रेटिंग: एक स्टार

निर्माताः टीसीरीज, अषोक ठाकरिया,  दीपक मुकुट, मार्कंड अधिकारी व सुनील ख्ेात्रपाल

लेखक: आकाष कौषिक, मधुर षर्मा

निर्देशकः इंद्र कुमार

कलाकार: अजय देवगन,  सिद्धार्थ मल्होत्रा,  रकुल प्रीत सिंह,  किआरा खन्ना, किकू षारदा, सीमा पाहवा,  कंवलजीत सिंह, उर्मिला कोठारे, सुमित गुलाटी, महेष बलराज, सौंदर्या षर्मा, नोरा फतेही व अन्य. 

अवधि: दो घंटे इक्कीस मिनट

हम अत्याधुनिक वैज्ञानिक युग यानी कि इक्कीसवीं सदी में अत्याधुनिक जीवन शैली जीते हुए जिंदगी में आने वाली तमाम चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. तो वहीं फिल्म सर्जक इंद्र कुमार अभी भी स्वर्ग व नर्क, पाप व पुण्य के बीच ही फंसे हुए हैं और वह हर इंसान को इसी भ्रमजाल में फांसने के मकसद से ‘‘थैंग गॉड’’ जैसी अति नीरस व बेवकूफी वाली फिल्म लेकर आए हैं.  यह एक नार्वे/ दानिश फिल्म ‘‘सोरटे कुगलेर’’ का आधिकारिक भारतीयकरण है. जिसमें पाप,  पुण्य, इंसान के कर्मों का हिसाब के साथ ही जीवन व मृत्यू का मजाक बनाकर रख दिया है.

इस फिल्म को देखते हुए सलमान खान अभिनीति व निर्मित असफल फिल्म ‘जय हो’ के अलावा हौलीवुड फिल्म ‘‘ब्रूस आलमाइटी’ की भी याद आ जाती है. फिल्म ‘थैंक गौड’ इतनी बेकार है कि इस फिल्म को देखते हुए यह यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि इस फिल्म के निर्देशक इंद्र कुमार ने ही अतीत में ‘दिल’, ‘बेटा’, ‘राजा’,  ‘इश्क’, ‘मन’,  ‘मस्ती’, ‘धमाल’ और ‘टोटल धमाल’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया था.

कहानीः

फिल्म की कहानी के केंद्र में एक रियल स्टेट एजेंट अयान कपूर (सिद्धार्थ मल्होत्रा) हैं. जिसने बाद में बहुत बड़े भवन निर्माता बन ढेर सारा काला धन कमाया. उनकी पत्नी रूही (रकुल प्रीत सिंह) पुलिस इंस्पेक्टर है और वह एक बेटी की पिता हैं. प्रधानमंत्री मोदी के ‘नोटबंदी’ ने उन्हे कंगाल कर दिया. उन्हें बैंक से कर्ज भी नही मिल रहा. तो अब वह अपना आलीषान मकान बेच रहे हैं. मगर मकान भी बिक नही रहा है. एक दिन जब वह कार चलाते हुए जा रहे होते हैं, तब रास्ते में आने वाले एक मोटर साइकिल चालक को बचाने का प्रयास करते हुए उनकी कार दूसरी कार से टकरा जाती है और वह अस्पताल पहुंच जाते हैं.

अब कहानी दो स्तर पर चलती है. एक तरफ अस्पताल में डाक्टर,  अयान कपूर का आपरेशन कर रहा है, तो दूसरी तरफ जब अयान होश में आते हैं, तो वह खुद को एक ऐसे व्यक्ति के सामने पाते है, जो खुद को सीजी उर्फ चित्रगुप्त (अजय देवगन) के रूप में पेश करता है,  और जो मूक गवाहों की पंक्तियों के साथ बिंदीदार अखाड़े पर राज करता है. सीजी के समाने अयान कैसे यमदूत लेकर गए हैं. अब केबीसी की तर्ज पर चिगुप्त, अयान कपूर के साथ गेम खेलते हुए अयान की जिंदगी का विवरण पेश करते हुए बताते है कि वह कितना झूठा, सच्चा, नेक या गलत इंसान हैं. अब अयान अनंत काल तक नरक में भुनने का हकदार है या अपना शेष जीवन पुनः अपनी प्यारी पत्नी (रकुल प्रीत सिंह) और छोटी बेटी के साथ बिताएंगे?

