रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः जार पिक्चर्स

निर्देशकः राजन चांदेल

लेखकः सत्य व्यास के उपन्यास ‘‘चैरासी’’से प्रेरित

क्रिएटरः शैलेंद्र झा

कलाकारः पवन मल्होत्रा, जोया हुसैन, अंशुमन पुष्कर, वामिका गब्बी, टीकम जोशी, सहिदुर रहमान व अन्य.

अवधिः 45 से 55 मिनट के आठ एपीसोड,कुल अवधि छह घ्ंाटे 48 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः हॉट स्टार डिज्नी

लेखक सत्यव्यास ने 1984 के सिख विरोधी दंगों की पृष्ठभूमि में  एक प्रेम कहानी के साथ कुत्सित राजनीति,जांच आदि की भावनात्मक उथल पुथल वाला काल्पनिक उपन्यास ‘‘चैरासी’’ लिखा था,जिस पर निर्देशक राजन चंदेल लगभग सात घंटे की अवधि की आठ एपीसोड वाली वेब सीरीज ‘‘ग्रहण’’लेकर आए हैं.

‘ग्रहण’एक भावनात्मक रूप से आहत करने वाली कहानी है,जो 1984 के सिख विरोधी दंगों की भयानक तबाही के बीच नाटकीय रूप से चलती हुई मानवता के उत्कर्ष को छूती है,जहां अब 1984 के दंगो को राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते हवा देने वाला इंसान ही उस गंदगी को खत्मकर राजनीति को भी साफ करने पर आमादा है.

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कहानीः

कहानी 2016 में रांची से शुरू होती है और बार बार 1984 के बोकारो आती जाती रहती है. कहानी 2016 में रांची से शुरू होती है,जहां गुरूसेवक(पवन मल्होत्रा ) अपनी बेटी व एसपी अमृता सिंह (जोया हुसेन ) के साथ रह रहे हैं. अम्रता सिंह का प्रेमी कार्तिक (नंदिश संधू ) कनाडा से आया हुआ है, दोनों के बीच प्रेम कीड़ा शुरू होते ही पत्रकार संतोष जायसवाल का फोन आता है. अमृता तुरंत कार्तिक को वैसे ही छोड़कर भागती है,मगर संतोष मारा जाता है.

शक के तौर पर अमृता सिंह दो लोगों को गिरफ्तार करती है,जिन्हे बाद में डीआईजी केशर छोड़ देते हैं. उधर मुख्यमंत्री केदार भगत( सत्यकाम आनंद  )अपने प्रतिद्वंदी संजय सिंह उर्फ चुन्नू (टीकम जोशी )को फंसाने के लिए डीआईजी केशर को आदेश देते हंै कि वह 1984 के बोकारो कांड की जांच के लिए एआईटी बनाएं. केशर एसआईटी बनाकर जांच अधिकारी डीएसपी विकास मंडल(सहिदुर रहमान  ) को बना देते हैं. फिर डीआई केशर,अमृता सिंह को एसआईटी का प्रमुख बना देते हैं.

विकास मंडल,अमृता को 1984 के बोकारो दंगे के दौरान लोगों के घरो में आग लगा रहे रिषि रंजन की एक तस्वीर देता है. तस्वीर देखकर अमृता परेशान हो जाती है. क्यांेकि यह तस्वीर तो उनके पिता गुरूसेवक की है और उसने अपने पिता को लोगों की मदद करते हुए देखती आयी है. वह अपने पिता से सवाल करती है,पर पिता चुप रहते हैं. लेकिन अब अमृता भी सच जानना चाहती है कि अगर  दंगे के समय उसके पिता थे,तो क्या वजह थी.

इसी के साथ अब कहानी तीन स्तर पर 2016 के रांची व 1984 के बोकारो में चलती रहती है. एक तरफ 1984 में रिषि रंजन(अंशुमन पुष्कर) और मंजीत कौर छाबड़ा उर्फ मनु(वामिका गब्बी )की प्रेम कहानी चलती है,जो कि संजय सिंह की नफरत भरी महत्वाकांक्षा से घिरी हुई है. जबकि रिषि रंजन का दोस्त झंडू भी मनू से प्यार करता है. तो दूसरी तरफ अमृता व विकास मंडल बोकारो में जब लोगों से मिलते हैं,तो वह 31 अक्टूबर व एक नवंबर 1984 की घटना व उससे जुड़े लोगों के बारे में बताते हैं.

31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री की हत्या के बाद बोकारो की स्टील फैक्टरी के प्रबंधक द्वारा ही कत्लेआम की साजिश रची गयी थी,जिसमें रिषि रंजन,झंडू सहित कई युवक शामिल हुए थे. तीसरे स्तर पर वर्तमान समय में 1984 के दंगो से जुड़े रहे राजनेेताओं की एसआईटी जांच की आड़ में एक दूसरे को पटकनी देने की राजनीतिक शतरंजी चालें चली जाती रहती हंै.

लेखन व निर्देशनः

कुछ जख्म कभी नही भरते. वह सतह के नीचे सदैव फड़फड़ाते रहते हैं. और इन जख्मों की छाप उसकी अगली पीढ़ी पर भी पड़ती ही है. ऐसे ही जख्म और मानव द्वारा रचे गए प्रलय के घटनाक्रम पर यह वेब सीरीज बनायी गयी है,जो कि इंसानों के अलावा सदैव राजनीतिक हलकों में भी गर्म रहती है,तो वहीं महज राजनीतिक स्वार्थ की रोटी सेंकने के लिए कुछ नेताओं ने जिस तरह से इस घटना को अंजाम दिलाया था,वह सब कुछ बहुत से लोगों के दिलों में जिंदा है.

