रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः अनुभव सिन्हा और भूषण कुमार

निर्देशकः अनुभव सिन्हा

कलाकारः तापसी पन्नू, पावेल गुलाटी, रत्ना पाठक शाह,कुमुद मिश्रा, तनवी आजमी.

अवधिः दो घंटे 21 मिनट

‘‘बस एक थप्पड़ ही तो था.क्या करूं? हो गया ना..इससे ज्यादा जरूरी सवाल है यह है कि ऐसा हुआ क्यों? बस इसी ‘क्यों’ का जवाब तलाशती फिल्म‘‘थप्पड़’’लेकर आए हैं फिल्मकार अनुभव सिन्हा. पति द्वारा पत्नी को थप्पड़ मारना यानी कि घरेलू हिंसा.घरेलू हिंसा को लेकर कई फिल्में बन चुकी हैं.घरेलू हिंसा पर ही हिंसा प्रधान दृश्यों की भरमार वाली फिल्म ‘प्रोवोक्ड’में ऐश्वर्या राय बच्चन ने भी अभिनय किया था,मगर अनुभव सिन्हा की फिल्म में हिंसात्मक दृश्य नही है.यह फिल्म घरेलू ूहिंसा की बजाय पुरूष के उस अहम की चर्चा करती हैै,जिसके बारे मंे समाज में चर्चा नहीं होती.बिना भाषणबाजी के अनुभव सिन्हा ने कहानी का अंत पति पत्नी के बीच आपसी सहमति से तलाक के साथ किया है,जिसे सोच पाने की क्षमता अभी तक हमारे भारतीय पुरषसत्तात्मक समाज में तो बिल्कुल न के बराबर है.फिल्म में एक जगह अमृता की वकील नेत्रा का संवाद है-‘‘अगर एक थप्पड़ पर अलग होने की बात हो जाए,तो 50 परसेंट से ज्यादा औरतें मायके में हों.’’

आप भले ही अपनी पत्नी को हर सुख सुविधा देने के साथ साथ उससे भरपूर प्यार करते हों,फिर भी आपको अपनी पत्नी को एक थप्पड़ भी मारने का हक नही है.इसी मूल मुद्दे के इर्द गिर्द बुनी गयी कहानी वाली फिल्म ‘‘थप्पड़’’में पितृसत्तात्तमक सोच के खिलाफ बात करने के साथ साथ सभ्यता,मर्यादा,आदर्श बहू, परिवार और घर सहित कई मुद्दों पर बात की गयी है.मगर नारी स्वतंत्रता व समानता की बात करने वाली इस फिल्म के तमाम घटनाक्रम यथार्थ से परे और अस्वाभाविक हैं.

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