पूर्व नेवी अधिकारी व रक्षा विशेषज्ञ उदय भास्कर की बेटी व अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने ग्यारह वर्ष पहले फिल्म‘‘माधोलाल कीप वाकिंग’’ से अभिनय कैरियर की शुरूआत की थी. उसके बाद उन्होने ‘गुजारिश’, ‘लिशेन अमाया’, ‘रांझना’, ‘तनु वेड्स मनु रिटर्न’, ‘निल बटे सन्नाटा’, ‘अनारकली आफ आरा’, ‘वीरे दी वेडिंग’ और वेब सीरीज ‘‘रसभरी’’ सहित कई फिल्में व वेब सीरीज में अपरंपरागत व सशक्त किरदार निभाते हुए एक अलग पहचान बनायी है. तो वहीं वह सोशल मीडिया पर अपनी बेबाक राय की वजह से विवादांे में रहती हैं. हमेशा सच कह देने के चलते विवाद में वह सिर्फ न फंसती हैं, बल्कि कई बार कलाकार के तौर पर काफी नुकसान भी उठाना पड़ता है. इन दिनों वह 21 अगस्त से ‘‘ओटीटी’ प्लेटफार्म ‘‘ईरोज नाउ’’पर प्रसारित हो रही मानव तस्करी व देह व्यापार प आधारित वेब सीरीज को लेकर चर्चा में हैं, जिसमें उन्होेने पहली बार एक पुलिस अफसर का किरदार निभाया है.
प्रस्तुत है स्वरा भास्कर से फोन पर हुई ‘एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश. . .
आपने लॉक डाउन का समय कैसे बिताया?
-कोरोना वायरस के चलते पूरे विश्व के लिए कठिन व विपत्ति का समय है. लॉक डाउन में हर किसी के अपने हाथ पांव बंधे हुए हैं. लेकिन मेरा वक्त काफी अच्छा गुजरा. पहले दो माह तो मैं अपनी कर्मभूमि मुंबई में अकेले रही. मंुबई में रहते हुए मैंने इत्तफाकन लॉक डाउन लगने के दो दिन पहले एक कुत्ता एडॉप्ट गोद लिया था. पहले दो माह का समय तो मेरे इस नए गोद लिए कुत्ते के साथ बीत गए. मेरे माता पिता दिल्ली में रहते हैं और मेरी माता जी के सोल्डर कंधे में चोट लग गयी थी, तो मैं कार चलाकर मंुबई से दिल्ली पहुॅच गयी. मई माह की बात है. उस वक्त ट्रेन व हवाई जहाज वगैरह सब बंद थे. तब से मैं दिल्ली में हूं. दिल्ली आकर सबसे पहले मैंने श्रमिकों को राहत दिलाने के काम से जुड़ी. फिर मैंने अपनी वेब सीरीज‘‘रसभरी’’का प्रमोशन किया. उसके बाद मैने वेब सीरीज‘‘फ्लेश’’की डबिंग दिल्ली में ही की, जो कि ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘ईरोज नाउ’’पर 21 अगस्त से स्ट्रीम प्रसारित होगा. एक अन्य वेब सीरीज‘‘भाग बानी भाग’’की भी डबिंग की, जो कि अगले माह आएगी. एक किताब ‘‘फारवर्ड’’ लिखी. एक फिल्म की पटकथा लिखी. अब वेब सीरीज ‘‘फ्लेश’’का प्रमोशन कर रही हूं. तो मेरा लॉक डाउन बहुत बेहतरीन गुजरा. सबसे बड़ी बात तो यह है कि मैं दस वर्ष के बाद इतने लंबे समय के लिए अपने माता पिता के साथ दिल्ली में हूं. मैं दस वर्ष पहले मुंबई गयी थी, तब से दिल्ली में लंबे समय के लिए रूकना नही हुआ, इसलिए माता पिता के साथ यह वक्त बिताना बहुत अच्छा लग रहा है.
मैने उन्नीस अगस्त 2020 को दिल्ली प्रदेश महिला आयोग की चेअरमैन स्वाती मालीवाल से मुलाकात कर उनसे लंबी बातचीत की, जिससे मुझे काफी कुछ सीखने को मिला.
