वर्ष 2004 में मिस इंडिया यूनिवर्स का खिताब जीतकर मौडलिंग और फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्री तनुश्री दत्ता झारखंड के जमशेदपुर की हैं. हिंदी फिल्म ‘आशिक बनाया आपने’ उनकी पहली फिल्म थी. इसके बाद उन्होंने कई फिल्मों जैसे चौकलेट, भागम-भाग, ढोल, रिस्क, गुड बौय बैड बौय आदि फिल्मों में काम किया. उनकी आखिरी फिल्म ‘अपार्टमेंट’ थी. हिंदी फिल्मों के अलावा उन्होंने तमिल और तेलगू फिल्मों में भी काम किया है.
तनुश्री एक बेहद साहसी लड़की हैं और हर बात को सामने खुलकर कहती हैं. साल 2008 में फिल्म ‘हौर्न ओके प्लीज’ के दौरान उन्होंने नाना पाटेकर के खिलाफ आवाज उठाई थी, क्योंकि नाना पाटेकर का गलत तरीके से छूना और फिल्म में इंटिमेट सीन्स की मांग करना, उन्हें खराब लगा था और वह फिल्म को बीच में छोड़कर अमेरिका चली गयी थी, क्योंकि उनकी बात को न सुना जाना उनके लिए डिप्रेशन का कारण बना था.
‘मीटू मूवमेंट’ में उन्होंने अपनी बात एक बार फिर से सबके सामने रखी. जिसे लेकर बहुत हंगामा हुआ. कई और हेरेसमेंट की घटनाएं भी सामने आई. नाना पाटेकर भी मीडिया के सामने आये, पर बिना कुछ कहे ही वापस चले गए. अभी कार्यवाही कोर्ट के अधीन है और तनुश्री उस फैसले को सुनने के लिए तैयार हैं.
पिछले दिनों जब उनसे मिलना हुआ, तो वह शांत,सौम्य और धैर्यवान दिखीं. उनकी हर बात में विश्वास झलक रहा था और वह ऐसे किसी भी अपराध करने वाले को माफ न करने की इच्छा जाहिर कर रही थी. पेश हैं कुछ अंश.
प्र. फिल्म इंडस्ट्री में अच्छी तरह सामंजस्य स्थापित करने के बाद आप विदेश क्यों चली गयी और वहां क्या कर रही है?
‘हौर्न ओके प्लीज’ फिल्म की इस घटना ने मुझे हिलाकर रख दिया था. अभिनेता नाना पाटेकर, निर्माता समीर सिद्दीकी, निर्देशक राकेश सारंग और कोरियोग्राफर गणेश आचार्य इन चारों ने मिलकर मुझे परेशान किया था. इसके बाद मेरी इच्छा बौलीवुड में काम करने की नहीं थी. मैंने कुछ फिल्में जो साइन की थी, उसे पूरा किया और कुछ नई फिल्में भी साइन की थी और एक साल का ब्रेक लिया भी था, पर उन्हें करने की इच्छा बाद में नहीं हुई. हालांकि मैं उस समय अभिनय अच्छा कर रही थी.
अच्छी फिल्में भी मेरे पास आ रही थी. मैंने फिल्मों का चयन भी सीख लिया था, लेकिन इस घटना से मैं डर गयी थी. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मेरे साथ ऐसा कुछ हो सकता है. हेरेसमेंट के अलावा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के गुंडे बुलाकर मेरी गाड़ी भी तुड़वा दी. उससे मुझे बहुत धक्का लगा, क्योंकि मेरे साथ मेरे माता-पिता भी थे. वे मुझे उस माहौल से निकालने के लिए आये थे. इसके बाद मुझे इस माहौल में रहना नहीं था और मैं निकल गयी.
फिल्मों और टीवी के औफर्स अभी भी विदेश में आते हैं, यहां आने पर भी एक बड़े टीवी फिक्शन का औफर आया. मैंने मना किया. विदेश में भी मैं काम कर रही हूं, इवेंट्स करना, किसी ब्रांड के साथ जुड़ना आदि कई काम चल रहे हैं.
