रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः दृश्यम फिल्मस

निर्देशकः मनीष मुंद्रा

कलाकारः विनीत कुमार सिंह, पूजा पांडे व अन्य.

अवधिः एक घंटा पचास मिनट

‘कड़वी हवा’, ‘मसान’, ‘आंखों देखी’ और ‘न्यूटन’ जैसी सफलतम फिल्मों के निर्माता मनीष मुंद्रा ने पहली बार लेखक व निर्देशक के तौर पर ‘गैंगरेप’ जैसे कुकृत्य पर फिल्म ‘‘सिया’’ लेकर आए हैं, जिसे देखकर पिछले कुछ वर्षों के दौरान उत्तर प्रदेश के उन्नाव व हाथरस में घटी रेप की घटनाएं याद आ जाती हैं. मगर फिल्म अपना असर डालने में  पूरी तरह से असफल है.

कहानीः

फिल्म की कहानी केंद्र में सत्रह वर्षीय सीता सिंह उर्फ सिया है. एक गरीब परिवार की बेटी सिया (पूजा पांडे) ही पूरे परिवार की जिम्मेदारियां उठाती है. उसके पिता खाट पर बैठकर दिनभर बीड़ी फूंकते रहते हैं. सिया के चाचा चाची अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहते हैं. सिया जंगल से लकड़ी काटकर लाने से लेकर छोटे भाई को पढ़ाने, कहानी सुनाने से लेकर भाई को स्कूल छोड़ने व गेहूं पिसाने सहित सारे काम करती है. सिया एक आदर्श बेटी है. वह अब नौकरी करना चाहती है. इसलिए वह अपने चाचा के दोस्त व दिल्ली में नोटरी का काम करने वाले वकालत पास तथा जाति से मल्लाह धर्मेंद्र (विनीत कुमार सिंह) से मदद मांगती है. इस बीच नौकरी दिलाने का झांसा देकर स्थानीय विधायक एक दिन गांव की ही एक बुजुर्ग महिला की मदद से रात में अपने बंगले पर बुलाकर सिया संग गलत काम करते हैं. उसके बाद गांव के विधायक के चमचे उसके पीछे पड़ जाते हैं. एक दिन जब सिया अपने घर से निकलकर चुपचाप दिल्ली की तरफ रवाना होती है, तो बस अड्डे पहुॅचने से पहले ही विधायक के पाले हुए चार लड़के उसे जबरन अगवा कर लेते हैं. यह चारों लड़के गांव के बाहरी हिस्से के खंडहरनुमा मकान में सिया को बंदी बनाकर रखते हैं और सभी चारांे लड़के हर दिन उसके साथ गैंगरेप करते हैं. उसे यातना देते हैं. सिया की तलाश में सिया के माता पिता की मदद धर्मेंद्र करता है. पुलिस एफआई आर लिखने से इंकार कर देती है. अचानक एक पत्रकार को इस कांड की भनक लग जाती है, वह धर्मेंद्र से मिलकर सारी जानकारी लेकर एक अखबार में छाप देता है. तब विधायक जी अपना खेल कर पुलिस को इशारा करते हैं कि चारों युवकों को गिरफ्तार किया जाए. लेकिन पुलिस सिया का मेडीकल दूसरे दिन नहला धुलाकर कराती है. मजिस्ट्ेट के सामने बयान के लिए सिया को ले जाने से पहले उसे समझाती है कि वह विधायक के खिलाफ कुछ नहीं कहेगी. फिर सिया के माता पिता उसे दिल्ली में उसके चाचा चाची के पास छोड़ आते हैं. इधर सभी आरोपियों को जमानत मिल जाती है. विधायक फोन करके सिया के चाचा को समझाते हंै कि अब सब मामला रफा दफा हो जाने दो. मगर धर्मेंद्र से बात करके सिया न्याय की लड़ाई जारी रखने का निर्णय लेती है. उसके बाद कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अब सिया को न्याय मिला या नही, यह तो फिल्म देखने पर ही पता चलेगा.

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