बौलीवुड में टाइप कास्टिंग नई बात नहीं है. यह एक ऐसा ट्रैप है जिस में कोई ऐक्टर या ऐक्ट्रैस फंस जाए तो उस से निकलना मुश्किल हो जाता है. हाल ही में तृप्ति डिमरी का नाम भी इसी लिस्ट में जुड़ता दिखाई दे रहा है. उन्होंने अपनी शुरुआती फिल्मों में जो इंटैंस और वर्सेटाइल परफौर्मेंस दी थी, वह दर्शकों के दिलों में बस गई थी. खासतौर पर, ‘बुलबुल’, ‘लैला मजनू’ और ‘कला’ जैसी फिल्मों में उन के किरदार ने दर्शकों और क्रिटिक्स का दिल जीत लिया था, लेकिन ‘एनिमल’ और ‘बैड न्यूज’ जैसी फिल्मों में उन के द्वारा दिए गए बोल्ड एंड सैक्सी सीन्स ने उन्हें एक नई छवि में ढाल दिया है, जिसे अब वह छोड़ नहीं पा रही हैं.

हालांकि ऐक्टिंग के मामले में इन दोनों फिल्मों में क्रिटिक्स से उन्हें तारीफ मिली मगर औडियंस ने उन के उस हिस्से को चर्चा का केंद्र बनाया जिस में वे इंटिमेट सीन करते दिखाई दे रही थीं. इस से पहले वाली फिल्मों में उन के काम को वह चर्चा नहीं मिली जितनी इन 2 फिल्मों ने उन्हें दी. इन दोनों ही फिल्मों का कंटैंट बोल्ड था, नया था. लेकिन कहते हैं न, आप किस तरह की चर्चाओं में ज्यादा बने रहते हैं उसी से आप की इमेज निर्धारित होती है, इस समय तृप्ति के साथ यही हो रहा है.

सैक्सी इमेज तक

तृप्ति डिमरी ने 2020 में रिलीज हुई फिल्म ‘बुलबुल’ से फिल्मों में एंट्री की. कम लोगों ने यह फिल्म देखी मगर जिन्होंने देखी, उन के काम की प्रशंसा की और फिल्म इंडस्ट्री में उन्हें सीरियस व वर्सेटाइल ऐक्ट्रैस के रूप में थोड़ीबहुत पहचान मिली. ‘बुलबुल’ में उन्होंने मासूमियत से ले कर दमदार औरत तक का जो ट्रांसफौर्मेशन दिखाया, वह काबिलेतारीफ था. इस के बाद आई ‘कला’ फिल्म ने उन की पोजीशन को और मजबूत किया.

फिर आई फिल्म ‘एनिमल’. इस फिल्म में उन के किरदार ने छोटे से रोल में ही अपनी छाप छोड़ी. लेकिन अफसोस कि उन की इमेज एक सैक्सी और बोल्ड ऐक्ट्रैस के रूप में हुई. फिल्म में उन के और रणबीर कपूर के इंटिमेट सीन थे. एक सीन में वे सैमी न्यूड दिखाई देती हैं. यह सीन कहानी का हिस्सा था और तृप्ति ने इसे बहुत ही सरलता से निभाया. लेकिन दर्शकों ने उन की इस इमेज को पकड़ लिया.

सैक्सी इमेज का फायदा और नुकसान

तृप्ति डिमरी ने ‘एनिमल’ में जो इंटिमेट सीन किया, उस के बाद उन का नाम हर जगह चर्चा में आ गया. सोशल मीडिया पर उन के फौलोअर्स की संख्या रातोंरात बढ़ गई. लोग उन की बोल्डनैस की तारीफें करने लगे, लेकिन इस के साथ ही, वे एक टाइपकास्ंिटग की शिकार भी हो गईं.

जैसे ही वे सोशल मीडिया पर ‘भाभी 2’ और नैशनल क्रश के रूप में जानी गईं, उन्होंने अपनी फीस कई गुना बढ़ा दी. अगली फिल्म ‘बैड न्यूज’ में भी तृप्ति का बोल्ड अवतार दिखा, जिस ने इस टाइपकास्ट को और भी मजबूत कर दिया. अब तृप्ति को जिस तरह से प्रोजैक्ट किया जा रहा है उस से लगता है कि वे धीरेधीरे एक ही तरह के रोल्स में फंसती जा रही हैं. सोशल मीडिया पर भी उन की ऐक्ंिटग की कोई चर्चा नहीं है बल्कि उन के लुक्स और इंटिमेट सीन की चर्चा है. यही वजह है कि तृप्ति की अधिकतर इमेज जो यहांवहां फ्लो होती है वह बोल्ड ही होती है, यहां तक कि ब्रैंड एंडोर्समैंट वाले भी उन्हें हौट ऐक्ट्रैस के रूप में ही इंट्रोड्यूस करते हैं.

खतरे में कैरियर

बौलीवुड में टाइपकास्टिंग एक गंभीर मुद्दा है, जो न केवल कलाकारों के कैरियर को प्रभावित करता है बल्कि उन की पहचान को भी सीमित कर देता है. टाइपकास्टिंग का अर्थ है किसी अभिनेता या अभिनेत्री को एक विशेष प्रकार की भूमिका में बारबार कास्ट किया जाना, जिस से वह उस छवि से बाहर नहीं निकल पाता. यह समस्या खासकर तब और भी सीरियस हो जाती है जब बात ऐक्ट्रैसेस की हो.