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तो यह माना जाए कि आपने विपत्ति को भी सुअवसर में बदल दिया?
-हॅसते हुए. . . . एक तरीके से अवसर तो था यह.
वेब सीरीज‘फ्लेश’’का आफर मिला, तो आपको किस बात ने इससे जुड़ने के लिए प्रेरित किया?
-सबसे पहले तो इसकी विषयवस्तु ने. इसकी विषयवस्तु इंसानों की खरीद फरोख्त@ ह्यूमन ट्रैफीकिंग से जुड़ा हुआ है. देह व्यापार से जुड़ा हुआ है. देह व्यापार और ह्यूमन ट्रैफीकिंग का मुद्दा मेरी राय में पूरे विश्व का सबसे घिनौना सच है. मुझे लगता है कि यह बहुत दुःख और शर्मिंदगी की बात है कि इक्कीसवीं सदी में भी इंसानो की खरीद फरोख्त एक ऐसा व्यापार है, जो कि 2014 की आयलो की रपट के अनुसार इस घिनौने और पापा से भरे हुए व्यापार का लाभ 2150 बिलियन डालर का था. तो यह बहुत जरुरी है कि हम इस घिनौनी सच्चाई को लेकर बात करें. इस घिनौने व्यापार के खिलाफ जागरूकता फैलाई जाए. इसलिए मुझे लगा कि यह कहानी कही जानी चाहिए.
दूसरी बात जब मुझे इसके निर्देशक दानिश असलम ने इसका आफर दिया, उस वक्त मैं इटली में छुट्टियां मना रही थी. मैने अनमने मन से कह दिया कि आप स्क्रिप्ट भेज दो. उस वक्त मैं एक कैफे में बैठी हुई थी और मैं सारे एपीसोड वहीं पर पढ़ गयी, उस वक्त शायद इसके दस एपीसोड थे. बाद में इसके एपीसोड बढ़ गए. तो मुझे लगा कि इतनी रोचक पटकथा और बेहतरीन मुद्दे वाली वेब सीरीज तो मुझे करनी ही है.
तीसरी वजह यह रही कि मैंने अपने अब तक के कैरियर में कभी वर्दी नहीं पहनी थी, कभी पुलिस का किरदार नहीं निभाया था. मुझे लगा कि मेरे लिए यह बहुत बेहतरीन मौका है, मेरे पिता उदय भास्कर स्वयं वर्दी वाले थे, जो कि अब नेवी से रिटायर हो चुके हैं. तो मेरे दिल में वर्दी के लिए इज्जत, सम्मान और एक खास जगह है. इसे अलावा मुझे लगता है कि हर पुरूष कलाकार यानी कि हीरो ने अपने कैरियर में कम से कम एक बार वर्दी पहनी होगी या पुलिस का किरदार निभाया होगा, मगर महिला कलाकारों यानी कि हीरोईनों को यह मौका कम मिलता है. कई ऐसी हीरोईनें हैं, जिनका पूरा कैरियर निकल गया, पर उन्हे मौका नही मिला. ऐसे में जब मुझे यह बेहतरीन मौका मिल रहा था, तो इसे मैं कैसे छोड़ देती.
किरदार को लेकर क्या कहेंगी?
-मैने वेब सीरीज ‘‘फ्लेश’में ह्यूमन ट्रैफीकिंग के रैकेट का सफाया करने में जुटी एसीपी राधा नौटियाल का किरदार निभाया है.
तो आपने अपने किरदार के लिए किस तरह की तैयारी की?
