रेटिंग: चार स्टार

निर्माताः लुक आउट प्रोडक्शंस और बीबीसी स्टूडियो

कार्यकारी निर्माताः मीरा नायर,  विक्रम सेठ,  एंड्रो डालीस,  फेथ पेनहले,   लोरा लंका ट्रीरी,  अराधना सेठ.

निर्देशकः मीरा नयर, लेकिन एपीसोड नंबर चार के निर्देशक शिमित अमीन

कलाकारः तब्बू, ईशान खट्टर, तान्या मनिकताला,  रसिका दुग्गल, माहिरा कक्कर, राम कपूर.

अवधिः छह घंटे. एक-एक घंटे के छह एपिसोड

ओटीटी प्लेटफार्मः नेटफ्लिक्स

मशहूर लेखक विक्रम सेठ का अंग्रेजी भाषा में एक उपन्यास‘‘ए सूटेबल ब्वॉय’’1993 प्रकाशित हुआ था. जिसे काफी पसंद किया गया था. इसमें आजादी के ठीक बाद 1951 की पृष्ठभूमि में एक मां द्वारा अपनी सुशिक्षित बेटी लता के लिए योग्य वर की तलाष के साथ ही उस वक्त देश मंे आ रहे सामाजिक. राजनीतिक बदलाव. आम इंसान के साथ ही नेताओं की सोच व विचारों का सटीक चित्रण है. इसी उपन्यास पर इसी नाम से फिल्मसर्जक मीरा नायर छह एपीसोड की वेब सीरीज‘‘ए सूटेबल ब्वाॅय’’लेकर आयी हैं. जिसके एपीसोड नंबर चार को छोड़कर सभी एपीसोड मीरा नायर ने स्वयं निर्देशित किए हैं. मगर एपीसोड नंबर चार का निर्देशन शिमित अमीन ने किया है.  यॅूं तो अंग्रेजी में यह बीबीसी पर अगस्त माह में प्रसारित हो चुका है. पर अब 23 अक्टूबर से इसे हिंदी में ‘नेटफ्लिक्स’पर देखा जा सकता है.

कहानीः

1951 की पृष्ठभूमि में इसकी कहानी के केंद्र में उत्तर भारत के गंगा नदी किनारे बसे शहर ब्रम्हपुर के मूलतः तीन परिवार हैं. एक परिवार रूपा मेहरा (माहिरा कक्कर) का है. उनके दो बेटे अरुण मेहरा (विवेक गोम्बर) व वरुण मेहरा (विवान शाह) तथा दो बेटियां सविता मेहरा कपूर (रसिका दुग्गल) व लता (तान्या मनिक ताला) है. अरूण मेहरा की षादी मीनाक्षी चटर्जी मेहरा (शहाना गोस्वामी)से हुई है. मीनाक्षी के दादा अंग्रेजों के जमाने में जज थे. मीनाक्षी का भाई अमित चटर्जी (मिखैल सेन) अंग्रेजी में कविताएं लिखता है. अरूण मेहरा अपनी पत्नी मीनाक्षी के साथ कलकत्ता में रहते हैं. मीनाक्षी ने अरूण पर अपना जादू चला रखा है और अपनी मनमानी करती रहती है. वह अक्सर अपने प्रेमी बिल्ली इरानी (रणदीप हुड्डा)के घर जाकर यौन संबंध बनाती रहती है. लता की खास सहेली हैं मालती (शरबरी देशपांडे).

जबकि दूसरा परिवार सरकार में रेवेन्यू मिनिस्टर महेश कपूर(राम कपूर) का है. उनके दो बेटे प्राण कपूर (गगन देवरियार)  और मान कपूर (ईशान खट्टर) हैं. प्राण कपूर की षादी रूपा मेहरा की बेटी सविता मेहरा से हुई है. प्राण कपूर ब्रम्हपुर युनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं. महेश कपूर के अजीज दोस्त हैं बैटर के नवाब (आमीर बशीर). जिनका बेटा है फिरोज खान (शुभम सराफ). नवाब का नौकर है वारिस (रणवीर शोरी). मान और फिरोज खान अच्छे दोस्त हैं.