प्र. आज से 10 साल पहले जब ये सारी बातें कही गयी थी, तो उसे न सुनने की वजह क्या थी?
उस समय मैंने पूरे साहस के साथ सारी बातें कही थी. टीवी पर कई दिनों तक मेरी इंटरव्यू चलती रही. उस समय मेरी उम्र कम थी, जोश बहुत था, लेकिन मीडिया और लोग बहुत अलग थे. सोशल मीडिया इतनी ताकतवर नहीं थी. लोगों में जागरुकता कम थी. हेरेसमेंट को लोग सीरियसली लेते नहीं थे. उनका कहना था कि हां तो ठीक है, थोडा परेशान कर दिया, रेप तो नहीं किया? भूल जाओ.
असल में जब से औरतों ने काम करना शुरू किया है, तब से लेकर आज तक महिलाएं घर हो या बाहर किसी न किसी रूप में प्रताड़ित की जाती रही हैं. लड़कियों को ही समझाया जाता रहा है कि इस बारे में वे बात न करें और अगर औफिस में किसी ने कुछ शिकायत इस बारे में की, तो उस लड़की की नौकरी ही चली जाती थी. ये हर क्षेत्र में हुआ है. तब लड़कियां शर्म के मारे बात नहीं कर पाती थी. मैंने उस समय भी यही बात कही थी कि शर्म उसे आनी चाहिए, जो प्रताड़ित कर रहा है. जिसके साथ गलत हुआ है, उसे शर्मसार होने की जरुरत नहीं.
समाज में औरतों को ये शिक्षा आदि काल से दी जाती रही है, उन्हें ही शर्म का चोला पहना दिया जाता है. मर्दों को ऐसी शिक्षा क्यों नहीं दी जाती? देखा जाये तो शर्म और हया व्यक्ति की आंखों और दिमाग में होती है, कोई कपड़ों या आचरण में नहीं होती. बहुत से लोगों ने तो इसे धर्म से भी जोड़ दिया. धर्म और कपड़ों को एक साथ जोड़ने के लिए किसने कहा है? ये किसी को पता नहीं. किसी व्यक्ति की विचारधारा ही उसे शैतान बनाती है, उसके कपड़े नहीं.
हमारे देश में इतने सारे धर्म हैं, जो इस बात का ध्यान नहीं रखते है कि कोई व्यक्ति अपने शरीर को साफ सुथरा और स्वस्थ कैसे रखें. उनका ध्यान सिर्फ महिलाओं के कपड़ों पर होता है. आज लोग बौडी सेंट्रिक हो चुके हैं. साधू–संत वे कहे जाते हैं, जिन्होंने अपने शरीर को ढककर रखा है, पर क्या वे वाकई संत हैं? इस पर विचार करने की जरुरत है.
इसके अलावा अगर किसी हीरोइन ने छोटे कपड़े पहनकर फोटो खिंचवाई या एक्टिंग की है, तो लोग उसे भला-बुरा कहने से परहेज नहीं करते और ऐसे कलाकार के साथ अगर कुछ बुरा हुआ और वह कितना भी कहना चाहे, लोग उसकी सुनते नहीं, उन्हें लगता है कि ये तो ऐसी ही है, अगर किसी ने कुछ किया भी हो, तो कोई गलत नहीं किया. उस कलाकार की इज्जत की धज्जियां उड़ा देते हैं. आज के जमाने में ये सोच कैसी है? इसे कैसे कम किया जा सकेगा?
प्र. ‘मीटू कैम्पेन’ का शुरुआती दौर बहुत मजबूत था, लेकिन अब ये कुछ धीमा पड़ने लगा है, क्या आपको नहीं लगता कि इसे अंजाम तक पहुंचने की जरुरत है?