-मैने पुलिस वालों से बात करनी शुरू की. मैं कई महिला व पुरूष पुलिस वालों के अलावा आईपीएस अफसरों से मिली. मैने उनसे बात करके ‘ह्यूमन ट्रैफीकिंग’ को लेकर उनका नजरिया जानने का प्रयास किया. क्योंकि मुझे तो इस मुद्दे को अपने किरदार की हैसियत से देखना था. मैने पाया कि ज्यादातर पुलिस वालो ने ऐसे लोगो को ‘राक्षस’ की संज्ञा दी. इसके अलावा मैने पाया कि पुलिस वालो में बहुत ही ज्यादा फ्रस्ट्रेशन है कि वह चाहे जितना इमानदारी के साथ काम अपनी जिंदगी को जोखिम में डाल कर काम करें, मुजरिम को पकड़े, मगर व्यवस्था सिस्टम ऐसा है कि अपराधी बड़ी आसानी से उनके चंगुल से छूट जाते हैं. इसके लिए वह उपर से फोन करवाकर, घूस देकर जेल से बाहर निकल जाते हैं. तो पुलिस वालों में इसी का फ्रस्ट्रेशन है कि कानून में जो ‘लू फोल’ कमियां हैं, उसका फायदा यह अपराधी उठाना बड़ी खूबी से जानते हैं. मुझे यह बात बड़ी दिलचस्प लगी. तो मेरे अपने एसीपी राधा नौटियाल के किरदार के स्वभाव का बहुत बड़ा हिस्सा है फ्रस्ट्रेशन. मैंने फ्रस्ट्रेशन को पकड़ लिया. मैने तय किया कि एक किरदार की भावनात्मक रचना, उसके इस इमोशन यानी कि फ्रस्ट्रेशन को पकड़ कर करुंगी. मेरे लिए यह बहुत रोचक रहा.
दूसरी बात मैने कुछ समाज सेवकों से बात की जो कि ह्यूमन ट्रैफीकिंग से बच्चों व औरतों को छुड़ाने का काम करते हैं, तो पाया कि उनकी सबसे बड़ी बाधा पुलिस अफसर होते हैं. कई जगह पुलिस ही मानव तस्करी व देह व्यापार में संलग्न लोगों की मदद कर रही है. ट्रैफीकर ने बड़े स्तर पर सांठगांठ कर इसे एक व्यवस्थित अपराध बना रखा है. यह दुनिया बहुत संजीदा है. हमने इसमें कई पहलुओं को भी छुआ है.
क्या आप भविष्य में ह्यूमन ट्रैफीकिंग को लेकर कुछ करना चाहेंगी?
-मेरी राय मे सबसे हर इंसान को खुद को सशक्त व जागरूक बनना चाहिए. सूचना सबसे बड़ा सशक्तिकरण है. मैं यह दावा नही करुंगी कि मुझे ह्यूमन ट्रैफीकिंग जैसी अपराध की दुनिया के बारे में सब कुछ पता है. इसलिए पहली शुरूआत खुद को इस संबंध में शिक्षित करने से होनी चाहिए. उसके बाद दूसरों को शिक्षित करने की कोशिश करनी चाहिए.
ह्यूमन ट्रैफीकिंग पर फिल्म ‘‘मर्दानी 2’’आयी थी, जिसमें रानी मुखर्जी ने पुलिस अफसर का किरदार निभाया था. दो घंटे की इस फिल्म में सब कुछ कहना संभव नहीं था. पर आपकी वेब सीरीज ‘‘फ्लेश’’ काफी लंबी है, तो इसमें विस्तार से हर पहलू पर बात की गयी है, ऐसा आप मानती हैं?
-जी बिलकुल आप एकदम सही फरमा रहे हैं. पहली बात तो मैं रानी मुखर्जी जी की बहुत बड़ी प्रशंसक हूं, तो उनसे तुलना ही मुझे गदगद कर देता है. जैसा आपने कहा उस फिल्म में दो घ्ंाटे का समय है, तो एक फोकश के साथ कहानी पेश करनी थी. फिल्म‘‘मर्दानी 2’’की कहानी यह है कि एक पुलिस वाली है, जो कि ह्यूमन ट्रैफीकिंग के अपराध से जुड़े लोगों के पीछे भाग रही है. जबकि हमारी वेब सीरीज‘फ्लेश’छह सात घ्ंाटे की है, तो हम इसमें एक नहीं तीन कहानियों के साथ हर पहलू पर जा सके हैं. इसमें तीन ट्ैक तो बहुत बेहतरीन है. इसमें एक पूरी दुनिया को रचाने व बसाने का प्रयास है. हमने बहुत बारीक चीजों पर काम किया है. मसलन -यदि आपने ट्रेलर या सीरीज देखी होगी, तो पाया होगा कि अपहृत लड़की मुंबई से कलकत्ता ट्क में जा रही हैं, ट्क रास्ते में कहीं रूकने वाला नही है. ऐेसे में यदि किसी लड़की को बाथरूम जाना हो तो वह क्या करेगी?तो एक दृश्य है जिसमें लड़कियों को डायपर पहनाए जा रहे हैं. यह दृश्य देखकर आपके दिल मन को बहुत बड़ा धक्का लगता है. जबकि यही सच है. तो हम इन सभी पहलुओं तक पहुंच पाए हैं.
