदाजा हुआ.
आप खुद रेहाना के किरदार के कितने करीब हैं ?
रेहाना के किरदार और मेरी निजी जिंदगी में कोई समानता नहीं है. मैं अपने परिवार में तीसरे नंबर की बेटी हूं. पर हमें इस बात का अहसास ही नहीं हुआ कि लड़की होने में बुराई है.
फिल्म ‘‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’’ जब बैन हो गयी थी, तब आपके दिमाग में क्या चल रहा था ?
सच यह है कि जब हमें पहले यह खबर मिली तो विश्वास ही नहीं हुआ कि ऐसा कुछ भी हो सकता है. क्योंकि मैंने खुद इस फिल्म को पहली बार ‘टोक्यो इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’ में देखा था, जहां हमें पुरस्कार भी मिला था. एक लड़की होते हुए भी मुझे इस फिल्म में कुछ भी गलत नजर नही आया था. इसलिए मुझे बुरा लगा था कि सेंसर बोर्ड फिल्म को बैन कैसे कर सकता है और तब मुझे पहली बार अहसास हुआ कि भारत में इस तरह की नारी प्रधान फिल्मों की कितनी जरूरत है. मेरा सेंसर बोर्ड से कहना था कि उन्हें अपने दिमाग को खोलना चाहिए और विकसित सोच के साथ फिल्म देखना चाहिए. खैर, बाद में हमारी फिल्म रिलीज हुई और लोगों ने काफी तरीफ की. इस फिल्म ने मुझे बहुत कुछ सिखाया.
समाज में किस तरह की बातें होनी चाहिए, जो नहीं हो रही हैं ?
समाज में इस बात पर बहस होनी चाहिए कि हर इंसान को सामने वाले के विचारों की इज्जत करनी आनी चाहिए. हर इंसान के अंदर अपने मन को खोलने की चाह होनी चाहिए. लोगों को अपने विचारों पर अडिग नही रहना चाहिए. सोशल मीडिया के कारण अवयेरनेस बढ़ी है.
पर सोशल मीडिया से निगेटीविटी बढ़ रही है ?
मुझे लगता है कि सोशल मीडिया पर अच्छी बुरी दोनों बातें हो रही है. लोगों को यह सोचना चाहिए कि व्हाट्सऐप की हर बात सही नही होती है. पर यहां हर आदमी उसे सच मान लेता है. इस तरह सोशल मीडिया का मिस यूज हो रहा है.
आपको लगता है कि सोशल मीडिया से स्टार के स्टारडम को नुकसान पहुंचता है ?
ऐसा कहा जा सकता है. अब भारतीय दर्शक समझदार हो गया है. अब दर्शक किसी स्टार के नाम पर कोई फिल्म देखने नही जाता. मुझे लगता है कि एक दर्शक को अपने पसंदीदा कलाकार की कोई फिल्म पसंद नही आती है, इसका मतलब यह होता है कि उस फिल्म में कलाकार का अभिनय उसे पसंद नही आया. पर वह कलाकार के प्रशंसक बने रहते हैं. अब दर्शक चूजी भी हो गए हैं.
दूसरी बात अब जिस तरह से कलाकार अपने प्रशंसकों के नजदीक पहुंचता जा रहा है, उससे कलाकार को लेकर उत्सुकता कम होती जा रही है. बचपन में हम अपने पसंदीदा कलाकार के बारे में सोचते थे कि यह कैसा होगा? क्या करता होगा? वगैरह वगैरह…पर अब हम को उसके बारे में सब कुछ पता है. तो जो उसका स्टारडम का पहलू है, उसे अब दर्शक को समझ आ गया है कि यह कलाकार भी हमारी तरह ही है. एक तरह से यह अच्छी बात है. आप बदले हुए वक्त में देखेंगें, तो पाएंगे कि सोशल मीडिया की वजह से कुछ गैर फिल्मी लोग भी सोशल मीडिया पर स्टार बने हुए हैं. कई गैर फिल्मी लोग सोशल मीडिया पर ऐसे हैं, जिनके फालोवर फिल्मी कलाकार से भी ज्यादा हैं.
आपने एक वेबसीरीज ‘‘वाट्स स्टेटस’’ की थी. क्या रिस्पांस मिला था?
कौलेज गोइंग लोगों को यह वेब सीरीज बहुत पसंद आयी थी. मुझे तो लगता है कि अब वेबसीरीज का भविष्य उज्ज्वल है. अब वेब सीरीज में अच्छे पैसे भी मिल रहे हैं.
अपनी नई फिल्म ‘‘वाह जिंदगी’’ को लेकर क्या कहेंगी?