‘‘ए सूटेबल ब्वॉय’’के पहले एपीसोड की शुरूआत होती है सविता मेहरा की प्राण कपूर संग शादी से. जहां धीरे धीरे दोनो परिवारों के सदस्यों से भी परिचय होता है. इस शादी के दौरान रूपा बार बार लता से कहती है कि अब अगला नंबर उसका है. लता कहती है कि उसे तो शादी नहीं करनी है. वह तो नन बनना चाहती है. यहीं पर लता व मान कपूर की दोस्ती भी सामने आती है. कुछ दिन बाद युनिवर्सिटी में लता की मुलाकात इतिहास के विद्यार्थी कबीर दुर्रानी (दवेश रजवी) से होती है. धीरे धीरे लता. कबीर दुर्रानी को चाहने लगती है. मगर समस्या यह है कि कबीर दुर्रानी मुस्लिम है. जिसे उसकी मां स्वीकार नही करेंगी. उधर रेवेन्यू मिनिस्टर महेश कपूर सदन में जमींदारी को खत्म करने का कानून संदन में लाकर पास करा लेते हें. इससे गृृहमंत्री एल एन अग्रवाल (विनय पाठक) उनसे नाराज हो जाते हैं. माड़ के राजा(मनोज पाहवा) जमींदारी बिल के खिलाफ अदालत जाते हैं. पर अदालत कानून को सही ठहराती है. शाम को महेश कपूर के घर पर तवायफ साईदा बाई (तब्बू) का नाच गाना होता है. जिस पर मान फिदा हो जाते हैं और फिर मान कपूर अक्सर साईदा बेगम की कोठी पर जा उनके साथ यौन संबंध बनाने लगते हैं. इसे वह प्यार का नाम देते हैं.

दूसरे एपीसोड में लता व कबीर की मुलाकातों के बारे में रूपा मेहरा को पता चल जाता है. लता. कबीर से छिपकर मिलती है और साथ में भागने के लिए कहती है. पर कबीर दुर्रानी इंकार कर देता है. तब लता अपनी मां रूपा के साथ कलकत्ता चली जाती है. जहां पर उसे कबीर का पत्र मिलता है. जो कि उससे माफी मांगने के लिए कहता है. मान. साईदा की बहन तस्नीम (जोएता दत्ता) के उर्दू शिक्षक रशीद (विजय वर्मा) से साईदा के कहने पर उर्दू सीखने लगते हैं. पर एक दिन साईदा केा पता चलता है कि रशीद. तस्नीम पर प्यार के डोरे डाल रहा है. तो वह रशीद को उसके गांव भेज देती हैं. इधर महेश कपूर को मान व साईदा के संबंधों के बारे में पता चलता है. तो वह मान को घर से निकाल देते हैं. मान. साईदा की कोठी पर पहुंचता है. तो साईदा उसे उर्दू सीखने के लिए रशीद के साथ उसके गांव रूदिया भेज देती है. उधर मीनाक्षी. लता को एक पार्टी मे अपने भाई अमित चटर्जी से मिलवाती है. वह चाहती है कि लता की शादी उसके भाई अमित से हो जाए.

तीसरे एपीसोड में रूदिया गांव में पता चलता है कि रशीद शादीशुदा है और रशीद के पिता(विजय राज). महेश कपूर से जमींदारी प्रथा खत्म करने को लेकर नाराज हैं. पर रषीद के साथ मान कपूर गांव वालों का दिल जीत लेता है. यहीं उसे वारिस का भी साथ मिलता है. रूपा बेटी लता के लिए लड़का ढूढ़ने के लिए लखनउ सहगल के यहां जाती है. जहां कल्पना कई लडकों से मिलवाती है और जूता कंपनी में काम करने वाले हरेश खन्ना (नमित दास)को वह पसंद करती है. इधर कलकत्ता में अमित चटर्जी. लता पर डोरे डाल रहा है. मान का पत्र साईदा बेगम को देने फिरोज जाता है. तो उसकी नजर तस्नीम पर पड़ती है और उसे दिल दे बैठता है.

चैथे एपीसोड में गंगा दषहरा के मेले में भगदड़ में भास्कर खो जाता है. जिसे कबीर दुर्रानी सुरक्षित रूपा तक पहुंचाता है. लता युनिवर्सिटी के विद्यार्थियों द्वारा किए जाने वाले शेक्सपिअर के नाटक का हिस्सा बनती है. जहां एक बार फिर कबीर से मुलाकात होती है. रामलीला और मुहर्ररम के जुलूस के वक्त दंगा भड़क जाता है. हिंदू कट्टरपंथियों से मान. फिरोज को बचाता है. लता अपनी सहेली मालती से कह देती है कि वह कबीर से रिष्ता जोड़गी. ऐसा उसे नहीं लगता. अब कबीर दुर्रानी के भागने के प्रस्ताव को लता ठुकरा देती है. इधर. मान को साईदा बेगम ने निराष कर दिया है.

पांचवे एपीसोड में माड़ के राजा व गृहमंत्री अग्रवाल की बेरूखी को देखते हुए नवाब. 1952 के आम चुनाव में कपूर को अपने क्षेत्र से चुनाव लड़ने के लिए कहते हैं. उन्ही के क्षेत्र में रूदिया गांव भी है. जहां के लोग मान के भक्त बन चुके हैं. मान अपने पिता के साथ जाकर प्रचार करता है. इधर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. साईदा. फिरोज को बुलाकर बताती है कि तस्नीम का कड़ा सच बयां करती है. वहीं पर गलतफहती के चलते मान . फिरोज के पेट मंे चाकू भोप देता है.