लेखन व निर्देशनः

कभी संगीत प्रधान रोमांटिक कॉमेडी फिल्मों के सर्जक के रूप में पहचान रखने वाले निर्देशक इंद्र कुमार ने अचानक सेक्स प्रधान घटिया ‘मस्ती’ व ‘ग्रैंड मस्ती’ जैसी फिल्में बनायी. उसके बाद ‘धमाल‘ फ्रेंचाइजी के तहत ओवरसेक्स पुरुषों और दोहरे अर्थ वाले संवादों से भरी हुई फिल्में पेश की. अब जीवन और मृत्यु के बीच लटके हुए इंसान को सुधारते हुए हर इंसान को नेक इंसान बनने व दूसरों की मदद करने का संदेश देने वाली फैंटसी कौमेडी फिल्म ‘‘थैंक गौड’’ लेकर आए हैं, जो कि दस मिनट बाद ही दर्शकों से अपना नाता तोड़ लेती है.

दर्शक इंतजार करने लगता है कि उसे नरक रूपी फिल्म ‘थैंक गौड’ से कब छुटकारा मिलेगा. कमजोर पटकथा के चलते ही फिल्म अति धीमी गति से आगे बढ़ती है. आकाश कौशिक व मधुर शर्मा लिखित पटकथा इसकी सबसे बड़ी कमजोर कड़ी है. दर्शकों को हंसाने के लिए इसमें जो चुटकुले या संवाद है, वह लोगों के व्हाट्सअप पर दिन भर आने वाले संदेशों से भी बदतर हैं.  जबकि इंसान के कर्म को लेकर सषक्त, रोचक,  मनोरंजक व बेहतरीन फिल्म बनायी जा सकती थी. निर्देशक इंद्र कुमार को अपने सिनेमा की सोच व स्वभाव को बदलने की आवष्यकता है. यमलोक में यमराज के किरदार का नाम चित्रगुप्त के नाम पर ‘सीजी‘ रखना अखरता है. इतना ही नहीं विवादों से अपने दामन को बचाने के लिए यमदूत को भी ‘वाईडी‘ कहकर पुकारा जाता है.  हालांकि इस फिल्म के बहाने फिल्मसर्जक इंद्रकुमार ने तमाम धार्मिक रूढ़ियों व धार्मिक मान्यताओं पर चोट करने की कोशिश की है, पर कमजोर पटकथा व संवादों के चलते वह इसमें सफल नही हो पाए. वैसे क्लायमेक्स में यह फिल्म इंसान को अपनी जिंदगी को पूरी तरह से बदलने की बात करती है. अब तक इंद्र कुमार की हर फिल्म का सबसे सशक्त पक्ष संगीत रहा है, पर इस फिल्म का संगीत पक्ष भी काफी कमजोर है.

अभिनयः

अपनी फिल्मों की असफलता का लगातार दंश झेल रहे अभिनेता अजय देवगन चित्रगुप्त उर्फ सीजी के किरदार में इससे बेहतर अभिनय कर सकते थे. मगर वह हर जगह पूरी तरह से मैकेनिकल या रोबोट ही नजर आते हैं. अयान कपूर के किरदार में सिद्धार्थ मल्होत्रा को देखकर फिल्म ‘शेरशाह’ में सिद्धार्थ मल्होत्रा के अभिनय की तारीफ करने वाले दर्शक अपना माथा पीट लेते हैं. इसके लिए कुछ हद तक कमजोर पटकथा भी जिम्मेदार है. अयान की विचित्रताएं अस्वाभाविक नजर आती हैं. रकुल प्रीत सिंह यहां भी केवल सुंदर नजर आयी हैं. वह अपने अभिनय से प्रभावित करने में विफल रही हैं. सीमा पाहवा और कंवलजीत सिंह की प्रतिभा को जाया किया गया है. बेचारी मिस फतेही ठहाका लगाने आती हैं.

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