इसका अंजाम हो चुका है, क्योंकि लोगों में जागरुकता बढ़ी है, जो मैं चाहती थी. पहले ये सारी बातें यूं ही बातों- बातों में कही गयी थी. अब ये एक अभियान बन चुका है. मुझे जो कहना था वह मैंने कह दिया है. ये कोई फिल्म नहीं जिसका प्रमोशन हो रहा है और बाद में लोग हौल में जाकर इसे देखेंगे. पहले भी मैंने अपनी बातें कहने की कोशिश की थी, लेकिन अब अधिक सुनी गयी और इसकी वजह लोगों में जागरुकता बढ़ने से है.
पश्चिम में भी इस अभियान में औरतों ने भाग लेना शुरू कर दिया है और ये जरुरी है, क्योंकि आने वाले समय में और भी औरतें बाहर निकलकर काम करेंगी. ऐसे में उनके चरित्र को हमेशा संदेह की नजर से ही देखा जायेगा, क्योंकि लोगों की मानसिकता है कि औरतों को घर में रहकर, घूंघट डालकर नीची आवाज में सबकी सेवा करनी चाहिए. कई ऐसे परिवार हैं, जो भले ही ऊपर से आधुनिक दिखते हों, पर अंदर से उनकी मानसिकता वैसी ही पारंपरिक है. उसे बदलने की जरुरत है. महंगाई के इस दौर में महिलाओं को आगे आकर घर और बाहर दोनों को संभालना जरुरी हो गया है. इसकी वजह आज की तकनीक भी है. यही वजह है कि आज हर क्षेत्र में महिलाएं हैं और इन्हें परेशान करने वाला इंसान विकृत मानसिकता वाले पुरुष ही हैं.
प्र. क्या इस मुहिम से पुरुषों की मानसिकता में कुछ बदलाव आयेगा?
आना तो चाहिए, क्योंकि महिलाओं को सम्मान देने की काफी बातें धर्म ग्रंथों में कही गयी हैं. जिसे कोई नहीं सुनता. जब सीधी ऊंगली से घी नहीं निकलता है, तो ऊंगली टेढ़ी करनी ही पड़ती है. अगर मुझे पता होता कि इतनी परेशानी और लांछन इतने सालों बाद भी झेलने पड़ेगें, तो शायद मैं इस चक्कर में नहीं पड़ती, लेकिन मैं खुश हूं कि मेरे कहने के बाद कई महिलाओं ने अपनी बात कहने की हिम्मत जुटाई. मैं इस मुहिम का जरिया भले ही बनी हूं, पर अब माहौल अवश्य बदलेगा, क्योंकि जो लोग ऐसी गलतियां कर अपने आप को छुपा रहे हैं और प्रताड़ित महिला कुछ कहने से डर रही है, वह अब कम अवश्य होगा. गलती करने वाले को गलती का एहसास न होकर बढ़ावा मिलना भी बंद हो जायेगा.
प्र. क्या ‘मी टू’ अभियान का गलत फायदा कोई महिला नहीं उठा सकती? आपकी सोच इस बारे में क्या है?
अभी तक तो किसी ने गलत फायदा उठाया नहीं है. इतनी सोच और समझ सभी में है कि कौन सच्चा और कौन झूठा है, इसका पता सबको चल जाता है. ऐसा अगर हम सोचने लगेंगे, तो कभी भी किसी की सच्चाई को समझना बंद कर देंगे. अब ये समय आ चुका है कि हम किसी की सच्चाई को संदेह की नजरों से देखना बंद करें. आज जैसी समस्या सच कहने पर आई है, कोई भी ऐसी परेशानी से गुजरना नहीं चाहता.
प्र. अभी तक आपकी लड़ाई कहां तक पहुंची है?
नाना पाटेकर की तरफ से लीगल नोटिस भेजा गया था, जिसका जवाब मेरे वकील दे रहे हैं. ये डराने और चुप कराने का एक तरीका होता है, लेकिन मुझे भी तो आप लोगों ने ही बनाया है. देखा जाए तो सारे अपराधी और पारदर्शी लोगों को समाज ने ही बनाया है. दोनों में अंतर ये होता है कि एक अंधकार को चुनता है, तो दूसरा रौशनी को.
प्र. बौलीवुड में काम करने के दौरान आपकी यात्रा कैसी थी?