छठे एपीसोड में मान कपूर खुद पुलिस के सामने आम्मसमर्पण कर अपना जुर्म कबूल कर लेता है. उसे लगता है कि फिरोज मर गया. मगर फिरोज बच जाता है. पर इसका फायदा उठाकर वारिस खान . महेश कपूर के खिलाफ चुनाव में खड़ा हो जाता है और जीत जाता है. इससे नवाब को तकलीफ होती है. अदालत में फिरोज व साईदा बेगम इसे महज हादसा बताते हैं. मान बरी हो जाता है. कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः लता सभी को ठुकराते हुए हरेष खन्ना संग षादी कर लेती है.

निर्देशनः

मीरा नायर न सिर्फ बेहतरीन फिल्मकार हैं. बल्कि उन्हे सिनेमा व भारत की अच्छी समझ भी हैं. इस बार उन्होने आजादी और नया संविधान लागू होने के बाद के माहौल पर विक्रम सेठ के उपन्यास पर यह वेब सीरीज निर्देषित की है. जिसमें कुछ दृष्य जरुर हमें उनकी पुरानी फिल्मों की भी याद दिलाते हैं. मगर यह एक बेहतरीन तरीके से निर्देषित वेब सीरीज है. इसमें उन्होने राजीति सोच व कट्टरपंथी सोच पर भी कुठाराघाट किया है. नया संविधान लागू होने के ठीक बाद के समय में एक मस्जिद के सामने किसी माड़ के राजा जो अपनी जमींदारी के खोने से तिलसे हुए हैं. वह मस्जिद के सामने सिर्फ इसलिए षंकर का मंदिर बनवा देना चाहते हैं जिससे नमाज के वक्त वह काबा की तरफ रुख करें. तो उन्हें सामने शिवलिंग नजर आए. जिसका गृहमंत्री का साथ भी मिलता है. फिर हिंदू मुस्लिम दंगो का भड़कना. यह दृष्य अपने आप में बहुत कुछ कहता है. इस सीरीज में 1951 के माहौल के अनुरूप पुरानी हवेलियां.  डिजाइनर कपड़े.  पर्दे के पीछे पनपते जिस्मानी रिश्ते.  घर में चलने वाली कूटनीतियां स्थापित करने में  मीरा नायर कामयाब हैं. मान की कहानी में नवाब के बेटे से उसकी दोस्ती को समलैंगिक इशारा देने की कोशिश भी पटकथा लेखक ने की है.  लेकिन इसका विस्तार बाद में गायब मिला. मीरा नायर ने इस बात को भी रेखांकित किया है कि आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी किस तरह सामाजिक बदलाव के साथ ही हिंदू मुस्लिम के बीच भेदभाव पैदाकर दंगे की संस्कृति को बढ़ावा दे रही थी.

कैमरामैन की भी तारीफ करनी पड़ंगी. कैमरा जिस तरह से घूमता है. उसे देखते हुए दर्षकों को अहसास होता है कि उसके साथ ही कैमरा घूम रहा है.

अभिनयः

इस वेब सीरीज की सबसे बड़ी खूबी तब्बू और ईषान खट्टर की आॅन स्क्रीन केमिस्ट्ी है. दोनों ने अपने अपने किरदारों को षानदार तरीके से निभाया है. एक उम्रदराज तवायफ के किरदार में तब्बू ने अपने से आधी उम्र के लड़के इषान खट्टर संग रूहानी और जिस्मानी रिश्ते बनाने के दृष्यों में शानदार अभिनय किया है. उनका अभिनय उनकी आंखों से बोलता है. वहीं मान कपूर उर्फ दाग साहब के किरदार में इषान खट्टर भी अपनी आंखों से बहुत कुछ कह जाते हैं. इषान खट्टर ने साबित कर दिया कि अभी तक किसी ने उनकी प्रतिभा का उपयोग ही नहीं किया था. तो लता के किरदार में तान्या मनिकताला भी प्रभावित करती हैं. वह कई दृष्यों में काफी खूबसूरत लगी हैं और कई दृष्यों में वह अपनी आंखों व चेहरे के भावों से बहुत कुछ कह जाती हैं. राम कपूर बेहतरीन अभिनेता हैं. इसमें कोई दो राय नहीं. कुलभूषण खरबंदा ने महज एक दृष्य का यह किरदार क्यों निभाया. यह तो समझ से परे है. सबसे बड़ी कोफ्त तो बिल्ली ईरानी के किरदार में रणदीप हुडडा को देखकर होती है. एक बेहतरीन कलाकार सिर्फ सेक्स करते नजर आते हैं. इसके अलावा उनके दृष्य ही नही है. विजय वर्मा ने ठीक ठाक अभिनय किया है. विजय राज. रसिका दुग्गल. गगन को जाया किया गया है. अपनी बेटी के उज्ज्वल भविष्य व उसकी षादी को लेकर चिंतित मां रूपा मेहरा के किरदार में माहिरा कक्कड़ अपना प्रभाव छोड़ जाती हैं.  षहाना गोस्वामी तो लगभग एक ही तरह के किरदारों में नजर आने लगी हैं.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...