ह्यूमन ट्रैफीकिंग को खत्म करने के लिए क्या करना बहुत जरूरी है?
-देखिए, ह्यूमन ट्रैफिकिंग को खत्म करना बहुत बड़ा मुद्दा है. सवाल यह है कि क्या दुनिया से पाप को खत्म किया जा सकता है?नहीं. . . तो ‘ह्यूमन टै्फीकिंग को भी खत्म करना मुमकीन नहीं है. तो असल मुद्दा यह है कि हर शख्स अगर अपना काम और कर्तव्य का पालन करे, तो कुछ अंकुश लग सकता है. मतलब अगर पुलिस वाले अपना काम करें, एनजीओ वाले जो रेस्क्यू करते हैं, वह अपना काम करे. सब लोग अपना अपना काम इमानदारी करें. सरकार सिर्फ अपना काम करे. शेल्टर होम चलाने वाले अपना काम करें. आप अपने काम में भ्रष्टाचार मत करो. बाकी दुनिया को छोड़ो, तो मुझे लगता है कि इससे बहुत कुछ कम या खत्म हो सकता है. नागरिक होने के नाते हमें भी अपना काम सही ढंग से करना चाहिए. अगर कोई बच्चा आपको सड़क पर रोते हुए नजर आ रहा है, तो उसे अनदेखा मत कीजिए, रुकिए और उससे पूछें कि क्या हो गया? क्योंकि हो सकता है आप उसे अनदेखा करके छोड़ देंगे और उसको कोई ऐसा आदमी पकड़ लेगा, जो उसको देह बाजार में या ह्यूमन ट्रैफिकिंग के किसी नेटवर्क के हाथों बेच देगा.
सेंसरशिप को लेकर आपके क्या विचार है?अक्सर वेब सीरीज के खिलाफ आवाजें उठती हैं और इन्हें सेंसरशिप के दायरे में लाने की मांग भी होती रहती है?
-मैं डिजिटल व ओटीटी पर सेंसरशिप के खिलाफ हूं. मुझे लगता है कि ओटीटी की खासियत यही है कि यह सेंसरशिप से आजाद है. बाक्स आफिस के दबाव से आजाद है. इसलिए हम स्वतंत्र होकर ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म पर नई तरह की कहानियां दिखा रहे हैं. नए तरह के किरदार पेश कर रहे हैं. ह्यूमन ट्रैफीकिंग पर इमानदारी से आप फिल्म नही बना सकते, क्योंकि सेंसर कई दृश्यों को पास नही करेगा. आप ‘सेके्रड गेम्स’को फिल्म में नही बना सकते, क्योंकि संेसर इसे पास ही नहीं करेगा. ‘पाताल लोक’, ‘लैला’व अन्य वेब सीरीज को ेसेंसर पास ही नही करेगा. ‘ओटीटी’ प्लेटफार्म पर आजादी है कुछ नया प्रयोग करने की. पर वहीं सेंसर ले आएंगे, तो फिर आप उसकी खासियत ही खत्म कर देंगे. इमानदारी से कहूं तो मेरा मानना है कि जब आप ख्ुाली हवा में जीते हैं, तो उसका आनंद ही अलग है. एक आजाद वातावरण में ही कला पनप सकती है. जब आप उस पर दबाव डालकर उस पर प्रतिबंध लगाते हैं, तो आपको कला नहीं प्रपोगंडा मिलता है.
‘‘निल बटे सन्नाटा’’हो या ‘‘अनारकली आफ आरा’’हो या ‘फ्लेश’, आप हर जगह अपरंपरागत और सशक्त किरदार ही निभा रही हैं. इसके पीछे आपकी कोई सोच रहती है?
