मूलतया गुजराती, मगर मुंबई में पलीबढ़ी शाइनी की जिंदगी में उस वक्त बहुत बड़ा तूफान आ गया, जब अचानक उन के पिता का देहांत हो गया. उस के बाद शाइनी को अपनी मां व भाई के साथ मुंबई छोड़ कर अहमदाबाद जाना पड़ा था. मगर शाइनी की ‘सिंगल मदर’ ने संघर्ष कर शाइनी के अंदर अभिनेत्री बनने का उत्साह उस वक्त भरा, जब शाइनी ने स्वयं अभिनेत्री बनने की बात सोची तक न थी. अंधेरे के बाद उजाले के आगमन की ही तरह मुसीबत के ही वक्त शाइनी दोशी का एक प्रिंट ऐड देख कर फिल्मकार संजय लीला भंसाली ने उन्हें बुला कर अपने बड़े बजट के टीवी सीरियल ‘सरस्वतीचंद्र’ में मुख्य किरदार निभाने का अवसर दिया. उस के बाद उन्हें पीछे मुड़ कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी. प्र्रस्तुत हैं, शाइनी दोशी से हुई ऐक्सक्लूसिब बातचीत के अंश: अभिनय का शौक कैसे लगा?
मैं मुंबई में जन्मी हूं पर गुजराती हूं. लेकिन बाद में हम लोग अहमदाबाद शिफ्ट हो गए थे. अभी भी मेरा पूरा परिवार अहमदाबाद में ही है. जब मैं अहमदाबाद में स्नातक की पढ़ाई कर रही थी, तभी मैं ने कई सारे प्रिंट के विज्ञापन करने शुरू कर दिए थे. फिर मुझे टीवी सीरियलों में अभिनय करने का अवसर मिला. तब से मेरी अभिनय यात्रा चलती जा रही है.
आप ने संजय लीला भंसाली द्वारा निर्मित सीरियल ‘सरस्वतीचंद्र’ से अभिनय कैरियर की शुरुआत की थी. इसे 8 साल हो गए. अब अपने कैरियर को किस तरह से देखती हैं?
मेरी 8 वर्ष के कैरियर की एक बहुत ही खूबसूरत यात्रा रही है. इस बीच बहुत सारे उतारचढ़ाव भी रहे हैं. हमेशा ऐसा नहीं हुआ कि मैं सिर्फ ऊपर ही चढ़ी हूं. मैं ने नीचे का रास्ता भी देखा है. मैं सीरियल ‘सरस्वतीचंद्र’ के बाद और कई सीरियलों में अभिनय कर चुकी हूं. इन में से कुछ जबरदस्त सफल हुए तो कुछ नहीं चले. मैं ने ‘सरस्वतीचंद्र’ के अपने किरदार को पूरी ईमानदारी के साथ निभाया था. मुझे काफी लोकप्रियता मिली थी. लोगों ने मुझे कलाकार के तौर पर पहचानना शुरू किया था. इस के बाद टीवी सीरियलों का सिलसिला चलता ही रहा. पहले सीरियल से ही टीवी इंडस्ट्री से जुड़े सभी लोग मुझे पहचानने लगे थे.
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