सलीम जावेद पर बनी डाक्यूमेंट्री सीरीज़ चर्चा में है. जो की प्राइम वीडियो पर 20 अगस्त को रिलीज हो रही है. सलीम जावेद फिल्म इंडस्ट्री का एक ऐसा नाम है जिन्होंने कहानीकारों की इज्जत में इजाफा किया है. उनकी साझेदारी हमेशा सर्वश्रेष्ठ लेकर आई है एंग्री यंग मैन सीरीज उनकी रचनात्मक प्रतिभा और भारतीय सिनेमा पर विशाल प्रभाव को प्रस्तुत करती है. सलीम खान और जावेद अख्तर की जोड़ी जो सलीम जावेद के नाम से जानी जाती है इस जोड़ी ने 1970 के दशक में हिंदी सिनेमा में क्रांति ला दी थी और बतौर कहानीकार एक के बाद एक कई सारी हिट फिल्में दी थी. जैसे शोले, जंजीर, दीवार, यादों की बारात डौन सहित 15 -16 हिट फिल्में दी है. लेकिन उसके बाद इस जोडी ने 1987 में आख़िरी फ़िल्म मिस्टर इंडिया दी थी जो ब्लौकबस्टर साबित हुई थी .
इस फिल्म के बाद दोनों अलग हो गए . गौरतलब है जो ताकत एक साथ जुड़कर काम करने में है वह अलग होकर करने में नहीं है जिसके चलते सलीम जावेद के अलग होने के बाद जब उन्होंने स्वतंत्र रूप से लिखना शुरू किया तो उनके लेखन में वह बात नजर नहीं आई जो 70 के दशक में जोड़ी के साथ लिखने में दिखती थी.
नम्रता राव निर्देशित 3 एपिसोड की यह डाक्यूमेंट्री सलीम जावेद के इसी जुड़ाव अलगाव और बतौर जोड़ी बेहतरीन सफर को दर्शाती है. एंग्री यंग मैन की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान मिडिया के सामने उपस्थित सलीम जावेद ने वादा किया है कि वह एक बार फिर से एक साथ फिल्म लिखेंगे साथ ही मजाक के तौर पर सलीम जावेद ने यह भी कह दिया कि पहले भी हम ज्यादा पैसा लेते थे और आज भी कम पैसे नहीं लेंगे.

सलीम जावेद के लेखन की खासियत....

सलीम जावेद जोड़ी की फिल्मों की सफलता की सबसे बड़ी वजह यह थी कि वह अपनी कहानी के जरिए
 समाज के उन पहलुओं को उजागर किया जो हिंदू समाज में निचले स्तर पर औऱ पिछड़े हुए माने जाते थे. जिन्हें अपशगुन, अछूत और गरीब कहकर समाज द्वारा दूतकारा जाता था . जैसे की फिल्म शोले में ठाकुर की विधवा बहू जो कि जया बच्चन बनी थी.  जिस विधवा की शादी  ठाकुर एक ऐसे इंसान जय से करवाने के लिए राजी हो जाते है जो हर तरह से ठाकुर के मुकाबले कमतर है. जैसे वह गुंडा हैं, गरीब है, और अनाथ है . इसी तरह सलीम जावेद की कहानी में भगवान से ज्यादा फिल्म का हीरो हाइलाइट होता है. शोले में ठाकुर भगवान के पास जाने के बजाय दो गुंडो को गब्बर सिंह को मारने के लिए बुलाता है. इसी तरह फिल्मों में शादियां और भगवान के बजाय प्रेम विवाह और इंसानी ताकत को ज्यादा महत्व दिया गया है. जब कि उन दिनों बन रही फिल्मो में ज्यादातर रीति रिवाज, भगवान ,मंदिर, शादी,को ज्यादा  दिखाया जाता था. लेकिन सलीम जावेद की फिल्मों में हीरो भगवान को भी चुनौती देता नजर आता था. जैसे अमिताभ बच्चन फ़िल्म दीवार में शिव के मंदिर में जाकर शिव भगवान को चुनौती देते नजर आए यह कहकर .. खुश तो बात होगे तुम... जो मैं तुम्हारे पास आया...
गौरतलब है सलीम जावेद की जोड़ी ने अपनी कहानी के जरिये अपने हीरो को एंग्री यंग मैन के  रूप में प्रस्तुत किया. उनके द्वारा लिखे हुए डायलौग आज भी सभी की जुबान पर हैं जैसे.. आज भी मैं फेक हुए पैसे नहीं उठाता, मां तुम साइन करोगी या नहीं, बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना, कितने आदमी थे, अरे ओ कालिया ,फ़िल्म जंजीर का डायलॉग जब तक बैठने को ना कहा जाए खड़े रहो... आदि. जावेद ने अपनी कहानी के जरिए ना सिर्फ रिश्तो की अहमियत समझाई  बल्कि समाज की कूनीतियो पर भी सवाल उठाया. और समाज के पिछड़े हुए लोगों को अपनी फिल्मों के जरिए सम्मान भी दिलाया उनकी हर फिल्म में जिंदगी को लेकर कोई ना कोई सीख होती थी जिसकी वजह से दर्शक उनकी फिल्मों की तरफ आकर्षित होते थे.
एंग्री मैन यंग मैन डाक्यूमैंट्री के जरिए उनकी इन्हीं प्रभावशाली शैली को और इस जोड़ी के खूबसूरत सफर को दर्शाने की कोशिश की गई है.

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