-देखिए, मैं यह निर्धारित नहीं करती कि मुझे किस तरह की फिल्में व किस तरह के किरदार आफर होंगे. लेकिन मैं यह निर्धारित कर सकती हूं कि मुझे किस किरदार को हामी भरना है. मुझे किस तरह की पटकथा वाली फिल्म से जुड़ना है. मुझे दर्शक किस तरह की फिल्म या किरदार में पसंद करते हैं, इस पर भी मैं गौर करती हूं. मैं बड़ी सतर्कता के साथ उन किरदारों का चयन करती हूं, जिनमें मेरा विश्वास हो या जिस कहानी में मेरा यकीन हो या जिन विषयों में मेरी दिलचस्पी हो. मैं उनकिरदारों का चयन करना पसंद करती हूं, जिनसे मुझे अहसास हो कि कलाकार के तौर पर इससे मेरा विकास होगा. मेरी कला की बढ़ोत्तरी होगी. मेरी सोच बहुत साफ है, इसीलिए आप देखते हैं कि मैने वही काम किया है, जिसे मैं परिभाषित कर सकती हूं. मैं अपने हर काम के साथ खड़ी हूं और उसकी सफाई दे सकती हूं. शायद इसी वजह से मैं एक खास तरह के सशक्त किरदार कर रही हूं, क्योंकि मेरा विश्वास है सशक्ति करण में, मेरा यकीन महिलाओं के सशक्तिकरण में है. मैं उस किरदार या कहानी का हिस्सा नहीं बन सकती, जिस पर मेरा यकीन न हो. कलाकार के तौर पर पूरी कहानी पर विश्वास करना जरूरी नहीं है, लेकिन उस कहानी की किसी चीज पर तो आप भरोसा कर रहे हैं. कहानी की नीयत पर आपको विश्वास होना चाहिए.
बौलीवुड में नारी सशक्तिकरण की क्या स्थिति है?
-अच्छी स्थिति है. मैं हमेशा कहती हूं कि बॉलीवुड समाज का आईना है. समाज में महिलाओं की जिस तरह की स्थिति है, वैसी ही बॉलीवुड में भी महिलाओं की स्थिति है. समाज में जितनी प्रगति महिलाओं की होगी, उतनी ही प्रगति बौलीवुड में भी महिलाओं की होगी. जितना नुकसान समाज में महिलाओं का होगा, उतना ही नुकसान बौलीवुड में भी होगा.
तमाम लोग बतौर कलाकार आपकी तारीफ करते हैं. तो कुछ लोग एक्टिविस्ट के रूप में आपकी तारीफ करते हैं. आप खुद को किस रूप में ज्यादा बेहतर मानती हैं?
-मैं अपने आप को कतई एक्टिविस्ट नहीं समझती. मैं अपने आप को एक अभिनेत्री और मैं अपने आप को एक नागरिक मानती हूं. मैं सिर्फ सवाल उठाती हूं. सवाल चाहे सरकार से पूछो, किसी नागरिक से पूछो या बौलीवुड से भी पूछ लो, चाहे किसी से पूछो. पर उस सवाल को मैं एक एक्टिविस्ट के रूप में नहीं उठा रही हूं. उस सवाल को मैं एक नागरिक होने के नाते ही उठाती हूंू. यह मेरे अंदर स्पष्ट है. मुझे लगता है कि मैं ऐसी दुनिया में हूं, जहां लोगों को दूसरों पर ‘लेबल’लगाने में बड़ा मजा आता है. अब लोगों के दिए हुए ‘लेबल’ का हम कुछ नही कर सकते.
पहले खबर आई है कि सुप्रीम कोर्ट में आपके ऊपर कोई अवमानना का केस शुरू हो रहा है. इस पर कुछ कहना चाहेंगी?
-यह तो उनसे ही पूछना पड़ेगा, जिन लोगों ने शिकायत की है.
मतलब आपको लगता है कि लोग सच नहीं सुनना चाहते?
-इस मुद्दे पर मैं अभी कुछ भी कमेंट करने की स्थिति में नहीं हूं.
आपकी आने वाली फिल्में व वेब सीरीज कौन सी हैं?
