जिंदगी से ज्यादा वो मौत का सच जानना चाहता था. मौत के बाद की सच्चाई पता लगाना चाहता था. मुर्दों को ढूंढना उसका शौक था. अनजान और अदृश्य लोगों की पहेली बुझाना उसका पेशा, लेकिन अब खुद उसी की मौत एक पहेली बन गई. अपनी महारत, खास मशीन और कैमरे की मदद से ये हमेशा अनजान और अदृश्य लोगों को ढूंढता नजर आता. उनसे बातें करता. उनकी बातें सुनता. जी हां, हम बात कर रहे हैं पैरानार्मल जांचकर्ता गौरव तिवारी की, जिसकी रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई.

कभी किसी सुनसान हवेली में, कभी खंडहर में, कभी कब्रिस्तान में. यहां तक कि मुर्दाघर के अंदर भी. मुर्दों के साथ लेट कर वो उनका सच जानता था. उनसे बातें किया करता था. पर अफसोस वही गौरव तिवारी अपनी ही मौत को पहेली बना गया. इस बार इस पहेली को सुलझाने की जिम्मेदारी खुद की बजाए दिल्ली पुलिस के जिम्मे छोड़ गया. 32 साल का नौजवान गौरव अमेरिका से प्रोफेशनल पायलट की ट्रेनिंग बीच में छोड़ कर हिंदुस्तान लौट आया. यहां आकर उसने इंडियन पैरानॉर्मल सोसायटी का गठन किया.

देश और दुनिया के करीब छह हजार हॉन्टेड लोकेशन की जांच करने वाले गौरव की लाश सात जुलाई को दिल्ली के द्वारका इलाके में उसी के फ्लैट में पाई गई. वो अपने ही घर के बाथरूम में फर्श पर पड़ा था. उसके गले पर काले रंग के गहरे निशान मिले हैं. ये निशान कुछ-कुछ वैसे ही हैं जैसे अमूमन गले में फंदा कसने पर होता है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या गौरव ने खुदकुशी की? क्या उसका कत्ल किया गया? क्या उसका काम उसकी मौत की वजह बनी? क्या उसके अदृश्य मेहमान ही उसके दुश्मन बन बैठे? क्या निगेटिव सोच हावी हो गई थी?

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