मध्यवर्गीय परिवार में जन्मीं रश्मि शर्मा ने कभी नहीं सोचा था कि वे आगे चल कर राइटर से क्रिएटिव डायरैक्टर और फिर प्रोड्यूसर बनेंगी. लेकिन मेहनत, लगन और कुछ कर दिखाने की जिद ने उन्हें आम से खास बना दिया. 2008 में रश्मि ने पहली बार धारावाहिक ‘राजा की आएगी बरात’ के लिए काम किया. उस के बाद ‘रहना है तेरी पलकों की छांव में’, ‘मिसेज कौशिक की 5 बहुएं’, ‘देश की बेटी नंदनी’ के साथ मानो उन की सफलता का सिलसिला शुरू हो गया. धारावाहिक ‘साथिया साथ निभाना’ और ‘ससुराल सिमर का’ ने अब तक 1000 से भी अधिक ऐपिसोड पूरे कर लिए हैं, तो उन के दूसरे सीरियल्स जैसे ‘शक्ति’, ‘स्वरागिनी’, ‘सरोजिनी’ आदि हमेशा टीआरपी की रेस में आगे रहे. बता दें कि इन में से कुछ धारावाहिक उन्होंने खुद लिखे हैं. आइए, रश्मि के व्यक्तित्व को और करीब से जानें:

आप के मन में प्रोड्यूसर बनने का खयाल कब आया?

मैं ने इंडस्ट्री में शुरुआत बतौर क्रिएटिव डायरैक्टर की. प्रोड्यूसर बनने से पहले मैं कई धारावाहिकों की क्रिएटिव हैड रह चुकी हूं. उन धारावाहिकों की कहानी को सोचना, स्टोरी लाइन बनाना, उसे दर्शकों के सामने परोसना यह सब मेरा काम होता था. कई धारावाहिकों में काम करने के बाद मुझे ऐसा लगा कि जो चीजें आज मैं दूसरों के लिए कर रही हूं, उन्हें मैं अपने लिए भी तो कर सकती हूं. दरअसल, आप जब किसी दूसरे इनसान के प्रोडक्ट को प्रेजैंट करते हैं, तो आप पर बहुत सारी पाबंदियां लगाई जाती हैं. दूसरों के लिए धारावाहिक करते समय कई बार मुझे ऐसा लगता था कि अगर यह शो मेरा होता तो मैं इसे अलग दिशा में ले जाती. इन्हीं सोचों के साथ और खुद को पहले एक अच्छा क्रिएटिव हैड साबित करने के बाद मैं ने प्रोड्यूसर बनने की सोची.

मेल डौमिनेटिंग ग्लैमर इंडस्ट्री में अपने लिए स्थान बनाना कितना मुश्किल रहा?

मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं और यह कहूंगी भी कि ग्लैमर इंडस्ट्री में मेल डौमिनेशन बहुत ज्यादा स्ट्रौंग है. यहां एक फीमेल होने के नाते अपनी बात रखना और मनवाना बहुत मुश्किल है. लेकिन एक औरत होते हुए भी मैं ने अपनेआप को दोनों इंडस्ट्री (फिल्म और टीवी) में बेहतरीन तरीके से पेश किया. मैं अपनी बातें मनवाने में सफल भी रही हूं. हां, लेकिन मैं यह बात भी कहना चाहती हूं कि जब मैं क्रिएटिव हैड थी, तब मुझे यह डौमिनेशन सहना पड़ा था, लेकिन मेरा इस बात में गहरा यकीन है कि अगर आप को अपना काम आता है, आप अपने काम के प्रति ईमानदार हैं, तो आप को कोई डौमिनेट नहीं कर सकता. मेरे अंदर शुरू से सीखने की कला रही है. मैं ने बहुत निचले दर्जे से काम करना शुरू किया था, इसलिए मैं अपना काम अच्छी तरह जानती हूं और सही फैसला लेने में सक्षम हूं.

आप के व्यक्तित्व को निखारने में आप के पिता की क्या भूमिका रही है?

मेरे पिता प्रिंसिपल थे और मां हाउसवाइफ. मेरे पिताजी का जहांजहां तबादला होता था, हम उन के साथ चले जाते थे. मेरी पढ़ाई भी उन्हीं की निगरानी में हुई है. आज मेरी लाइफ में जो अनुशासन है, काम के प्रति जो डैडिकेशन है और काम को ले कर मैं जितनी फोक्सड हूं, सब उन्हीं की बदौलत है. चूंकि मेरे पिता ऐजुकेशन बैकग्राउंड से रहे हैं, इसलिए वे ओपन माइंडेड भी थे. वे अकसर कहते थे कि जहां मन चाहे उस दिशा में कैरियर बनाओ, लेकिन पढ़ाई पर खास ध्यान दो. उन का मानना था कि लड़का हो या लड़की उस का पढ़ालिखा होना बहुत जरूरी है.

आज किस तरह की चुनौतियां आप के सामने हैं?

हमेशा कुछ नया करना इस फील्ड की सब से बड़ी चुनौती है, जो कभी खत्म होने वाली नहीं है. यहां सब से बड़ी चुनौती है नया कौन्सैप्ट सोचना. कुछ ऐसा जो किसी और के दिमाग में न हो. बिलकुल अलग. मेरे लिए अपनेआप में यह एक चुनौती है कि मैं वह न सोचूं जो लोग सोच रहे हैं. मेरी सोच उन से अलग हो. इंडस्ट्री में प्रतिस्पर्धा बहुत बढ़ गई है. काफी नए लोग नए टेलैंट के साथ आ रहे हैं. ऐसे में अपनेआप को सब से अलग रखना और अपनी बात को सही तरीके से दर्शकों तक पहुंचाना अपनेआप में एक चुनौती है. लेकिन यह एक ऐसी चुनौती है, जो मुझे कुछ नया करने के लिए प्रेरित करती है.

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