उदाहरण के लिए, मल्लिका शेरावत ऐसी अभिनेत्री हैं जो अपनी एरोटिक इमेज के कारण रातोंरात मशहूर हो गईं. फिल्म ‘मर्डर’ (2004) में उन के बोल्ड अवतार ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया. लेकिन इस के बाद उन की पहचान उस एक ही प्रकार की भूमिकाओं में सीमित हो गई. औडियंस उन्हें उसी किरदार में देखने की चाह रखने लगे. मल्लिका ने अपनी एक इमेज बनाई जो एक सेट औडियंस को आकर्षित करती थी लेकिन इस के कारण उन का कैरियर आगे नहीं बढ़ सका. वे उस टाइपकास्ट इमेज से बाहर नहीं निकल पाईं और उन की सफलता सीमित हो गई.

उर्वशी रौतेला का भी उदाहरण लिया जा सकता है. वे भी ग्लैमरस और बोल्ड भूमिकाओं के लिए जानी जाती हैं. उन की इस छवि ने उन्हें फिल्मों में एक विशेष प्रकार की भूमिकाओं तक सीमित कर दिया, जिस से उन का कैरियरग्रोथ बाधित हो गया है.

यह समस्या सिर्फ ऐक्ट्रैस तक सीमित नहीं है, बल्कि कई ऐक्टर भी टाइपकास्ंिटग का शिकार होते हैं. उदाहरण के लिए, राजपाल यादव को अकसर कौमेडी भूमिकाओं में देखा गया है, जो उन के अभिनय के अन्य पहलुओं को छिपा देता है. गोविंदा भी एक समय पर सिर्फ कौमेडी और डांसिंग की भूमिकाओं में सीमित हो गए थे, जिस से उन के कैरियर में भी स्थिरता आ गई थी. रेखा को एक समय पर सिर्फ ग्लैमरस रोल्स में कास्ट किया जाता था लेकिन उन्होंने अपनी इमेज बदलने के लिए कई फिल्मों में चुनौतीपूर्ण किरदार निभाए.

हालांकि महिलाओं के लिए यह समस्या और भी चुनौतीपूर्ण होती है क्योंकि उन की इमेज का सीधा प्रभाव उन के कैरियर व समाज में उन की पहचान पर पड़ता है. तृप्ति डिमरी, जो ‘बुलबुल’ और ‘कला’ जैसी फिल्मों में अपनी अभिनय क्षमता का प्रदर्शन कर चुकी हैं, ने एक इंटरव्यू में इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे टाइपकास्ंिटग से बचने के लिए उन्हें सोचसम?ा कर भूमिकाएं चुननी पड़ती हैं. उन्होंने बताया कि बौलीवुड में एक अभिनेत्री के लिए विविधतापूर्ण भूमिकाओं को निभाना कितना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि एक बार यदि कोई विशेष इमेज बन जाती है तो उस से बाहर निकलना बेहद कठिन होता है.

कुल मिला कर, टाइपकास्टिंग ऐसा फंदा है जो कलाकारों को एक ही प्रकार की भूमिकाओं में बांध देता है, जिस से उन की क्रिएटिविटी और कैरियर की संभावनाएं सीमित हो जाती हैं. मल्लिका शेरावत और उर्वशी रौतेला के उदाहरण हमें यह सिखाते हैं कि एक ऐक्ट्रैस के लिए अपनी पहचान को विविधतापूर्ण बनाना कितना जरूरी है ताकि वे सिर्फ एक इमेज तक सीमित न रह जाएं और अपने कैरियर में आगे बढ़ सकें.

इस टाइपकास्टिंग का तात्कालिक फायदा तृप्ति को जरूर मिला है. वे चर्चा में हैं, लोग उन के बारे में बात कर रहे हैं और उन की फैनफौलोइंग बढ़ रही है. लेकिन लंबे समय में यह उन के कैरियर के लिए नुकसानदायक हो सकता है.

बौलीवुड में टाइपकास्टिंग से बाहर निकलना आसान नहीं होता, लेकिन तृप्ति ने जिस तरह से शुरुआती फिल्मों में काम किया है उस से लगता है कि उन में दम है. लेकिन जरूरी यह है कि दर्शकों में बनी इस इमेज को वे लगातार चैलेंज करती रहें. ऐसा कुछ प्रियंका चोपड़ा, दीपिका पादुकोण, विद्या बालन और आलिया भट्ट करती दिखाई दी हैं. यही कारण है कि वे आज सफल अभिनेत्रियां हैं.

भविष्य की उम्मीदें

तृप्ति डिमरी के पास अभी भी वक्त है कि वे इस टाइपकास्टिंग के ट्रैप से बाहर निकलें. उन्हें चुनौतियों से भरे रोल्स को चुनना होगा जो उन की ऐक्ंिटग स्किल्स को फिर से सामने लाएं. आने वाली फिल्मों में अगर उन्हें वर्सेटाइल किरदार मिलते हैं तो वे इस इमेज से बाहर निकल सकती हैं.

तृप्ति डिमरी का कैरियर इस वक्त एक क्रौसरोड पर खड़ा है. एक तरफ उन की बोल्ड इमेज है जो उन्हें तात्कालिक सफलता दिला रही है तो दूसरी तरफ उन का ऐक्टिंग टैलेंट है जो उन्हें लंबे समय तक इंडस्ट्री में टिकने में मदद करेगा. अगर वे अपनी इमेज को ले कर सावधान नहीं रहीं तो वे टाइपकास्टिंग के इस ट्रैप में फंस सकती हैं, फिर जिस से निकलना मुश्किल होगा. लेकिन अगर वे अपने टैलेंट पर भरोसा रखती हैं और सही प्रोजैक्ट्स का चुनाव करती हैं तो वे बौलीवुड में लंबी पारी खेल सकती हैं.

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