करीब 50 सालों से हिंदी सिनेमा जगत पर राज कर रहे 67 वर्ष के अभिनेता ऋषि कपूर (Rishi Kapoor) ने हिंदी सिनेमा जगत को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. दो सालों से बोन मैरो कैंसर से जूझने के बाद उन्होंने आज सवेरे मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली. उन्होंने इंडस्ट्री में 25 साल तक सिर्फ चोकलेटी हीरो की भूमिका निभाई थी. तब से लेकर आज तक, हर तरह की भूमिका निभाने के बावजूद उन्हें हमेशा हर किरदार नया लगा. उन्होंने उम्र को एक नंबर और अपने आपको हमेशा जवान समझा है. उन्हें रोमांटिक फिल्में आज भी पसंद थी.

उन्होंने एक इंटरव्यू में Rishi Kapoor ने कहा था कि वे स्पस्टभाषी है और हमेशा से ही खरी-खरी बातें करना पसंद करते है, जिसकी वजह से कई बार उन्हें इसका बहुत खामियाजा भुगतना पढ़ा. सोशल मीडिया पर भी उनकी बातें कई लोगों को पसंद नहीं आती थी. किसी को ठेस पहुँचने पर कई बार वे उसे निकाल भी लेते थे, पर उन्हें ये माध्यम पसंद था, क्योंकि इसमें रिएक्शन जल्दी मिलता था. ये डिजिटल इंडिया का रूप है और भविष्य भी, जिसमें हर चीज घर बैठे मिलता है. ऋषिकपूर ‘बॉबी’ फिल्म में ढाई रूपये में हीरो बने थे ,जबकि रणवीर कपूर 250 रूपये में फिल्म ‘सवरियाँ’ में हीरो बने, ये अंतर पिता और बेटे में है. जेनरेशन के बाद हर चीज बदलती है.

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फ़िल्मी माहौल में पैदा हुए ऋषि कपूर ने जन्म से ही कला को अपने आस-पास देखा है. उन्हें गर्व रहा है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के 105 साल पूरे होने में उनके परिवार का 97 साल का योगदान रहा है. उन्होंने आजतक करीब 150 फिल्मों में काम किया है और हर तरह के किरदार निभाए है, लेकिन आज भी जब वे कुछ नया पढ़ते थे, तो उसे करने की इच्छा पैदा होती थी. उनके हिसाब से अभिनय की प्रतिभा व्यक्ति में जन्म से होती है.कोई अच्छा अभिनेता हो सकता है ,पर ख़राब अभिनेता कभी नहीं होता. व्यक्ति या तो एक्टर होता है या एक्टर नहीं होता है. इन दोनों के बीच कोई नहीं होता.

उन्होंने हमेशा उस फिल्म को करने की कोशिश की, जिसमें मनोरंजन हो इसके साथ उसमें कुछ संदेष चला जाय. इस दौर को ऋषि कपूर अच्छा मानते रहे, जिसमें पुराने कलाकार को नए एक्टर्स के साथ काम करने का मौका मिला. इसका श्रेय उन्होंने अमिताभ बच्चन को दिया, जिन्होंने इस दौर की शुरुआत की, जिसका फल सभी को मिला. पुराने कलाकार आज गुमनाम के अँधेरे में नहीं,बल्कि नए दौर में नए कलाकारों के साथ अपनी भूमिका निभाते है. आज पुराने कलाकारों की फिल्में हिट होती है और नयी जेनरेशन उनके लिए कहानी लिखती और निर्देशन करती है. ऋषि कपूर को पिता की भूमिका निभाना कभी पसंद नहीं था. हबीब फैजल की फिल्म ‘दो दुनी चार’ उन्हें बहुत अच्छी लगी थी, जिसमें ऋषि कपूर लीड रोल में थे और उन्होंने नीतू सिंह के साथ इसमें अभिनय किया था और ये फिल्म सफल भी रही . इससे पहले नीतू सिंह और ऋषि कपूर ने 16 फिल्में साथ की थी. दोनों की जोड़ी को दर्शक पर्दे पर तब देखना बहुत पसंद करते थे. अभिनय को ऋषि कपूर अपने जीवन का जूनून मानते थे, जिसकी सीमा उनके जीवन में कभी नहीं थी.

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