कुछ दिन पहले ही एक सिख फिल्मकार से हमारी बात हुई,तो उसने कबूला कि उनके माता पिता को किस तरह से पंजाब मंे सब कुछ छोड़कर गुजरात में शरण लेनी पड़ी थी और गुजरात में भी उन्हे आतंकवादी कहा जाता था. पर वेब सीरीज में वह दर्द उसी वेग के साथ नही उभरता. जबकि मानवता का चरमोत्कर्ष जरुर है. कुत्सित राजनीति पर भी खुलकरकुछ भी कहने से फिल्मकार बचते हुए नजर आए हैं,यानीकि वह पलायनवादी हो गए हैं. परिणामतः कुछ बातें अस्पष्ट रह जाती हैं. प्रेम कहानी में भी ऐसा कुछ नही है,जो कि लोगों के दिलों को दू सके.

हर एपीसोड का अलग नामकरण भी किया है. अफसोस पहला एपीसोड जितना कसा हुआ है,वैसी कसावट बाद के एपीसोडो में नही हैं. विखरी हुई लिखावट के चलते कहानी यानी कि कथा कथन में प्रवाह नही रहता. आठवें एपीसोड में जिस तरह से अदालत के अंदर के दृश्य फिल्माए गए हैं,वह तो काफी हास्यास्पद हैं. क्लायमेक्स भी जंचा नही.

लेखक व निर्देशक ने बहुत कुछ सत्य निरूपित किया है. इसमें गुरसेवक यानी कि पवन मल्होत्रा का एक संवाद है-‘‘उस वक्त हालात ऐसे थे कि हम या तो उनके साथ थे या उनके ख्लिाफ. ’’पर तीन एपीसोड बाद चुन्नू उर्फ संजय सिंह यानी कि अभिनेता टीकम जोशी,गुरूसेवक यानी कि अभिनेता पवन मल्होत्रा से कहते हैं-‘‘आज भी वही हालात है, या तो हम उनके साथ हो सकते हैं या उनके खिलाफ. ’’यह संवाद आज भी सच्चाई का आईना हैं. यानी कि वर्तमान मंे जो हालात हैं,उसमें आप या तो ‘बाएं‘ या ‘दाएं‘ हो सकते हैं,बीच का कोई रास्ता नहीं है.

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इसके कुछ दूसरे संवाद मसलन-‘‘हम दूसरे घाव दिखाकर अपने घाव छिपाना चाहते हैं. ’

आठ एपीसोडों को अनु सिंह चैधरी, नवजोत गुलाटी, प्रतीक पयोढ़ी, विभा सिंह, रंजन चंदेल, शैलेंद्र कुमार झा और सलाहकार लेखक करण अंशुमान और अनन्या मोदी ने गढ़ा है. सूक्ष्मता से लिखी गयी इस कहानी में एक मार्मिक और विचलित करने वाली तस्वीर भी है तो वहीं काफी कुछ मेलोड्ामा भी है. कहानी में दोहराव काफी है. यदिल लेखकीय टीम व निर्देशक ने थोड़ी मेहनत की होती तो यह एक क्लासिंक वेब सीरीज बन सकती थी,जिसकी जरुरत भी है.

इतना ही तकनीक रूप से भी यह वेब सीरीज काफी कमजोर है. निर्देशन के साथ साथ एडीटिंग में भी कमियां हैं. दो तीन दृश्यों में तो दृश्य बाद में शुरू होता है और संवाद पहले आ जाते हैं. मसलन- कनाडा में कार्तिक ,मंजीत कौर से मिलने उनके घर जाता है. कार्तिक घर के बाहर ही रहता है,मगर कार्तिक व मंजीत के बीच बातचीत के संवाद शुरू हो जाते हैं.

प्रोडक्शन डिजाइनर वसीक खान अस्सी के दशक व उस काल के बोकारो को सटीक ढंग से उभारा है. कैमरामैन कमलजीत नेगी बधाई के पात्र हैं. अमित त्रिवेदी के गाने गति के साथ तालमेल बिठाते हैं.

अभिनयः

गुरूसेवक के किरदार में पवन मल्होत्रा ने शानदार परफार्मेंस देते हुए एक बार फिर हर किसी को अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने में सफल रहे हैं. जोया हुसेन की परफार्मेंस जानदार है. कुछ दृश्यों में तो वह बेहतरीन काम कर गयी,पर कुछ जगह मात खा गयी.

रिषि रंजन के किरदार में अस्सी के दशक के हालात से मजबूर,गुस्सैल पर प्यार के लिए किसी भी हद तक जाने वाले रिषि रंजन के किरदार को अंशुमान पुष्कर ने एकदम सही ढंग से परदे पर उकेरा है.

मंजीत कौर उर्फ मनु के किरदार में वामिका गब्बी आकर्षक हैं. कुछ दृश्यों में उन्होने इंगित किया है कि उनके अंदर अभिनय क्षमता है,उसे निखारने वाले निर्देशक की जरुरत है.

तेज तर्रार, कपटी व चालाक लोमड़ी चुन्नू के किरदार को टीकम जोशी ने अपने शानदार अभिनय से जीवंतता प्रदान की है.

डीएसपी विकास मंडल के रूप में सहिदुर रहमान अद्भुत यथार्थवादी हैं. कई दृश्यों में उनकी आंखे व उनके चेहरे के भाव काफी कुछ कह जाते हैं.

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