-जैसा कि मैंने आपसे पहले ही कहा कि लॉकडाउन मेरे लिए बहुत ज्यादा प्रोडक्टिव था. जून में ‘अमैजॉन’ पर ‘रसभरी’आयी थी. अब 21 अगस्त को ‘ईरोज नाऊ’पर ‘‘फ्लेश’’ आयी है. इसके बाद ‘नेटफ्लिक्स’पर ‘भाग बानी भाग’वेब सीरीज आएगी. इसके अलावा मैंने एक फिल्म‘‘शीर कोरमा’’ की है, जो कि एलजीबीटी कम्यूनिटी पर है, यह इस साल के अंत तक आएगी. समलैंगिक संबंधों वाली इस कहानी में मेरे साथ शबाना आजमी भी हैं.
जब आप सच बोलती हैं. अपने दोस्तों के लिए चुनाव प्रचार करती हैं. तो कलाकार के तौर पर इसका आपके काम के ऊपर कितना असर पड़ता है?
-बहुत पड़ता है. मैंने लंबे समय तक इस बात को अनदेखा करने की कोशिश की थी. पहले मैं सोचती थी कि ऐसा कुछ नहीं होता है. पर अब मुझे भी लगता है कि इसका असर पड़ता है. कईयो ने मुझसे कहा कि तुम्हारी इमेज बहुत ज्यादा राजनीतिक होती जा रही है. क्या तुम राजनीति में जाना चाहती हो? तो मेरा जवाब यही होता है कि राजनीति में नहीं जाना चाहती. इस समय तो बिल्कुल भी नहीं जाना चाहती हूं. लोग कहते हैं कि फिल्मकार मुझे काम देने से डरते हैं. कुछ नेताओ का प्रचार करने की वजह से मेरा विज्ञापन का काम भी छूटा.
सी आर सी के समय तो एक ब्रांड, जिसकी में कैंपेनिंग कर रही थी, उससे मुझे निकाल भी दिया गया था. उसने बाकायदा टर्मिनेशन लेटर पर भी लिखा है कि, ‘आप सीएए और एनआरसी की खिलाफत करने वालों के साथ जुड़ी हुई हैं, उसकी वजह से हम आपके साथ काम नहीं करेंगे. ’तो उसका असर तो बहुत ज्यादा ही है. लेकिन मैं यह मानती हूं कि मैं जो चीजें करती हूं, वह मैं पैसे लेकर तो करती नहीं हूं. मैं जो चीजें थिएटर पर करती हूं या मैं जो कहती हूं, उसके पीछे मेरे आदर्श व जीवनमूल्य हैं. मेरी कुछ अपनी मान्यताएं हैं. अगर आपकी मान्यता है, तो फिर आप उसके लिए खड़े भी होंगे. आप उसके लिए जो भी कठिनाइयां आएंगी, उसे झेलेंगे भी. उसमें आपको कुछ नुकसान होगा, तो उस नुकसान को भी आपको झेलना पड़ेगा.
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मैं अपनी फिल्म इंडस्ट्री का एक पुराना वाकिया याद दिलानाचाहूंगी. गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी साहब ने 1956 मैं एक नजम तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू पर लिखी थी. इस वजह से मुंबई पुलिस ने उन्हें जेल में डाल दिया था. उनको मुंबई के राज्यपाल शायद उनका नाम खरे था, ने कहा था कि अगर तुम जेल से बचना चाहते हो, तो माफी मांगो. लेकिन मजरूह सुलतानुपरी साहब ने साफ मना किया था. उन्होंने कहा था कि अगर मुझे माफी ही मांगना होता, तो मैं यह नजम लिखता ही नहीं. तो वह ग्यारह माह तक जेल में रहे थे. जब मुंबई उच्च न्यायालय में केस आया, तो जज ने राज्यपाल के खिलाफ बात कही कि क्या नाटक है यह?इन्हे जेल में क्यों रखा? तो मेरा मानना है कि जब आप अपने मूल्यों और अपनी मान्यताओं से कोई काम करते हैं, तो वहां पर आपको आपके दिल से अगर कोई बात कही है, तो आप उसके लिए लड़ेंगे. उसके लिए खड़े रहेंगें. तब आप सब कुछ झेलेंगे भी.