दिनेश एस यादव निर्देशित इस फिल्म में मेरे साथ संजय मिश्रा, मनोज जोशी व विजय राज भी हैं. यह फिल्म एक प्रेम कहानी के साथ साथ अपने लिए कुछ करने व अपने पैरों पर खड़े होने की बात भी करती है. इसी के साथ राजस्थान में सूखे की स्थिति पर भी बात करती है. इसमें मैंने रीना का किरदार निभाया है, जिसे अपने बचपन के प्रेमी की तलाश है. इस फिल्म को हमने गुजरात के मोरबी व अहमदाबाद के अलावा राजस्थान में कई जगह फिल्माया है.
इसके अलावा कोई अन्य फिल्म?
कुमुद चौधरी के निर्देशन में एक फिल्म ‘‘छोटे नवाब’’ की है. इसमें अक्षय ओबेराय मेरे हीरो हैं.
क्या बौलीवुड में आसाम से आए लोगों को बराबर हक मिलता है?
मेरी नजरिए से देखें, तो बौलीवुड एक ऐसी जगह है, जहां किसी से यह पूछकर काम नहीं दिया जाता कि वह कहां से आया है? यहां प्रतिभा ही मायने रखती है. आज तक मुझसे किसी ने नहीं पूछा कि मैं आसाम से हूं या कि अन्य राज्य से.
आसाम में सिनेमा की क्या स्थिति है?
धीरे धीरे असमी सिनेमा लोकप्रिय हो रहा है. हमारे असमी सिनेमा की फिल्म ‘‘विलेज रौक स्टार्स’’ को औस्कर के लिए भेजा गया है. बीच में असमी सिनेमा की स्थिति अच्छी नहीं थी. क्योंकि वहां भी बौलीवुड हावी है. दूसरी बात आसाम में ट्यूरिंग थिएटर की परंपरा ज्यादा है. वहां सिनेमा गांव गांव पहुंचता है. रीमा दास की फिल्म ‘‘विलेज रौक स्टार्स’’ मैंने 3-4 बार देखी. बहुत अच्छी फिल्म है. पर यह फिल्म मसाला फिल्मों की तरह सफल नहीं हो पा रही है.
संगीत में क्या हो रहा है?
मैं हर दिन गायन का रियाज करती हूं. मेरा ‘‘मनु और चाव’’ नामक संगीत का बैंड है. मेरा घरेलू नाम मनु ही है. चाव मेरे दोस्त का नाम है. हम दोनों आसाम से हैं. हम अपने बैंड के तहत कौरपोरेट व दूसरे स्तर पर संगीत के कार्यक्रम करते रहते हैं. हमारे अपने संगीतबद्ध गाने हिंदी व अंग्रेजी मिक्स हैं. इसके अलावा हम जिनके लिए शो करते हैं, उनकी पसंद का भी ख्याल रखते हैं. मुंबई, पुणे व केरला में हमारे शो बहुत हुए हैं. हम अगले माह फिलीपिन्स अपने म्यूजिक का कंसर्ट करने जाने वाले हैं. मैंने फिल्म ‘‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’’ में दो गीत भी गाए हैं.
आप गीत भी लिखती हैं?
देखिए, हम दोनों मिलकर गीत लिखते व मिलकर संगीत तैयार करते हैं. मेरी मम्मी कवि हैं, पर मम्मी से वह गुण विरासत में उतना नहीं मिला, जितना मिलना चाहिए था. तो कविताएं लिखने में कमजोर हूं. उस कमी को चाव पूरा करता है. मैं कांसेप्ट सोचती हूं, रफ लिखती हूं और फिर चाव उस पर अंतिम रूप से फिल्म गीत लिखता है. चाव साफ्टवेयर इंजीनियर व संगीतकार भी है. गायक भी है. अभिनय में उसकी रूचि नहीं है.
दूसरे शौक ?
सिंगिंग, डासिंग व यात्राएं करना. थोड़ा बहुत कुकिंग करती हूं. मैं अलग अलग तरह के स्लाड्स, टेस्टी पास्टि केक वगैरह बनाती हूं. मुझे यात्राएं करने का बहुत शौक है. मैं बिना योजना बनाए अकेले ही यात्रा पर निकल जाती हूं. मुझे नए लोगों से मिलना अच्छा लगता है. मैंने पूरा यूरोप घूमा है. टोक्यो में भाषा की समस्या थी, पर टोक्यो के लोग बहुत ही मददगार हैं. अमरीका भी घूमा है. यात्रा करते समय मैं फोन अक्सर बंद रखती हूं. मुझे लोगों से बात करना, उनके रहन सहन को समझना अच्छा लगता है.