मुझे याद आता है जब मैंने बौलीवुड में एंट्री की थी, मुझे इस क्षेत्र के बारे में पता नहीं था, मैं मासूम थी. मेरे माता-पिता ने एक आरामदायक और सहज जिंदगी दी थी. मैंने यहां पर कई ग्लैमरस भूमिका भी की थी, जिससे कई बातें मेरे ड्रेस मेरे अभिनय को लेकर सुनने को मिली, पर मैंने ध्यान नहीं दिया और काम करती गयी, क्योंकि मुझे अभिनय और डांस करने में मजा आता था. मुझे स्टारडम भी मिला था. मुझे अफसोस है कि स्टार बनने के बावजूद किसी ने तब मेरी बात को सीरियसली नहीं लिया. आज मैं जो हूं ये समाज की देन है. मैं हार मानने या दुखी होकर आत्महत्या करने वाली लड़कियों में से नहीं हूं. मुझे कई बार इन सब चीजों से डिप्रेशन हुआ, पर मैं टूटी नहीं.
प्र. क्या आउटसाइडर होने से आपको इंडस्ट्री में एडजस्ट करने में परेशानी आई?
ऐसा नहीं है, कई आउटसाइडर भी अच्छा काम कर रहे हैं. इंडस्ट्री ऐसी है कि यहां कभी भी कुछ भी हो सकता है, जैसे आप में प्रतिभा होने के बावजूद फिल्म किसी और को मिल जाती है. इसकी वजह पता करना मुश्किल होता है. हो सकता है कि मेरा स्वभाव इसके लिए जिम्मेदार हो. मैं जैसी पर्दे पर दिखती हूं, वैसी बिल्कुल भी नहीं हूं. मैं अन्तर्मुखी हूं. कई बार ऐसा लगता था कि मेरा व्यक्तित्व इंडस्ट्री के साथ मैच नहीं करता. जबकि मैं डांस, अभिनय और गाना सब अच्छा जानती हूं. इसके अलावा मैं बहुत महत्वाकांक्षी भी नहीं हूं.
प्र. इस दौरान परिवार ने कैसे सहयोग दिया?
मेरे माता-पिता बहुत परेशान थे, क्योंकि पहले भी जब मैंने कहने की कोशिश की थी तो किसी ने सुना नहीं था. मेरे माता-पिता खुश थे कि मैं अमेरिका चली गयी हूं, उन्होंने मुझे तनाव में देखा है और नहीं चाहते थे कि मैं फिर से इसमें जुड़ जाऊं. मैं यहां छुट्टियां बिताने आई थी. यहां पर अपने उतार-चढ़ाव के बारे में मैंने थोड़े इंटरव्यू दिए थे, जिसके द्वारा मैं मानसिक तनाव को ठीक करना चाहती थी और हो भी रहा था. ऐसे में ऐसी घटना हुई. पहले तो वे परेशान हुए, पर इस मुहीम को देखकर वे खुश है.
प्र. आपकी बहन भी इस क्षेत्र से जुड़ गयी है, उन्हें क्या सलाह देती है?
अपनी बात मैं उस पर नहीं थोपती. मैं उससे कहती हूं कि अधिक अपेक्षा इंडस्ट्री से मत रखना, जो सही लगे, वही काम करने की कोशिश करो. प्रतिभा है, तो आगे बढ़ोगे, ऐसा इस इंडस्ट्री में नहीं है. यहां अधिकतर लोग भ्रष्ट हैं. अच्छे लोग कम हैं. वह टीवी भी करती है और अच्छा कर रही है. शादी भी उसने अपने पसंद से कर ली है. मुझे दुःख है कि मेरी कोई बड़ी बहन नहीं है, जिसका लाभ मुझे मिल सकता था.
प्र. गृहशोभा की महिलाओं को क्या संदेश देना चाहती है?
अगर आपके जीवन में कुछ बुरा हुआ है, तो उससे बाहर निकलकर कहने की जरुरत है. इसके अलावा महिलाएं काम के साथ-साथ अपने लिए समय निकालें और अपने आप की देखभाल अवश्य करें.