Film Promotion : बौलीवुड के बहुत से कलाकार आजकल अपनी फिल्म का प्रमोशन करने के लिए प्रेस कौन्फ्रेंस और सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं. उन्हें लगता है इससे उनकी फिल्में दर्शकों तक पहुंच जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं होता. दिखावे का प्रेस कौन्फ्रेंस और रियलिटी शो तक पब्लिसिटी करने से फिल्म को किसी प्रकार की माइलेज नहीं मिलती. यही वजह है कि बौलीवुड के कई कलाकार, प्रेस कौन्फ्रेंस कर फिल्म के हिट होने का इंतजार करते हैं और अंत में फिल्म फ्लौप हो जाती हैं, क्योंकि दर्शकों को पता ही नहीं चलता है कि फिल्म कब आई और कब गई.

आज के अधिकतर बड़ेबड़े फिल्मों के कलाकार चाहे शाहरुख खान हो या सलमान खान या आमिर खान सभी आर्टिस्ट और निर्देशक आजकल वैसे ही नियमों को अपनाते जा रहे हैं. यही वजह है कि उनकी अधिकतर फिल्में फ्लौप हो रही हैं, क्योंकि दर्शकों को फिल्म की सही कहानी का पता नहीं चलता, प्रेस कौन्फ्रेंस के दौरान जो बातें सार्वजनिक तौर पर कही जाती है, उसे दर्शक फिल्मों में नहीं देख पाते और हौल खाली रहते है. केवल फोटोग्राफर की मारा मारी वाली भीड़ और हजारों की संख्या में क्लिक, किसी फिल्म को प्रमोट नहीं कर सकती, क्योंकि बिना कंटेन्ट के ये फोटोग्राफ किसी काम की नहीं होती.

असल में आज के प्रेस कौन्फ्रेंस सिर्फ एक दिखावा मात्र रह गया है, जिसमें फिल्मों के लिए किए गए पब्लिसिटी पहले से फिक्स किये हुए होते हैं, मसलन पैड क्राउड की आजकल भरमार है, जानकारों के अनुसार प्रेस कौन्फ्रेंस में भीड़ इकट्ठा करने के लिए एजेंसी का सहारा लेती है, जिसमें पैसे देकर लोगों को बुलाया जाता है, ऐसे कई लोग है, जहां उन्हे एक दिन के लिए दो सौ रुपये दिए जाते है, उनका काम किसी भी कलाकार के बात करने पर प्रेस कौन्फ्रेंस में ताली या सीटी बजाना होता है.

किये जाते हैं तैयार फैंस

इन स्थानों पर फैंस भी तैयार किये जाते है, जानकारों की मानें तो बौलीवुड स्टार्स को फिल्मों मे आने से पहले आजकल उन्हे फैंस से बातें करना सिखाया जाता है, ताकि उनके फैन फौलोअर्स बढ़े और उनकी फिल्में सफल हो.

पैड इंफ्लुएंसर

पैड इंफ्लुएंसर आज सोशल मीडिया पर लाखों की संख्या में है. ये लोग पैसा देने पर उस फिल्म की पब्लिसीटी करते है और हाइप देने की कोशिश करते है, जो कई बार किसी काम की नहीं होती.

एआई जेनरेटेड डीप फेक

एआई जेनरेटेड डीप फेक का सहारा लेकर आज के बौलीवुड स्टार्स किसी फिल्म फेक पब्लिसिटी और गलत इनफार्मेशन चारों तरफ फैलाते हैं, इतना ही नहीं वे पैसे देखकर फेक रिव्यू भी निकालते हैं, जिसमें फिल्म की अच्छी बातों को गिनाया जाता है और दर्शक को उस फिल्म को देखने पर निराशा हाथ लगती है, ऐसी फिल्में दर्शकों के लिए तरसती है, जैसा फिल्म सिकंदर के साथ हुआ.

संवाद की कमी पड़ती है भारी

असल में किसी फ़िल्म की सफलता के लिए प्रचारप्रसार बहुत जरूरी होता है. सही प्रचार से दर्शकों में फिल्म के प्रति रुचि पैदा होती है और ज्यादा से ज़्यादा लोग उससे जुड़ी जानकारी पाते हैं. यहां प्रेस कौन्फ्रेंस में कोई भी कलाकार किसी पत्रकार से सही संवाद नहीं कर पाते, क्योंकि प्रेस कौन्फ्रेंस अरैन्ज करने वाली एजेंसिया मीडिया से बात करने नहीं देती, केवल पहले से लिखी गई कुछ बनी बनाई प्रश्नों के एक जैसे उत्तर ही कलाकार देते रहते है. सही संवाद की कमी फिल्म की कला को दर्शकों तक पहुंचाने में असमर्थ होती है और फिल्म प्रेमी को अंत में मायूसी हाथ लगती है. इतना ही नहीं फिल्म के कलाकार और निर्माता, निर्देशक भी इस बात से अनजान होते है कि आखिर फिल्म फ्लौप क्यों हुई, क्योंकि उनका मीडिया से सीधे संवाद नहीं बन पाता.

कहां गए वो दिन

कभी ऐसा समय था, जब कलाकार मीडिया के साथ बैठकर घंटों फिल्म के बारें में बात करते थे और मीडिया कर्मी फिल्म के ईमोशन को अखबार या मैगज़ीन में सही तरीके से छापते थे, जिससे फिल्म को पसंद करने वालों की लिस्ट पहले से तैयार हो जाया करती थी, जिसमें फिल्म मेकर और ऐक्टर देवानंद, राजकपूर, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना आदि कई फिल्मी हस्तियों ने अपनी फिल्मों का प्रमोशन सेट पर या स्टूडियों में किया और उनके फिल्में हिट रही. आज भी अभिनेता धर्मेन्द्र किसी भी मीडिया कर्मी के साथ बैठकर ही फिल्म प्रमोशन को करना पसंद करते है, जहां वे फिल्म की इमोशन को अच्छी तरह से बयां करते है.

सही मीडिया चुनना नहीं आसान

ये भी सही है कि आज मीडिया कर्मी की भरमार हो चुकी है, हर गली कूचे में हर दिन एक नई मीडिया का जन्म हो रहा है, जबकि पहले कुछ चुनिंदा पब्लिकेशन हाउस ही हुआ करते थे, जिनके कर्मी कला की गहराई को समझते थे, जो आज नहीं है. इतना ही नहीं आज हर कोई अपनी खबरों को बेचने में लगा हुआ है, ऐसे में सही मीडिया को चुनना किसी कलाकार के लिए भी कम मुश्किल नहीं. अभिनेत्री दीपिका पादुकोण और अभिनेत्री तब्बू हमेशा किसी मीडिया कर्मी से बात करते समय पब्लिकेशन की जानकारी खुद लेती है, ताकि दर्शकों तक उनकी सही बातें पहुंचे और अंत में उसे पढ़ती भी है, क्योंकि किसी भी प्रकार की गलत जानकारी उनके इमेज को खराब कर सकती है.

सही पब्लिसिटी जरूरी

एक जगह अभिनेता सलमान खान ने कहा है कि फिल्मों की सही पब्लिसिटी करना जरूरी है, क्योंकि इससे दर्शक फिल्म तक पहुंच पाते हैं. उन्होंने यह भी कहा है कि पहले फिल्मों का प्रचार अलग ढंग से होता था. जब फिल्मों का प्रचार अधिकतर प्रिन्ट मीडिया या फिर पिक्चर हौल, सड़कों के किनारे या गलियारे में लगे पोस्टर को देखकर दर्शक उस फिल्म के आने का इंतजार करते थे. इससे फिल्म को पहले से ही दर्शक मिल जाया करता था, जो अब नहीं है. अब सोशल मीडिया हावी हो चुका है, इसलिए फिल्मों के प्रचारप्रसार भी अलग ढंग से होने लगा है. इसका असर कई बार फिल्मों के साथ सही, तो कई बार गलत भी होता है.

एक इंटरव्यू में फिल्म मेकर और निर्देशक अनीस बज़मी ने कहा है कि फिल्मों का सही प्रचारप्रसार करना बहुत जरूरी होता है और संवाद फिल्म के कलाकार और निर्देशक के साथ सीधे संवाद के जरिए होना चाहिए, ताकि उसे उस दर्शक वर्ग तक पहुंचाया जाय, जिसे वे देखना चाहते है. मसलन किसी को रोमांटिक तो किसी को थ्रिल या कॉमेडी पसंद होता है, ऐसे में सही दर्शक अगर सही फिल्म को मिलती है, तो फिल्म सफल होती है.

मीडिया कर्मी को नहीं मिलती इज्जत

प्रेस कौन्फ्रेंस को लेकर मीडिया मे कई सवाल आज है, सूत्रों की माने तो जब अभिनेता शाहरुख खान की फिल्म जवान आई थी, तो एक बड़ी प्रेस कौन्फ्रेंस का आयोजन किया गया था, जिसमें शुरू के कतारों में फैंस थे, जबकि मीडिया को शाहरुख ने अंतिम पंक्ति में रखा गया, जहां से किसी भी मीडिया कर्मी की आवाज कलाकार तक नहीं पहुंच सकती थी. एंकर के द्वारा पूछे गए प्रश्नों पर ही कलाकार उत्तर दे रहे थे. अंत में माइक भी कुछ गिने चुने फिक्स्ड मीडिया कर्मी को पकड़ाया गया, जिनके पास पहले से लिखे प्रश्न एजेंसी ने दे रखे थे, ऐसे में सही प्रश्नों का उत्तर मिलना मुश्किल था. अगर कोई मीडिया कर्मी कोई सवाल पूछना भी चाहता है, तो कई बार उससे माइक छीन भी लिए जाते है.

होती है असुरक्षा की भावना

दरअसल आज कई ऐसे निर्माता, निर्देशक और कलाकर भी है, जो मीडिया को फेस करना नहीं चाहते, उनमें फिल्म को लेकर असुरक्षा की भावना होती है, ऐसे में वे बनावटी प्रेस कौन्फ्रेंस का सहारा लेते है, जिससे न तो उनके फिल्म को दर्शक मिलते है और न ही फिल्म सफल होती है. इतना ही नहीं कुछ मीडिया की कई अटपटे प्रश्न उन्हें जवाब देना नागवार गुजरता है. ऐसे फिल्म मेकर को इस तरह की प्रेस कौन्फ्रेंस अच्छी लगती है.

इस प्रकार ऐसे फेक प्रेस कौन्फ्रेंस की संख्या भले ही बढ़ गई हो, लेकिन इसका फायदा फिल्मों को नहीं मिलता, क्योंकि वहां कही गई बातें और रियल में काफी अंतर होता है, जिसे आज के जागरूक दर्शक महसूस करने लगे है और उसका असर फिल्मों पर प्रत्यक्ष रूप में दिखाई पड़ने लगा है.

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